कैराना में जन्मे इन लोगों ने विदेशों में खूब कमाया नाम, लेकिन कभी वापस नहीं लौटे

कैराना में 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। कैराना हाल के वर्षों में गलत वजहों से चर्चा में रहा है। लेकिन यहां से निकलने वाले कुछ ऐसे नाम भी हैं, जिन्होंने विदेशों में जाकर खूब नाम कमाया। चलिए जानते हैं उन लोगों के नाम और कहां उन्होंने नाम कमाया -

कैराना की कहानी

कैराना उत्तर प्रदेश के शामली जिले में है। यहां पर लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Election 2024) के पहले चरण में यानी 19 अप्रैल को मतदान होगा। कैराना शहर एक म्युनिसिपल बोर्ड है, जो शामली शहर से करीब 14 किमी दूर है। कैराना हाल के वर्षों में खराब वजहों से चर्चा में रहा है। 2014-16 में हिंदुओं के पलायन की वजह से कैराना सुर्खियों में रहा है। यहां के एक गैंगस्टर मुकिम काला के डर की वजह से हिंदुओं के पलायन की खबरें मीडिया में छाई रहीं। हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर करने को लेकर राजनीति ने भी अपनी भूमिका निभाई। एक तरफ दावा किया जा रहा था कि यहां के मुस्लिम, हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर कर रहे हैं, दो दूसरी तरफ इस दावे का विरोध हो रहा था। लेकिन पूर्व में यहां के कई ऐसे सपूत हुए हैं, जिन्होंने विदेशों में जाकर खूब नाम कमाया है।
कैराना के कम से कम तीन ऐसे सपूत हैं, जिन्होंने भारत से दूसरे देशों में जाकर अपना और अपनी मात्र भूमि का नाम रोशन किया। आज हम उन्हीं सपूतों के बारे में जानेंगे और पता लगाएंगे कि उन्होंने किन हालातों में विदेश जाकर अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।

रहमतुल्लाह कैरानवी (Rahmatullah Kairanawi)

सन 1818 में कैराना में जन्में रहमतुल्लाह कैरानवी एक सुन्नी मुस्लिम स्कॉलर और लेखक थे। माना जाता है कि वह तीसरे खलीफा उस्मान इब्न अफ्फान के वंशज थे। उन्हें उनकी लिखी किताब 'इजहार उल हक' (Truth Revealed) के लिए खूब ख्याति मिली।
वह तीसरे खलीफा उस्मान इब्न अफ्फान के वंशज हैं, उनके पूरे वंश का उल्लेख पारिवारिक स्रोतों में मिलता है। उनके परिवार के पास जो भी संपत्ति थी, उसका एक बड़ा हिस्सा हिंदुस्तान पर राज करने वाले मुगल बादशाह अकबर ने दिया था। उनके एक पूर्वज अकबर के डॉक्टर थे। उन्होंने 1857 के विद्रोह में भी भाग लिया। बाद में वह बॉम्बे गए और यहां से एक जहाज पर सवार होकर यमन के शहर मोका (Mocha) पहुंचे। मोचा से उन्होंने पैदल ही मक्का की यात्रा की, जिसमें उन्हें दो साल का समय लगा। उन्हें मस्जिद-ए-हरम में लेक्चरर नियुक्त किया गया। उन्होंने कुछ भारतीय मुसलमानों को इकट्ठा कर मक्का में रहते हुए कैरानवी ने साल 1874 में एक धार्मिक स्कूल (मदरसा) का बनाया। सौलातिया मदरसा (Sawlatiyyah Madrasah) आज भी मक्का में मौजूद है। कैरानवी का 1891 में मक्का में ही निधन हुआ।
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