नैनीताल की पूरी कहानी : कब और किसने बसाया, झील में पानी कहां से आया ; जानें पूरा इतिहास

नैनीताल की खूबसूरती देखकर आज भी लोग अचंभित रह जाते हैं। आधुनिक युग में अंग्रेजों ने नैनीताल को खोजा था, जबकि पौराणिक युग में त्रि-ऋषि यहां पर आए थे। नैनीताल को कब और किसने बसाया, यहां की झील कैसे बनी और कहां से इसमें पानी आया। नैनीताल का पूरा इतिहास यहां जानें -

नैनीताल की कहानी

नैनीताल, यह नाम सुनते ही तन-बदन में ठंडक और सुकून का एहसास होता है। नैनीताल बहुत से लोगों का ड्रीम डेस्टीनेशन है। यह सिर्फ एक पहाड़ी शहर (Hill Station) ही नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की संस्कृति का शोरूम भी है। देश-दुनिया से हर साल लाखों लोग नैनीताल की वादियों में घूमने के लिए आते हैं। नैनीताल का मुख्य आकर्षण यहां की नैनी झील ही है। इसके अलावा पहाड़ पर बसे नैनीताल शहर की शुद्ध आबो-हवा पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती है। नैनीताल एक हिल स्टेशन होने के साथ ही पवित्र धार्मिक स्थल भी है। यहां का इतिहास भी रोचक है और हिंदू मान्यताओं के अनुसार भी इस जगह का अपना विशेष महत्व है। चलिए जानते हैं नैनीताल की पूरी कहानी -

स्कंद पुराण में नैनीताल

हिंदू मान्यताओं के अनुसार नैनीताल का इतिहास पुरातन काल और पौराणिक युग तक जाता है। स्कंद पुराण के मानस खंड में इस जगह को 'त्रि-ऋषि सरोवर' यानी तीन ऋषियों का कहा गया है। यह तीन ऋषि कोई और नहीं बल्कि महान अत्री ऋषि, पुलस्थ्य ऋषि और पुलाहा ऋषि थे। जगह का नाम त्रि-ऋषि सरोवर पड़ने के पीछे कहानी यह है कि यह तीनों ऋषि मानसरोवर की यात्रा करके इस क्षेत्र में पहुंचे थे। इस इलाके में तीनों ऋषियों को कहीं भी पानी नहीं मिला, जिसके बाद उन्होंने यहां एक बड़ा सा गड्ढा खोद दिया। ऋषि अपने साथ कमंडल में मानसरोवर का पवित्र जल लेकर आए थे, वही उन्होंने उस बड़े से गड्ढे में उड़ेल दिया। इसीलिए कहा जाता है कि नैनीताल के ताल में मानसरोवर का जल है और यहां पर डुबकी लगाने का महत्व मानसरोवर में डुबकी लगाने जितना ही है।

देवी सती से जुड़ी कहानी

राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की अर्धांगिनी सती से भी नैनीताल की कहानी जुड़ी है। राजा दक्ष ने यज्ञ किया और अपमान करने की मंशा के साथ अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। अपने पति के अपमान से आहत देवी सती ने यज्ञ कुंड में अपनी आहूति दे दी। देवी सती के जाने से भगवान शिव काफी आहत हुए और वह देवी के शव को लेकर ब्रह्मांड में भटक रहे थे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से देवी सती के शरीर को कई हिस्सों में काट दिया, ताकि भगवान शिव अपनी मन: स्थिति को ठीक कर सकें। जहां-जहां देवी सती का कोई अंग गिरा, वहां-वहां शक्ति पीठ बने। देशभर में मौजूद 64 शक्तिपीठों में से एक यहां नैनीताल में है। माना जाता है कि नैनीताल में देवी सती की बायीं आंख यानी नयन गिरा, जिसके कारण इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। नैनीताल की झील का आकार भी आंख की तरह है। यहां मल्लीताल में ताल के किनारे आज भी देवी का मंदिर है और उन्हें यहां नयना देवी के रूप में पूजा जाता है।

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