छोटे कपड़े पहनना अपराध तो नहीं! बढ़ते क्राइम के लिए महिलाएं खुद जिम्मेदार? पुरुषों की सोच में कितनी गहराई

हमारे समाज में उन पुरुषों की तादाद बहुत अधिक है जो लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने पर दोषी ठहराते हैं न कि अपनी नजरों को! उनका मानना है कि वे छोटे कपड़े पहनकर पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। वर्तिका चंद्रा की कवर स्टोरी में महिलाओं के कम कपड़े पर पहनने पर पुरुषों की सोच-

Men thoughts About women

(प्रतिकात्मक फोटो)

महिला का तन चाहे पूरे कपड़ों से ढ़का हो या फिर मॉडर्न जमाने के छोटे-छोटे कपड़ों से। अधिकतर मामलों में पाया जाता है कि पुरुष उन्हें कामुकता की नजर से ही देखते हैं। खैर, खूबसूरत महिला को देखना कोई बुरी बात भी नहीं है। ऊपर से पढ़ी-लिखी हो और फर्राटेदार इंग्लिश में बात करने वाली हो तो पुरुष कुछ देर दिल थाम कर उसे सुन ही लेता है! अक्सर पाया जाता है कि मल्टीनेशनल कंपनियों, या अन्य प्रोफेनल या निजी संस्थानों में काम करने वाली महिला (ब्यूटी विथ ब्रेन) के सहकर्मी उससे बात करने को उत्सुक रहते हैं। हालांकि, बड़ी कपनियों के दफ्तरों में काम करने वाले पुरुषों का नजरियां महिलाओं को लेकर अलग होता है। ऐसा नहीं है कि वे कामुकता के नजरिए से नहीं देखते होंगे, लेकिन दफ्तरों में ऐसे पुरुषों की संख्या कम होती है। चूंकि, रोजाना सुंदर महिलाओं और पुरुषों का आमना-सामना होना स्वाभाविक है। ऐसे में सुंदरता को निहारना कोई नई बात नहीं। लेकिन, कहीं-कहीं पुरुष महिलाओं की तरफ आकर्षित न होकर उनके जीवन के अनुभव, काम को लेकर डेडीकेशन, न्यू आइडिया और आगे बढ़ने की क्षमता से भी प्रभावित होते हैं। लेखिका वर्तिका चंद्रा ने अपने प्रोफेशनल अनुभव के आधार पर लेख में उन बातों का जिक्र किया है, जो सामान्यत: उन्होंने दफ्तरों में कामकाजी महिलाओं के साथ होते महसूस किया है।

वर्तिका लिखती हैं कि हमारे समाज में उन पुरुषों की तादाद बहुत अधिक है जो लड़कियों के छोटे कपड़ों के पहनने पर दोषी ठहराते हैं न कि अपनी नजरों को! उनका मानना है कि वे छोटे कपड़े पहन कर पुरुषों के सामने जानबूझ कर पेश होती हैं। इस स्थिति में नजर का 'फिर' जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं! बदन पर कम कपड़े और होठो पर मुस्कान खिले चेहरे उन्हें कामुकता के लिए उकसाती है। ये सब किसी युवती और महिला के साथ व्यवहार की बात तो कहीं तक समझ आती है, लेकिन यह बात कितनी सत्य है पता नहीं। लेकिन, आज के परिदृश्य में महिलाओं और बेटियों के प्रति बढ़ रहीं घटनाएं काफी विचलित करती हैं।

बच्चियों का क्या कसूर?

यह घोर चिंता की बात है कि आज दुध मुंही बच्चियों, दो माह की बच्ची, 6 माह की बच्ची, 5 साल की बच्चियों के साथ अनाचार हो रहा है, इसमें उनका क्या दोष? जो पूरी तरह कपड़ों से ढकी हुई हैं, उन्होंने दुनिया में अभी-अभी ही आंख खोली है, इन मासूमों का क्या कसूर है? क्यों, आखिर इन नन्हें फूलों को खिलने से पहले ही कुचल दिया जा रहा है। मासूम बच्चियों के शरीर पर मिली चोटें, घाव, बर्बरता और निर्ममता से की गईं हत्याओं की तस्वीरें क्रूरता बयां करती हैं। उन मानसिक विक्षिप्त पुरुषों के वहशीपन की कोई सीमा नहीं, वे 80 साल की बूढ़ी महिला को भी कामुकता की नजर से ही देखते है। इनके लिए महिला के शरीर पर कितने कपड़े हैं यह मायने नहीं रखता है। चेहरे पर हजारों झुर्रियां, मांस छोड़ रहीं हड्डियां, कमजोर शरीर, धूंधली नजर पर जोर दिखाकर मर्दांगी का सबूत पेश करते हैं।

हम जैसे-जैसे सभ्य समाज की कल्पना करते हैं वैसे-वैसे अपराध अपने दायरे को बड़ा कर रहा है। बीते 5-6 सालों में बच्चियों और महिलाओं संग हो रहे अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिसमें अपराधी कोई और नहीं अपने करीबी, पड़ोसी, रिश्तेदार पाए गए हैं। दूध पीती बच्चियों के साथ हो रही दंरिदंगी पुरुषों की मानसिक बीमारी को इंगित करती है। इन्हें बस अपनी हवस की भूख मिटाना है। दर्द में कराह रही बच्ची हो, महिला हो, बूढ़ी औरत हो या फिर नवयुवती हो, जोर जबरदस्ती करना, उसकी चीखें सुनना, इनको अलग सुख देता है। बात ये है कि जो बच्चियां, औरतें, लड़कियां इन हादसों से नहीं बच जाती हैं, वे पूरी जिंदगी इस बुरे सपने को नहीं भूल पातीं। उनमें जिंदगी जीने की कोई स्पष्ट आशा नहीं दिखती। अलबत्ता उन्हें इस समाज में जीने के लिए अपना नाम, काम और जगह को बदलना पड़ जाता है। समाज भी उन्हें सहारा देने के बजाय उनसे दूरी बना लेता है। कानून की कमजोर बेड़ियां और समाज का दोहरापन ही तो है जो अपराधी खुलेआम शान से घूमते नजर आ जाते हैं। और पीड़िता घर की चार दीवारी के अंदर कैद होकर अपने अस्तित्व के लिए मन ही मन घुटती है-

उपरोक्त, लेख में लेखिका वर्तिका चंद्रा के अपने विचार हैं। टाइम्स नाउ नवभारत भाषा और तथ्यों से ताल्लुक नहीं रखता।

लेखिका वर्तिका चंद्रा का परिचय (वर्तिका पूर्व में पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करती रही हैं, उन्होंने महिलाओं, कुपोषण, गरीबी, रुढ़िवादी समाज इत्यादि पर लिखा है।)

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