Navratri 2024: एकता की मिसाल है यह मूर्तिकार, कला की सौंदर्यता से महकते हैं हाथ; अब्दुल खलील को क्यों है हिंदू प्रतिमाएं बनाने में रुचि?

Navratri 2024: 'सेवा ही धर्म है', यहां हर धर्म में अपनी रुचि रखने वाले मूर्तिकार अब्दुल खलील हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाने में माहिर हैं। उनकी कला की सौंदर्यता से हिन्दु-मुस्लिम भाईचारा की खुशबू निखरती है। जानें अब्दुल खलील ने इस पेशे को कैसे अपनाया और इसमें उन्हें इतनी गहरी आस्था क्यों है?

मूर्तिकार अब्दुल खलील

Navratri 2024: भारत सद्भाव का देश है। यहां सर्वधर्म समभाव की परंपरा देखने को मिलती रही है। विभिन्न समुदायों और जातियों की भिन्नता के बावजूद मिलजुल कर त्योहारों में शरीक होने की झलक दिखाई देती है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन समेत सभी धर्मों के लोग देश की अखंडता पर विश्वास रखते हैं। इसकी झलक नवरात्रि के त्योहार पर झांसी में देखने को मिलती है। जी, हां कौन कहता है कि मुस्लिम समाज में हिन्दु देवी देवताओं के प्रति श्रद्धा नहीं होती है। यदि आपका ऐसा सोचना है तो यह गलत होगा। क्योंकि बुन्देलखण्ड की झांसी नगरी में एक मुस्लिम युवक नवरात्रि उत्सव के लिये देवी मां की मूर्तियों को मनमोहक स्वरूप देने की लगन से काम करता है। यह काम वह पैसों के लिए नहीं बल्कि, हिन्दु-मुस्लिम भाईचारा की एकता बनाने के लिये करते हैं।

मूर्तिकार अब्दुल खलील

इतना ही नहीं यह मुस्लिम मुर्तिकार हिन्दुओं के त्योहारों को भी उसी हर्षोल्लास से मनाता है। यह मूर्ति बनाने का हुनर उसे अपने पिता से विरासत में मिला है। अब तक उसने झांसी में कई प्रतिष्ठित पंडालों के लिये मूर्तियां बनाई हैं, जिनमें प्रमुखता से बंगाली समाज की कालीबाड़ी की मूर्ति हैं। इस मुस्लिम मूर्तिकार का नाम है अब्दुल खलील। यह झांसी के प्रेमनगर पुलिस नम्बर में 9 में रहता है। अब्दुल खलील अपना और अपने परिवार के भरण पोषण के लिये एल्युमीनियम फिटिंग का काम कर पूरा करता है।

मूर्तिकार अब्दुल खलील

अब्दुल खलील का कहना है कि उसके पिता नेशनल हाफिज सिद्दीकी स्कूल में लैब टेक्नीशियन के पद पर काम करते थे। उनके पिता मूर्ति बनाने की कला को लेकर काफी उत्साहित रहते थे। जब वह काफी छोटा था। तभी झांसी में कालीबाड़ी की मूर्ति बनाने के लिये आने वाले बंगाली मूर्तिकारों से उसके पिता की मुलाकात हो गई। उसके पिता ने इस कला को सीखने के लिये बंगाली मूर्तिकार को अपना गुरु बना लिया और जब वह मूर्तिकार झांसी में आकर कालीबाड़ी की मूर्ति बनाता तो उसके पिता उस मूर्तिकार के साथ रहकर मूर्ति बनाना सीख गये और एक अच्छे मूर्तिकार बन गये थे। इसके बाद धीरे-धीरे अब्दुल खलील इस मूर्ति बनाने की कला को लेकर उत्साहित हो गया और उसने अपने पिता से इस हुनर को सीख लिया।
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