सावन में यहां करें उत्तर भारत के सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन

Largest Shiv lingam of North India: सावन के महीने को भगवान शिव का महीना कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे में आपके पास अवसर है उत्तर भारत के सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन करने का। तो फिर देर किस बात की, चलिए बूढ़ा केदार चलते हैं -

बूढ़ा केदार

Largest Shiv lingam of North India: इन दिनों सावन का महीना चल रहा है। भोले बाबा के भक्त इन दिनों कांवड़ लेने निकले हैं। भगवान शिव को खुश करने का यह सबसे अच्छा समय है। ऐसे में देशभर के शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिल रही है। आपने कई शिवालय देखे होंगे, आज चलते हैं उत्तर भारत के सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन करने। समूचे उत्तर भारत में सबसे बड़े शिवलिंग भगवान केदार की धरती यानी उत्तराखंड में ही मौजूद है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हैं, लेकिन उत्तर भारत के जिस सबसे बड़े शिवलिंग की बात हम यहां कर रहे हैं, वह पंच केदार (केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पनाथ) में से कोई भी नहीं है। चलिए सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शनों के लिए चलते हैं बूढ़ा केदार।

कहां है बूढ़ा केदार

जी हां, उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग बूढ़ा केदार में मौजूद है। यह उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में मौजूद है। बूढ़ा केदार में जो शिवलिंग है, उसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है। बूढ़ा केदार यहां टिहरी गढ़वाल में बाल गंगा और धर्म गंगा के संगम के पास मौजूद है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर धर्म गंगा का बाल गंगा में विलय हो जाता है। यहां से बाल गंगा आगे बढ़ती है और घनसाली के पास यह भिलंगना नदी में मिल जाती है। यह वही भिलगंना नदी है, जो कुछ ही दूर जाकर टिहरी में भागीरथी नदी में मिल जाती है। टिहरी में इनके संगम पर ही टिहरी बांध बनाया गया है।
बूढ़ा केदार का यह क्षेत्र हरे-भरे देवदार के जंगलों से ढकी पहाड़ियों से घिरा है। यहां पर पहाड़ी घर और सीढ़ीदार खेत आसानी से देखे जा सकते हैं। यहां पहाड़ी घरों में सीढ़ीदार खेतों में काम करते पहाड़ी लोगों की जीवन की झलक देख सकते हैं। यहां अद्भुत प्राकृतिक खूबसूरती देखने को मिलती है। शांत वातावरण में पक्षियों की चहचहाट मन को असीम शांति का अनुभव कराती है।

कितना दूर है बूढ़ा केदार

बूढ़ा केदार पहुंचना बहुत ही आसान है। यह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से सिर्फ 180 किमी दूर है। जिला मुख्यालय नई टिहरी से यह सिर्फ 60 किमी दूर है। नई टिहरी से बूढ़ा केदार के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है। इसके अलावा घनसाली से बूढ़ा केदार के लिए छोटी गाड़ियां भी आसानी से मिल जाती हैं। समुद्र तल से 1535 मीटर यानी 5035 फीट की ऊंचाई पर बसा बूढ़ा केदार चारों ओर से हिमालय की पहाड़ियों से घिरा है। बर्फ से लकदक हिमालय के पहाड़ और हरे घास व पेड़ों से पटी घाटियां इसकी सुंदरता को और बढ़ा देती हैं।

बूढ़ा केदार का इतिहास

बूढ़ा केदार का अपना बहुत ही समृद्ध इतिहास है और इसका धार्मिक महत्व भी काफी है। माना जाता है कि भगवान शिव यहां एक बूढ़े के रूप में आए थे, ताकि वह पांडवों की भक्ति की परीक्षा ले सकें। कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद मोक्ष की यात्रा पर निकले पांडव चाहते थे कि उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद मिले। पांडवों की भक्ति से खुश होकर भोले बाबा ने उन्हें मोक्ष दिया।

यहां का मुख्य आकर्षण

बूढ़ा केदार का मुख्य आकर्षण यहां का पुराना मंदिर ही है, जो भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में पारंपरिक गढ़वाली शैली, उत्कृष्ट वास्तुकला और जटिल नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के बहुत ही विशाल शिवलिंग स्थापित हैं। यह शिवलिंग, भोले बाबा की ब्रह्मांडीय ऊर्जा और रचनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां प्रार्थना और अनुष्ठान करते हैं और भोले भंडारी का आशीर्वाद लेने आते हैं। यहां मंदिर परिसर में ही भगवान गणेश, देवी पार्वती और हनुमान के मंदिर भी हैं।
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