अवध से लखनऊ की कहानी, जानें कैसे वक्त के साथ बदलता रहा नवाबों का शहर

लखनऊ शहर अपनी संस्कृति, तहजीब और खान-पान के लिए जाना जाता है। यह भारत के खूबसूरत शहरों में शुमार है। यहां की दशहरी आम, चिकनकारी कपड़े सब दुनियाभर में मशहूर हैं। हर साल लोग यहां दूर-दूर से लखनऊ की संस्कृति को निहारने आते हैं।

लखनऊ

नवाबों के शहर लखनऊ की जब भी बात आती है तो यहां के तौर-तरीके, यहां की संस्कृति और खाना पान का ख्याल मन में आता है। साथ ही यहां के चिकनकारी कपड़े तो दुनियाभर में फेमस हैं। लेकिन आपने कभी आपने सोचा है कि जिसे आप लोग नवाबों का शहर या लखनऊ के नाम से जानते हैं, उसका नाम कैसे पड़ा या उसका मतलब क्या है। अगर नहीं तो आज हम इस बारे में बात करेंगे और इससे जुड़े रोचक इतिहास को जानेंगे।

जब भी लखनऊ का ख्याल आपके मन में आता है तो आपको यह कहावत याद आती होगी कि मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं। लखनऊ का इतिहास वाकई बहुत ही खास है। इसका निर्माण में अवध के नवाबों ने करवाया था। जिनमें सआदत अली खान, सफदर जंग,शुजा-उद-दौला, आसफुद्दौला, वज़ीर अली, सआदत अली खान, ग्गज़िउद्दीन हैदर, नासिरुद्दीन हैदर, मुहम्मद अली शाह, वाजिद अली शाह आदि का बड़ा योगदान रहा। इतिहासकारों की मानें तो लखनऊ की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 में कराया था। ऐसा कहा जाता है कि पहले लखनऊ का नाम अवध था।

कैसे पड़ा लखनऊ नाम ?

सन 1850 में लखनऊ के अंतिम शासक नवाब वाजिद अली शाह थे, जिसके बाद अवध पर ब्रिटिश साम्राज्य का शासन शुरू हो गया। अवध से इसका नाम लखनऊ कैसे पड़ा इसके लेकर अभी काफी विवाद है। वहीं कई इतिहासकारों का मानना है कि यह पहले लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना जाता था। ऐसा भी कहा जाता है कि अयोध्या के राम ने लक्ष्मण को लखनऊ भेंट में दिया था।

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