मधमहेश्वर : 16 किमी का ट्रैक, बुग्याल, जंगल और हिमालय की चोटियों के बीच शिवालय

पंच केदार के सफर में आज दौरा उस मंदिर का, जहां भगवान शिव की नाभि की पूजा होती है। इस मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी है और 16 किमी का ट्रैक करके जब आप यहां पहुंचते हैं तो भगवान के आशीर्वाद के साथ ही यहां का नजारा आपका मन मोह लेता है।

Madhmaheshwar Panch Kedar.

पंचकेदार सर्किट में मधमहेश्वर मंदिर

भगवान शिव के भक्तों के लिए शिवाय ही सब कुछ हैं। शिवाय के अलावा उन्हें कुछ भी नहीं भाता। भोले भंडारी के ऐसी ही भक्त पंच केदार (Panch Kedar) के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। पंच केदार की बात होती है तो आमतौर पर लोग केदारनाथ (Kedarnath) के बारे में तो जानते हैं, लेकिन बाकी के चार केदारों के बारे में कम ही लोगों को जानकारी होती है। पंच केदार में हम तुंगनाथ (Tungnath) और रुद्रनाथ (Rudranath) के दर्शन पूर्व में कर चुके हैं। तुंगनाथ में शिव शंकर के दर्शन करने के बाद हमने 20 किमी का कठिन ट्रैक करके रुद्रनाथ के दर्शन कर लिए हैं। आज चलते हैं मधमहेश्वर (Madmaheshwar) के मंदिर, जहां भगवान शिव की नाभि की पूजा होती है। मधमहेश्वर में भगवान शिव के दर्शन करने के साथ ही आप यहां से अद्भुत नजारे हमेशा के लिए अपनी यादों में संजोकर ही घर जाएंगे।
मधमहेश्वर आने पर दाईं ओर जहां आपको बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां नजर आएंगी, वहीं बाईं ओर घास के खूबसूरत मैदान आपका मन मोह लेंगे। वहीं मंदिर के पीछे की तरफ घना जंगल अपनी ओर आकर्षित करता है।

मधमहेश्वर की मान्यता

पंच केदार की यात्रा में यह चौथा केदार है, जहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। पंच केदार की कहानी महाभारत (Mahabharat) काल से जुड़ी है। जब भगवान शिव ने पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए बैल रूप धारण किया तो पांचों केदार में उनके अलग-अलग हिस्से दिखायी दिए। जहां जो अंग दिखा, वहां भोले बाबा की उसी रूप में पूजा होती है। मधमहेश्वर में बैल का मध्य भाग यानी नाभि दिखा, इसलिए यहां भोले भंडारी की इसी रूप में पूजा होती है। माना जाता है कि पांडु पुत्र भीम ने इस मंदिर की स्थापना की और यहां भोले बाबा की अराधना की। मंदिर के दाईं ओर एक छोटा सा मंदिर है, जिसमें देवी सरस्वती की मार्बल की मूर्ति है।

कैसे पहुंचे मधमहेश्वर

समुद्र तल से 3490 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद मधमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड और देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से कनेक्टेड है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मौजूद यह मंदिर हरिद्वार से 225 और देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से 205 किमी दूर है। यहां आने का सबसे अच्छा समय मई से नवंबर के बीच होता है। मधमहेश्वर जाने के लिए आपको रांसी गांव से 16 किमी का पैदल ट्रैक करना पड़ेगा। रांसी गांव तक सड़क से आसानी से पहुंच सकते हैं। मधमहेश्वर जाने के लिए आप दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून आदि जगहों से सीधे उखीमठ तक बस ले सकते हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश से बसें सुबह जल्दी शुरू हो जाती हैं और दिनभर चलती रहती हैं। उखीमठ से रांसी के लिए आप कैब बुक कर सकते हैं। चाहें तो आप ऋषिकेश या हरिद्वार से सीधे रांसी गांव के लिए भी कैब बुक कर सकते हैं।
भले ही रांसी से मधमहेश्वर मंदिर तक 16 किमी का ट्रैक हो, लेकिन यह ट्रैक बंटोली तक बहुत ही आसान है। बंटोली से मधमहेश्वर तक खड़ी चढ़ाई चढ़कर जाना पड़ता है। बता दें कि बंटोली में ही मधमहेश्वर गंगा और मार्त्येद गंगा का संगम होता है। बंटोली से चढ़ाई चढ़ने के बाद आप खटरा और नानू होते हुए मधमहेश्वर पहुंचते हैं। बता दें कि इस रूट में गौंधर और कालिमठ दो बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव हैं।

मधमहेश्वर में क्या देखें

मधमहेश्वर में कुछ भी देखने से पहले भोले बाबा का आशीर्वाद लें। 16 किमी का ट्रैक करके यहां आए हैं तो कुछ देर भोले के ध्यान में बैठें। यहां से हिमालय की चौखंबा पर्वत चोटियों के शानदार दर्शन कर सकते हैं। बर्फ से ढकी यहां की चोटियां हमेशा के लिए आपके मन-मस्तिष्क में बस जाएंगी। इसके अलावा मधमहेश्वर मंदिर के पास मौजूद घास के मैदानों (बुग्याल) में कैंप लगाकर आप रात में तारे गिन सकते हैं।

मधमहेश्वर के आसपास

मधमहेश्वर मंदिर के आसपास अगर आप घूमना चाहते हैं तो आप मंदिर से 16 किमी का ट्रैक करके कंचनी ताल पहुंच सकते हैं। यह ताल समुद्र तल से 4200 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। बेहतर तो यही होगा कि कंचनी ताल के आसपास रात को कैंप लगाएं, रात को यहां का नजार अद्भुत होता है।
मधमहेश्वर मंदिर से 2 किमी का ट्रैक करके आप बूढा मधमहेश्वर पहुंच सकते हैं। यहां से हिमालय का विहंगम दृष्य नजर आता है। यहां का शिव मंदिर समुद्रतल से 14000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है।
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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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