काशी की एक ऐसी इमारत, जहां जीवन के 'अंतिम दिनों' में रहने आते हैं लोग, केवल 15 दिनो के लिए मिलती है जगह
शिव नगरी काशी में एक ऐसी इमारत है, जहां लोग घूमने नहीं, बल्कि अपने अंतिम दिनों में रहकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं। लेकिन, यहां के कुछ नियम हैं, जिसके मुताबिक सिर्फ उन लोगों को यहां रहने की अनुमती दी जाती है, जो ज्यादा जरूरतमंद हैं। वहीं यहां किसी को 15 दिनों से ज्यादा रहने की परमिशन नहीं है-
काशी नगरी
Varanasi: कहते हैं शिव नगरी काशी के कण-कण में शिव का वास है। यही वजह है कि हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। काशी भारत का सबसे पुराना शहर भी है। यहां गंगा घाट से लेकर अस्सी और मणिकर्णिका घाटों का अपना एक अलग महत्व है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भी अपने पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी आए थे। काशी का नजारा बड़ा अद्भुत है। यहां एक ओर शिव भक्त नाव में बैठ काशी घूमते नजर आते हैं तो दूसरी तरफ चिताएं चलती रहती हैं। यह एक ऐसा शहर है, जहां लोग मोक्ष की तलाश में आते हैं। मान्यता है कि यह मरने और गंगा किनारे दाह-संस्कार हो जाने से जनम-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। यही वजह है कि लोग यहां अपने अतिंम दिनों में रहने के लिए आते हैं।
यहां होती है मोक्ष की प्राप्त
हम बात कर रहे हैं काशी स्थित एक भवन की जहां लोग अपने जीवन के अंतिम समय में रहना चाहते हैं। लोग यहां रहकर अपने मरने का इंतजार करते हैं। और यहां आने के लिए पहले से ही अपना नंबर लगते हैं। मुमुक्षु भवन काशी की वह जगह है, जहां आने वाले लोग लोगों को काशीवासी कहा जाता है। यहां लोगों के अंतिम दिनों में रहने के लिए कमरे बनाए गए हैं, जिनका संचालन चैरिटी संगठनों द्वारा किया जाता है।
जिंदगी के अंतिम दिनों में आते हैं लोग
मुमुक्षु भवन में कुल 116 कमरे हैं। इन कमरों करीब 40 कमने उन लोगों के लिए तैयार किए गए हैं, जो यहां अपने जिंदगी के अंतिम दिनों में रहना चाहते हैं। यहां अंतिम समय में रहने के लिए ढ़ेरों लोगों के आवेदन आते हैं। लेकिन, यहां कमरों के नंबर कम होने की वजह से सभी को मंजूरी नहीं मिल पाती है। यानी आखिरी समय में रहने का मौका सिर्फ सोभाग्य से ही मिल पाता है।
जरूरतमंदो को प्रथामिकता
यहां रहने की प्रथामिकता उन्हीं लोगों को दी जाती है, जो ज्यादा जरूरतमंद हैं। और जो लोग अपना खर्चा खुद उठा सकते हैं या फिर जिन लोगों के परिवारवाले उनकी सेहत और मरने के बाद उनके दाह संस्कार की जिम्मेदारी ले सकते हैं। यहां आप ताश के पत्ते नहीं खेल सकते,ना ही लहसुन-प्याज का सेवन कर सकते हैं।
15 दिनों के लिए मिलेगा कमरा
वहीं यहां के कुछ नियम है, जिसके अनुसार यहां 60 से कम उम्र के लोगों को रहने की अनुमती नहीं दी जाती है। यहां रहने के लिए 15 दिनों का समय मिलता है। अगर इन 15 दिनों में वह मोक्ष प्राप्त नहीं करता है तो उसे यहां से जाना होता है। ताकी, दूसरे जरूरत मंद को यह कमरा दिया जा सके। हालांकि, यहां रहने वाले के सेहत को ध्यान में रखकर ठहरने की अनुमती दी जाती है।
इसलिए किया गया था निर्माण
इस भवन को साल 1908 में बनाया गया था। ताकि यहां मरने की इच्छा लेकर आए लोग आराम से रह सकें। इसलिए इस भवन को मुक्ति भवन के नाम से भी जाना जाता है। यहां उन लोगों को आने की अनुमती है, जो लोग मृत्यू के बेहद करीब हैं।
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