चंद्रपुर में दिखी पुरानी सभ्यता की झलक, धरती की गहराई से निकला हजारों साल पुराना रहस्य, देखें विलुप्त हाथी के जीवाश्म

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के वर्धा-पैनगंगा नदी के संगम क्षेत्र में स्टेगोडॉन गणेशा प्रजाति के विलुप्त हाथियों के दुलर्भ जीवाश्म मिले हैं। यह ऐतिहासिक खोज महाराष्ट्र के भूशास्त्रज्ञ प्रो. सुरेश चोपणे ने की है। यह जीवाश्म करीब 25,000 से 12,000 साल पुराने माने जा रहे हैं। इस खोज के दौरान पाषाण युग के औजार भी प्राप्त हुए हैं।

Chandrpur

चंद्रपुर में ऐतिहासिक खोज

हजारों साल पुरानी धरती ने आखिरकार अपने सीने में छिपा एक रहस्य उजागर किया है! चंद्रपुर जिले के वर्धा-पैनगंगा नदी के संगम क्षेत्र में महाराष्ट्र के भूशास्त्रज्ञ प्रो. सुरेश चोपणे ने एक ऐतिहासिक खोज की है। उन्हें यहां से स्टेगोडॉन गणेशा (Stegodon elephant fossil) प्रजाति के विलुप्त हो चुके हाथियों के दुर्लभ जीवाश्म प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 25,000 से 12,000 वर्ष पुराने माने जा रहे हैं। यह खोज इसलिए खास है क्योंकि महाराष्ट्र में पहली बार प्लेइस्टोसीन युग के इस विलुप्त हाथी की जीवाश्म संरचनाएं मिली हैं। इतना ही नहीं, जीवाश्मों के साथ-साथ पाषाण युग के औजार भी मिले हैं, जिससे यह क्षेत्र उस समय मानव जीवन और जीव-जंतुओं की गतिविधियों का साक्षी रहा होगा।

ऐतिहासिक खोज में क्या मिला है?

प्रो. चोपणे द्वारा किए गए उत्खनन में हाथी की जांघ की हड्डी, खोपड़ी, छाती की हड्डियां और दांत मिले हैं। हालांकि, हाथी के दोनों लंबे दांत पूरी तरह नहीं मिले, लेकिन उनका एक महत्वपूर्ण टुकड़ा खोजा गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रजाति आज के एशियाई हाथियों के पूर्वज रही होगी। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अविनाश नंदा ने भी इस खोज की पुष्टि करते हुए कहा है कि दांतों की संरचना से यह स्पष्ट होता है कि यह स्टेगोडॉन प्रजाति ही है।

डायनासोर के बाद अब प्राचीन हाथियों की कहानी

डायनासोर के बाद पहली बार इतने विशालकाय प्राणियों के जीवाश्म विदर्भ क्षेत्र में मिले हैं। इससे पहले सिंधुदुर्ग, पुणे, सोलापुर और तेलंगाना में एशियाई हाथियों की कुछ जीवाश्म संरचनाएं मिली थीं, लेकिन स्टेगोडॉन गणेशा हाथी की खोज महाराष्ट्र में पहली बार हुई है।

2019 से चल रहा था खोज अभियान

प्रो. चोपणे वर्ष 2019 से ही इस क्षेत्र में प्लेइस्टोसीन काल के अवशेषों की खोज कर रहे थे। कोरोना काल के दौरान भी उनका सर्वेक्षण कार्य जारी रहा, और 2020-21 में पहली बार वर्धा-पैनगंगा नदी संगम के पास उन्हें ये जीवन्त प्रमाण मिले। इसके बाद 2021-22 में वरोरा तहसील में भी विशालकाय हाथी की हड्डियां पाई गईं। 2024-25 तक उनका शोध कार्य पूर्ण हुआ।

खतरे में हैं कई प्रमाण

प्रो. चोपणे ने यह भी चिंता जताई कि बीते दो-तीन दशकों में नदी में आई बाढ़ों के कारण कई महत्वपूर्ण प्रमाण बह चुके हैं, जिससे जीवाश्मों का अधूरा चित्र ही बन पा रहा है। फिर भी, उनका विश्वास है कि जमीन के भीतर अब भी कई रहस्य दबे हुए हैं, जो भविष्य में बड़े वैज्ञानिक रहस्य खोल सकते हैं। यह खोज न केवल महाराष्ट्र के लिए, बल्कि पूरे भारत के भूगर्भशास्त्र, जीवाश्म विज्ञान और इतिहास के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है। अब वैज्ञानिक समुदाय को इस दिशा में और गहराई से अनुसंधान करने की जरूरत है ताकि मानवता को हमारे अतीत के और भी राज पता चल सकें।

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    Rakesh Kamal Trivedi author

    20 सालों से अधिक टीवी पत्रकारिता के अनुभव के साथ वर्तमान में टाइम्स नाउ नवभारत चैनल के डिप्टी न्यूज एडिटर पद पर कार्यरत हैं। अपराध जगत और शोध पत्रकारि...और देखें

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