महर्षि वेदव्यास, बीरबल और रानी लक्ष्मी बाई का इस जगह से है खास संबंध, आप जानते हैं?
कालप्रिया बाद में बदलकर कालपी हो गया। कालपी को चौथी शताब्दी में राजा वसुदेव ने बसाया था। ऐतिहासिक स्थल कालपी में पुराने समय से ही राजनीतिक उधल-पुथल होती रही है। आज हम जानेंके कि महर्षि वेदव्यास, बीरबल और रानी लक्ष्मी बाई इस जगह से क्या संबंध है-

कालपी
मुगल सम्राट अकबर को एक महान शासक मानने वालों की कमी नहीं है। अकबर ने हिंदुस्तान पर शासन किया और ज्यादातर रियासतों को अपने साथ जोड़ा। अबुल-फतह जलालुदीन मोहम्मद अकबर ने सिर्फ 13 साल की छोटी सी अम्र में मुगल साम्राज्य की कमान संभाली थी। उनके पास 9 रत्न भी थे और 9 रत्नों में से एक था बीरबल। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बीरबल का जन्म कहां हुआ था? नहीं जानते...तो छोड़िए... आगे बढ़ते हैं।
महर्षि वेदव्यास के बारे में आप जानते होंगे। वेदव्यास वही शख्स हैं जिन्होंने महाभारत लिखी। पौराणिक कहानियों के अनुसार वेदव्यास सत्यवती की संतान थे। कुरुवंश के दोनों राजकुमारों विचित्रवीर्य और चित्रांगत की मृत्यु के बाद वेदव्यास ने ही अंबिका और अंबालिका के साथ निसर्ग के जरिए धृतराष्ट्र और पांडु को पैदा करने में मदद की थी। उन्हीं वेदव्यास ने चार वेदों और 18 पुराणों की भी रचना की थी। एक बार फिर वही प्रश्न... क्या आप जानते हैं वेदव्यास का जन्म कहां हुआ था? ये भी नहीं जानते... कोई बात नहीं... जाने दीजिए।
यहां 1857 में बनाई गई रणनीति
एक समय ऐसा भी आया था, जब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। 1857 में आजादी की पहली लड़ाई में अंग्रेजों की भारी पलटन झांसी पर टूट पड़ी थी। ऐसे में क्या आप जानते हैं इस लड़ाई की रणनीति कहां तैयार की गई थी। नहीं जानते... कोई बात नहीं आज हम आपको बताएंगे।
कालपी पहले था कालप्रिया
ऊपर हमने आपसे तीन प्रश्न पूछे और उन तीनों प्रश्नों का एक उत्तर है। साल 1857 की आजादी की लड़ाई, महर्षि वेदव्यास और बीरबल का जन्म बुंदेलखंड में यमुना नदी के किनारे कानपुर-झांसी राजमार्ग पर स्थित कालपी में हुआ था। कालपी जिसे पहले कालप्रिया के नाम से जाना जाता था। कालप्रिया बाद में बदलकर कालपी हो गया। कालपी को चौथी शताब्दी में राजा वसुदेव ने बसाया था। ऐतिहासिक स्थल कालपी में पुराने समय से ही राजनीतिक उधल-पुथल होती रही है। यहां के लोग इसे कालीप शरीफ के नास से भी बुलाते हैं।
शौर्य की गाथा सुनाता है कालपी
यह एक ऐतिहासकि स्थल है। आज अपनी पहचान खो रहे कालपी में घूमने के लिए बहुत कुछ खास तो नहीं है, लेकिन जो लोग इतिहास से रूबरू होना चाहते हैं, महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली को चूमना चाहते हैं और महाज्ञानी बीरबल के जन्मस्थान को देखना चाहते और मर्दानी लक्ष्मीबाई के शौर्य को अनुभव करना चाहते हैं उनके लिए इस जगह पर आज भी बहुत कुछ है। जो कालपी के इतिहास से जुड़ी हैं। हालांकि, यहां की छोटी-छोटी गलियों में पर्यटकों का आना-जाना कम ही होता है।
यहां घूमने के लिए हैं ये जगहें
कालपी में घूमने के लिए व्यास मठ, चौरासी गुम्बज और लंका मीनार जैसी ऐतिहासिक जगहें हैं। वहीं यहां पर एक कुंड भी है, जिसे सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि कृष्णपुत्र शांब दुर्वासा ऋषि के शापवश कोढ़ी हो गए थे। जिसके बाद इस सूर्यकुंड में स्नान करने पर उनका कोढ़ ठीक हो गया छा हुए थे। जिन लोगों को नेचर से लगाव है, उन लोगों का यहां आना लगा रहत है।
यहां के लंका मीनार दिलचस्प है इतिहास
लंका मीनार की कहानी बड़ी दिलचस्प है। जानकारी के अनुसार 1857 में मथुरा प्रसाद नामक एक व्यक्ति द्वारा इस मीनार को बनाया गया है। मथुरा प्रसाद पर एक कलाकार थे, जो ज्यादातर रावण का किरदार ही करते थे। ऐसा माना जाता है कि रावण के किरदार का इनपर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने रावण की याद में इस मीनारो को बनवा डाला। लंका मीनार की ऊंचाई 210 फीट है। वहीं इसमें कुंभकरण और मेघनाथ की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
भाई-बहनोंं नहीं जा सकते लंका मीनार
आपको जानकर हैरानी होगी, मगर इस मीनार को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां भाई-बहन एक साथ नहीं जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मीनार के ऊपर जाने के लिए 7 परिक्रमा लगाई जाती है, जो भाई-बहन नहीं लगा सकते हैं।
चौरासी गुंबद में हैं इतने दरवाजे
कालपी नगर में ही बाहरी छोर पर झांसी हाईवे के किनारे चौरासी गुंबद स्थित है। इस लोदी शाह के मकबरे के नास से भी जाना जाता है। इस गुंबद में कुल 84 दरवाजे हैं। कहा जाता है कि पहले यह गुंबद बियाबान जंगल में था। इसके बावजूद इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते थे। कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि पहले यहां बौद्ध विश्वविद्यालय भी रहा है।
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माही यशोधर Timesnowhindi.com में न्यूज डेस्क पर काम करती हैं। यहां वह फीचर, इंफ्रा, डेवलपमेंट, पॉलिटिक्स न्यूज कवर करती हैं। इसके अलावा वह डेवलपमेंट क...और देखें

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