RSS के कार्यक्रम में लखनऊ पहुंचे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, कहा- 'मैं भी संघ का सेवक, कभी नहीं टालता आदेश'

Rajnath Singh in Lucknow: रक्षामंत्री ने कहा कि, 'मैं कह सकता हूं कि संकठा जी का पुनर्जन्म नहीं होगा, उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा, उन्होंने राष्ट्रधर्म का पालन किया। ठाकुर साहब का मन बड़ा था। वह संघ के स्वयंसेवक थे, किसान संघ में भी उन्होंने राष्ट्र के लिए काम किया।



रक्षामंत्री राजनाथ सिंह। (फोटो क्रेडिट: @rajnathsingh/X)

Rajnath Singh in Lucknow: रक्षामंत्री राजनाथ सिंह आज लखनऊ पहुंचे। यहां पर उन्‍होंने राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक स्व. ठाकुर संकठा प्रसाद के जीवन पर आधारित पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में भाग लिया। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि, 'मैं भी मूलत: संघ का सेवक हूं, सामान्‍यत: संघ के आदेशों को मैं टालता नहीं हूं। व्‍यस्‍तता होने के बावजूद मैंने कहा चाहे जो कुछ भी होगा मैं निश्चित रूप से इस कार्यक्रम में भाग लूंगा।' उन्होंने ठाकुर संकठा प्रसाद के बारे में भी कहा कि, 'अनुशासन के मामले में वे बेजोड़ हैं। पुस्तक का शीर्षक कर्मयोगी संकठा प्रसाद है लेकिन वह निष्काम कर्मयोगी थे। उनकी कड़क आवाज में भी अपनापन था। जो व्यक्ति मन का बड़ा होता है वह लोगों के दिल को जीत लेता है वह खुद भी आनंदित रहता है और लोगों को भी खुश रखता है।'

राष्‍ट्रधर्म का पालन करते थे संकठा प्रसाद

रक्षामंत्री ने कहा कि, 'मैं कह सकता हूं कि संकठा जी का पुनर्जन्म नहीं होगा, उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा, उन्होंने राष्ट्रधर्म का पालन किया। ठाकुर साहब का मन बड़ा था। वह संघ के स्वयंसेवक थे, किसान संघ में भी उन्होंने राष्ट्र के लिए काम किया। उन्होंने कहा था कि किसान खुशहाल होगा तो देश खुशहाल होगा। कृषि ऋण पर 14 से 18 फीसदी ब्याज 4 प्रतिशत करना चाहिए। यह उनका भी सुझाव था। किसान कॉल सेंटर भी उनके मार्गदर्शन से शुरू हुआ कराया गया था।'

बीमारी का किस्‍सा भी किया शेयर

राजनाथ सिंह ने एक किस्‍सा याद दिलाया कि, 'एक बार, जब मैं कृषि मंत्री था तो वे काफी बीमार थे। मैं उन्हें देखने गया। उनका स्वास्थ्य देखते हुए मैंने उनसे कहा कि मैं आपको दिल्ली ले चलता हूं। वहां आपका अच्छे डॉक्टरों से ईलाज हो जाएगा। मगर उन्होंने इंकार कर दिया।' संकठा प्रसाद कि व्‍यक्तित्‍व पर उन्‍होंने ये भी कहा कि, 'राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना के पीछे जहाँ राष्ट्र निर्माण का व्रत था, वहीं यह भाव भी था कि हमें भारत में ऋषि परम्परा को पुनर्स्थापित भी करना है। ठाकुर संकठा प्रसाद जी उसी ऋषि परम्परा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। आजादी के बाद जब देश में उस समय की सरकार ने बडे़ जोर-शोर से ‘सहकारी खेती’ की वकालत की थी। दीनदयाल जी ने साफ कहा था कि सहकारी खेती से न केवल देश में बेकारी का संकट भीषण होगा बल्कि यह देश में लोकतंत्र के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा।'

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