Mumbai News: महा शिवरात्रि पर जानें जुहू के मुक्तेश्वर मंदिर के बारे में ये खास बातें
Mumbai News: मुंबई का जुहू का मुक्तेश्वर मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। कई हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित इस मंदिर का माहौल बहुत अच्छा और शांतिपूर्ण है। भारत में अपनी तरह का अनोखा 7 मंजिला मंदिर है, जहां भक्त सनातन धर्म और संस्कृति के अलग-अलग रूपों को एक ही स्थान पर देख सकते हैं।
मुंबई में मुक्तेश्वर मंदिर काफी मशहूर (फाइल फोटो)
मुख्य बातें
- मुक्तेश्वर मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है
- इस मंदिर का माहौल बहुत शांतिपूर्ण है
- भारत में अपनी तरह का अनोखा 7 मंजिला मंदिर है
Mumbai News: मुंबई के जुहू में मुक्तेश्वर मंदिर है, जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। मुक्तेश्वर मंदिर जुहू में इस्कॉन मंदिर के ठीक सामने स्थित सात मंजिला मंदिर है। कई हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित इस मंदिर का माहौल बहुत अच्छा और शांतिपूर्ण है। यहां नियमित धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। कई पर्यटक भी यहां आते रहते हैं। इसे श्री गगनगिरी महाराज श्री. पुष्पकांत अनंत म्हात्रे ने महाराष्ट्र में पहला और अनूठा मंदिर - श्री सिद्ध सनातन मंदिर बनाया। श्री मुक्तेश्वर मंदिर (जुहू) 400 साल पुराना शिव मंदिर, शनि (नवग्रह) मंदिर।
भारत में अपनी तरह का अनोखा 7 मंजिला मंदिर है, जहां भक्त सनातन धर्म और संस्कृति के अलग-अलग रूपों को एक ही स्थान पर देख सकते हैं। मूल मंदिर और नरग्रह (नौ ग्रह) में कुल एक सौ पांच मूर्तियां शामिल हैं। लिफ्ट सातवीं मंजिल के लिए उपलब्ध है। मंदिर के अंदर श्री मुक्तेश्वर की प्राचीन काल की मूर्तियां हैं।
ऐसे हुआ निर्माणइसके अलावा मुक्तेश्वर (पिंडी), गणेश, विष्णु, देवी पार्वती की पत्थर (शालिग्राम) की मूर्ति है। मंदिर में सप्तपुरुष की हनुमान और समाधि। कहा जाता है कि पेशवे के बाद इस मंदिर का निर्माण कुछ ब्राह्मणों ने करवाया था। उस समय जुहू में ब्राह्मणों की बड़ी आबादी थी। बाद में अगली पीढ़ी अपनी सुविधा के लिए गुड़गांव, दादर क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गई। उन्होंने अपनी संपत्ति वडवाल, चौकलशी पचकलशी को भी गूजर जाति के लोगों को बेच दी। इनमें से ज्यादातर ठाणे और रायगढ़ जिले से मुंबई आए थे।
इस तरह तारीख को दिया अंतिम रूपमुंबई नगर निगम ने जुहू-वे (वर्तमान में श्री मुक्तेश्वर मंदिर मार्ग) को चालीस फीट चौड़ा करने और गांधी ग्राम रोड को 30 फीट तक चौड़ा करने के लिए कुछ जमीन ली। इस दौरान श्री पुष्पकांत म्हात्रे ने सोचा कि मंदिर का जीर्णोद्धार भारतीय पुरातत्व के अनुसार होना चाहिए। ट्रस्टियों ने तदनुसार 24 नवंबर 1984 के दिन को अंतिम रूप दिया। उन्होंने श्री गगनगिरी महाराज को जीर्णोद्धार निर्माण का भूमि-पूजन करने के लिए आमंत्रित किया। शिलान्यास करते समय श्री गगनगिरी महाराज ने श्री म्हात्रे को हेमांड-पंथी पद्धति से मंदिर का निर्माण करने को कहा। इसलिए ट्रस्टियों ने माननीय वास्तु वैज्ञानिक बीजी उर्फ भानुदास भट को मंदिर की योजना बनाने को कहा। उन्होंने इसे बिना किसी शुल्क के किया।
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