जब शिवाजी महाराज ने खत लिख औरंगजेब से कहा था- तो करूंगा तलवार का इस्तेमालः RSS चीफ ने सुनाया किस्सा

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘इस्लामी आक्रमण से पहले और हमलावरों ने हमारी जीवनशैली, हमारी परंपराओं एवं चिंतन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया। लेकिन उनका (मुस्लिम हमलावरों का) एक तर्क था: पहले, उन्होंने हमें अपनी ताकत के दम पर पराजित किया और फिर उन्होंने हमें मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दबाया।’’

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत। (फाइल)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

छत्रपति शिवाजी महाराज ने कभी औरंगजेब को खत लिखकर चेताया था कि अगर समाज में फैली गलत चीजों पर लगाम न लगी तब वह तलवार का इस्तेमाल करेंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस वाकये का जिक्र करते हुए रविवार (पांच फरवरी, 2023) को कहा, "यूपी के वाराणसी में मंदिर क्षतिग्रस्त किए जाने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को खत लिखा था। उन्होंने इसमें जिक्र किया था कि हिंदू और मुस्लिम एक ही भगवान के बच्चे हैं और उनमें से किसी भी एक पर बर्बरता गलत है। उनका काम हर किसी का सम्मान करना है और यह चीज नहीं रुकी, तब वह तलवार का इस्तेमाल करेंगे।"

ये बातें उन्होंने मुंबई के रविंद्र नाट्स मंदिर में संत शिरोमणि रोहिदास की 647वीं जन्मतिथि पर कहीं। उन्होंने यह भी बताया कि जाति और संप्रदाय को ईश्वर ने नहीं बल्कि पुजारियों ने बनाया है। यह सरासर गलत चीज थी। हमें बनाने वाले के लिए हम समान हैं। देश में विवेक और चेतना सब एक समान हैं। बस लोगों के मत अलग हैं। वह यह भी बोले, "ईश्वर को लेकर सच यह है कि वह सर्वव्यापी है। चाहे जो कोई भी नाम, योग्यता और सम्मान हों...वह सब समान हैं। इनमें कोई फर्क नहीं है। जो कुछ भी कुछ पंडितों ने शास्त्र के आधार पर कहा है, वह झूठ है। हम जाति श्रेष्ठता के भ्रम से भ्रमित हैं। हमें इस भ्रम को दूर करना होगा।"

उन्होंने आगे बताया, "जब हम जीवन यापन करते हैं तब हमारी समाज के प्रति भी जिम्मेदारी होती है। समाज के लिए जब हर काम अच्छा है, तब कोई भी काम कैसे बड़ा-छोटा या भिन्न हो सकता है?" वह आगे बोले- हमें बनाने वाले के लिए हम समान हैं। कोई जाति या संप्रदाय नहीं है। ये मतभेद हमारे पुजारियों ने पैदा किए थे, जो कि गलत था।"

रविवार को उन्होंने यह भी बताया कि श्रम के प्रति सम्मान की भावना की कमी देश में बेरोजगारी के मुख्य कारणों में से एक है। बकौल भागवत, ‘‘लोग चाहें किसी भी तरह का काम करें, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। श्रम के लिए सम्मान की कमी समाज में बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है। काम के लिए चाहे शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो या बुद्धि की, चाहे इसके लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता हो या ‘सॉफ्ट’ कौशल की - सभी का सम्मान किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘हर कोई नौकरी के पीछे भागता है। सरकारी नौकरियां केवल करीब 10 प्रतिशत हैं, जबकि अन्य नौकरियां लगभग 20 प्रतिशत हैं। दुनिया का कोई भी समाज 30 प्रतिशत से अधिक नौकरियां उत्पन्न नहीं कर सकता।’’ उनके मुताबिक, जिस काम में शारीरिक श्रम की जरूरत होती है, उसे अब भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है।

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘अस्पृश्यता से परेशान होकर डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ दिया लेकिन उन्होंने किसी अन्य धर्म को नहीं अपनाया और गौतम बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग को चुना। उनकी शिक्षाएं भारत की सोच में भी बहुत गहराई तक समाई हुई हैं।’’ (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)

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अभिषेक गुप्ता author

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