चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां पाटेश्वरी मंदिर पहुंच सीएम योगी ने की पूजा-अर्चना, जानें इस मंदिर का इतिहास
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष के अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विक्रम संवत 2080 प्रदेशवासियों के जीवन में समृद्धि लाए।
मां पाटेश्वरी मंदिर पहुंचे सीएम योगी
Chaitra Navratri: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को चैत्र नवरात्रि के पहले दिन तुलसीपुर स्थित मां पाटेश्वरी मंदिर में दर्शन, पूजा-अर्चना की। सीएम योगी ने उत्तर प्रदेश के सुखी, स्वस्थ और समृद्ध होने की कामना की। इसके बाद मुख्यमंत्री गौशाला गए, जहां उन्होंने गायों को गुड़ खिलाया। इस दौरान उन्होंने मंदिर परिसर में मिले बच्चों से भी बातचीत की और उन्हें चॉकलेट दी।
सीएम ने प्रदेशवासियों को दीं शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष के अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विक्रम संवत 2080 प्रदेशवासियों के जीवन में समृद्धि लाए। योगी आदित्यनाथ ने राज्य के कई जिलों का दौरा किया और विकास कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने पिछले पांच दिनों में देवताओं को अपनी प्रार्थना भी की।
मुख्यमंत्री ने शनिवार को वाराणसी में काशी विश्वनाथ और बाबा कला भैरव के दर्शन किए थे। वह अयोध्या के दौरे पर भी गए और रविवार को राम जन्म भूमि और हनुमानगढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना की। बुधवार को उन्होंने तुलसीपुर स्थित मां पाटेश्वरी धाम के दर्शन किए।
51 शक्तिपीठों में से एक
बलरामपुर जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है। मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के आधार पर इस शक्तिपीठ का सीधा संबंध देवी सती व भगवान शंकर, गोखक्षनाथ के पीठाधीश्वर गुरु गोरक्षनाथ जी महराज सहित दानवीर कर्ण से माना जाता है। यह शक्तिपीठ सभी धर्म, जातियों के आस्था का केंद्र है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां पाटेश्वरी के दर्शन को आते हैं। मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। लेकिन उस यज्ञ में देवी सती के पति भगवान शंकर को आमंत्रित तक नहीं किया गया। देवी सती अपने पति भगवान शंकर के अपमान को न सह सकीं और यज्ञ कुंड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया।
यह बात जब भगवान शंकर को हुई तो वह खुद यज्ञ स्थल पहुंचे और देवी सती के शव को आग से निकाल लिया और क्रोधित होकर शव को अपने कंधे पर लेकर तांडव किया। इसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, जिसके बाद ब्रह्मा के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया, ताकि भगवान शिव का क्रोध शांत हो सके।
मान्यता है कि विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग जहां-जहां गिरा, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। बलरामपुर जिले के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का बायां स्कन्ध के साथ पट गिरा था। इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
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