Binsar Mahadev Mandir: उत्तराखंड में यहां पत्थर को दूध पिलाने आती थी गाय! जानें बिनसर मंदिर का इतिहास
देवभूमि उत्तराखंड में कई धार्मिक स्थल हैं। यहां के चमत्कारी मंदिरों की कई कहानियां आपने सुनी होगी। लेकिन आज यहां के एक शिव मंदिर के बारे में ऐसा कुछ बताने जा रहे हैं, जो आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। आइए आज हम आपको रातों-रात निर्माण हुए इस मंदिर के बारे में बताते हैं।
उत्तराखंड, बिनसर महादेव मंदिर
उत्तराखंड में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है। कुंज नदी के तट पर बना यह मंदिर का दृश्य काफी आलौकिक है। यहां के परिसर में आकर लोगों को सुकून का एहसास होता है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण किसी ने नहीं कराया। इसका निर्माण रातों-रात हुआ था। जिसके बाद साल 1959 में ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
यहां के लोगों का मनना है कि यहां भगवान शिव का वास है। उत्तराखंड के इस मंदिर का नाम बिनसर महादेव मंदिर है। हालांकि पहले इसका नाम बिन्देश्वर हुआ करता था। यह नाम इस मंदिर का निर्माण कराने वाले राजा पीथू ने अपने पिता बिंदू के नाम पर रखा था। बिनसर महादेव मंदिर चीड़ के जंगलों के बीच बसा है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में हुआ था। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं।
यहां भगवान शिव का है वास
साथ ही यहां विशाल भंडारे का आयोजन भी होता है। अगर आप भी शिव भक्त हैं तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें। इस मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से संतान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां मां गौरी और भगवान शिव का वास है। इस मंदिर भगवान गणेश की प्रतिमा भी विराजमान है। लोगों का यह भी मानना है इस शिव मंदिर को सबसे पहले महाभारत काल में पांडवों द्वारा बनवाया गया था।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
यहां के लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां रोजाना एक गाय आकर पत्थर पर अपना दूध चढ़ाया करती थी। बाद में यहीं मंदिर का निर्माण कराया गया। लोगों का ऐसा मानना है कि एक साधू ने आकर झांड़ियों में स्थापित शिवलिंग के बारे में बताया और मंदिर निर्माण की बात कही। जिसके बाद यहां भव्य मंदिर बनाया गया।
(डिस्क्लेमर:यह आर्टिकल आपकी जानकारी के लिए है। टाइम्स नाउ नवभारत किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है)
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