Lucknow: गर्भवती महिलाओं को सरकार का एक और तोहफा, निजी केंद्रों पर फ्री मिलेगी यह सुविधा
Lucknow Ultrasound: राजधानी लखनऊ के सभी प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अल्ट्रासाउंड जांच की सुविधा नहीं है, इस वजह से गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अब सरकार ने 28 निजी डायग्नोस्टिक सेंटर से करार किया है। अब गर्भवती महिलाओं की जांच निजी केंद्रों पर फ्री में होगी।

निजी केंद्रों पर फ्री में होगी गर्भवती महिलाओं की जांच
- प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अल्ट्रासाउंड जांच की सुविधा नहीं
- गर्भवती महिलाओं को होती है परेशानी
- निजी केंद्रों पर मुफ्त में होगी गर्भवती की जांच
Lucknow
अफसरों ने बताया कि 28 डायग्नोस्टिक सेंटर से करार हो गया है। दो कैटेगरी में शासन ने शुल्क तय किए है। पहली कैटेगरी में नॉन एनएबीएल सेंटर हैं। इन्हें प्रति अल्ट्रासाउंड 255 रुपये दिए जाएंगे। दूसरी में एनएबीएल सेंटर को 290 रुपये का भुगतान होगा।
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ई वाउचर सेंटर पर वेरिफिकेशन के बाद होगी जांचउधर, निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में ई- वाउचर से गर्भवती महिलाओं की जांच की जाएगी। यह निर्देश उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने सभी जिलों के सीएमओ को दे दिए हैं। ई वाउचर सेंटर ले जाने पर वेरिफिकेशन किया जाएगा। उसके बाद अल्ट्रासाउंड जांच की जाएगी। गर्भवती महिला के फोन पर ओटीपी आएगा। जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग निजी सेंटर के खाते में रकम भेजेगा। सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल के अनुसार, गर्भवती महिलाओं की समय पर जांच हो पाए, इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इस योजना को बेहतर तरीके से लागू किया जा रहा है। अभी और सेंटर से इस योजना को जोड़ा जाएगा।
निजी केंद्रों पर गर्भवती महिला का फ्री में अल्ट्रासाउंडवहीं, गर्भवती महिलाओं की अब आसानी से अल्ट्रासाउंड की जांच होगी। महिलाएं अस्पताल के पास निजी सेंटरों में भी फ्री जांच करा सकेंगी। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने 28 निजी सेंटर से करार किया है। अधिकारियों ने जल्द नई सुविधा शुरू होने की उम्मीद जताई है। उधर, लखनऊ स्थित केजीएमयू के बाल रोग विभाग में पीडियाट्रिक इंडोक्राइन यूनिट शुरू कर दी गई है। इससे डायबिटीज पीड़ित बच्चों को यहां 24 घंटे इलाज की सुविधा मिलती रहेगी। यूनिट को सेंटर फॉर एक्सीलेंस के रूप में विकसित किया है। कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने यूनिट की ओपीडी का शुभारंभ किया। कुलपति के अनुसार, बहुत से बच्चों की बीमारी का शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाता है। घरवाले भी बीमारी के लक्षण की अनदेखा कर देते हैं, जिससे समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
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