गंगा के मायके में : यहां अलकनंदा में समा जाती है नंदाकिनी, जानिए कृष्ण के जन्म से क्या है नंदप्रयाग का संबंध

पतित पावनी गंगा के मायके की सैर में आज चलते हैं नंदप्रयाग। Nandprayag वह जगह है, जहां पर नंदाकिनी और अलकनंदा का संगम होता है। नंदप्रयाग का संबंध भगवान श्री कृष्ण के जन्म से भी है। यह क्रांतिकारियों की भूमि है, ऐतिहासिक भूमि है और चारधाम यात्रा मार्ग का प्रमुख पड़ाव है।

गंगा के मायके में - नंदप्रयाग

नंदप्रयाग : गंगा के मायके की यात्रा में आज चलते हैं नंदप्रयाग। भारत भूमि को जीवन का वरदान देने वाली गंगा के मायके की इस यात्रा में नंदप्रयाग (Nandprayag) बहुत ही अहम पड़ाव है। यह पंच प्रयागों में से एक है। जिस तरह से विष्णुप्रयाग (Vishnuprayag) में धौलीगंगा (Dhauliganga) और अलकनंदा (Alaknanda) का संगम होता है। उसी तरह से नंदप्रयाग में एक और प्रमुख नदी आकर अलकनंदा में मिलती है। नंदप्रयाग में नंदाकिनी नदी (Nandakini River) आकर अलकनंदा की धारा में समा जाती है और इसे विशाल रूप देती है। विष्णुप्रयाग और नंदप्रयाग के बीच और भी कई छोटी-छोटी जलधाराएं आकर अलकनंदा में मिलती हैं। लेकिन नंदाकिनी और नंदप्रयाग की बात ही कुछ और है। तो चलिए जानते हैं नंदप्रयाग के बारे में -

कहां है नंदप्रयाग

नंदप्रयाग, उत्तराखंड के चमोली जिले में एक छोटा सा कस्बा और नगर पंचायत क्षेत्र है। यह शहर नंदाकिनी और अलकनंदा के संगम के पास बसा है। बदरीनाथ धाम के पास सतोपंथ ग्लेशियर से निकलने वाली अलकनंदा और हिमालय की नंदा देवी चोटी की घाटी से निकलने वाली नंदाकिनी नदियां यहां आकर मिलती हैं। नंदाकिनी नदी यहां आकर अलकनंदा नदी में समाकर अपनी करीब 56 किमी लंबी यात्रा समाप्त करती है। यह छोटा सा कस्बा कर्णप्रयाग से करीब 18 किमी की दूरी पर है और चारधाम यात्रा मार्ग पर है। गोपेश्वर की दूरी यहां से करीब 16 किमी और रुद्रप्रयाग की दूरी करीब 53 किमी है। बदरीनाथ जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए यह एक मुख्य पड़ाव है। यह क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी है।

नंदप्रयाग की अपनी कहानी

नंदप्रयाग का नाम पूर्व में महर्षि कन्वा के नाम पर कंदासु था, जो बाद में बदल गया। कहा जाता है नंदप्रयाग एक समय यदु राजवंश की राजधानी हुआ करता था। राजा नंद ने एक पत्थर पर यज्ञ किया था, जिसे बाद में यहां मौजूद नंद मंदिर को बनाने में प्रयोग में लाया गया। कहा जाता है कि नंद ने भगवान विष्णु को खुश किया और उन्होंने नंद की इच्छापूर्ति करते हुए उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वचन दिया। ऐसा ही वरदान भगवान विष्णु ने देवकी को भी दिया था। अंतत: सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने देवकी की कोख से कृष्ण के रूप में जन्म लिया, जबकि नंद ने उन्हें पाला, इसीलिए वह नंदलाल कहलाते हैं। नंदप्रयाग में आज भी भगवान कृष्ण का मंदिर है। कहा जाता है कि यहां नंदाकिनी और अलकनंदा के संगम पर पवित्र डुबकी लगाने से व्यक्ति को सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। समुद्रतल से 1358 मीटर की ऊंचाई पर नंदप्रयाग खूबसूरत वादियों, वनस्पति और वन्यजीवन के लिए मशहूर है। एक अन्य कहानी के अनुसार राजा दुष्यंत ने यहीं पर शकुंतला से विवाह किया था। स्वतंत्रता आंदोलन में भी नंदप्रयाग ने अहम भूमिका निभाई और यह आंदोलन का स्थानीय केंद्र था।

नंदप्रयाग में क्या देखें

नंदप्रयाग में पवित्र संगम के अलावा चंडिका मंदिर, गोपालजी मंदिर और शिव मंदिर में भी प्रार्थना कर सकते हैं। नंदप्रयाग में आप सुबह और शाम को नेचर वॉक का लुत्फ ले सकते हैं। ट्रैक करके यहां की चोटियों पर चढ़ सकते हैं और हिमालय का पैनोरमिक व्यू ले सकते हैं। यहां पास में ही एक छोटा गांव है, जिसका नाम बंगाली है... यहां की खूबसूरती और पहाड़ी लाइफस्टाइल आपका मन मोह लेगा। अगर आप मेडिटेशन करना चाहते हैं तो यह बहुत अच्छी जगह है। यहां की स्वच्छ हवा में सांस लेकर आपके फेफड़े आपको बार-बार थैक्यू कहेंगे।
End Of Feed