12 साल बाद फिर खिला ये फूल, अब नहीं देखा तो फिर 12 साल का इंतजार करना पड़ेगा
नीलकुरिंजी का फूल 12 साल में एक बार खिलता है। जब यह फूल खिलते हैं तो पूरा का पूरा पहाड़ नीले रंग से रंग जाता है। शायद आप नहीं जानते होंगे कि एक समय पर नीलकुरिंजी के फूल को उम्र की गणना के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। चलिए जानते हैं -
नीलकुरिंजी के फूल
12 साल बाद जिस फूल के खिलने की बात हो रही है, उसे नीलकुरिंजी कहा जाता है। जब बात 12 साल बाद फूल खिलने की आती है तो यकायक 12 साल बाद आने वाला महाकुंभ, साल के 12 महीने और देश में 12 ज्योतिर्लिंग भी याद आते हैं। हालांकि, 12 साल में खिलने वाले इस नीलकुरिंजी फूल का महाकुंभ, 12 महीने और 12 ज्योतिर्लिंग से कोई संबंध नहीं है। लेकिन जब ये फूल खिलता है तो पूरा का पूरा पहाड़ इसके रंग में रंग जाता है। चलिए जानते हैं इस फूल की कहानी -
कहां खिला नीलकुरिंजी का फूल12 साल बाद यह फूल खिला है तो सबसे पहले यही जान लेते हैं कि यह फूल कहां खिला है। अगर आप भी इस फूल को देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको तमिलनाडु में नीलगिरी की पहाड़ियों में जाना होगा। यहां नीले रंग का यह फूल उटागई की पहाड़ियों के पास खिले हुए हैं। यह पहाड़ टोडा जनजातीय गांव पिक्कापथी मांडू के पास है। यह फूल वेस्टर्न घाट के पहाड़ों और नीलगिरी की पहाड़ियों के साथ ही हिमालय में भी पाए जाते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि नीलकुरिंजी फूल के कारण ही नीलगिरी को उसका यह नाम मिला।
नीलकुरिंजी
40 से ज्यादा वैरायटी के नीलकुरिंजी फूलनीलकुरिंजी फूल को स्ट्रॉबिलैंथेस कुंठियाना नाम से भी जाना जाता है। इस फूल की 40 से भी ज्यादा वैरायटी हैं। इनमें से ज्यादातर नीले रंग के होते हैं। नीलकुरिंजी को उसका यह नाम भी उसके नीले रंग के कारण ही मिला है। नील यानी नीला और इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोग इस फूल को कुरिंजी कहते हैं। इन दोनों शब्दों को मिलाकर इसका नाम नीलकुरिंजी पड़ गया।
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12 साल में कब खिला है फूलनीलकुरिंजी के फूल हर 12 साल में एक बार अगस्त से अक्टूबर के बीच खिलते हैं। ऊंचे पहाड़ों पर नीलकुरिंजी के पौधे या झाड़ी की ऊंचाई 2 फीट और निचले इलाकों में 5-10 फीट तक होती है। 12 साल में एक बार जब नीलकुरिंजी के फूल खिलते हैं तो इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इसके लिए विसेष टूर और ट्रैक आयोजित किए जाते हैं।
उम्र की गणना होती थी इस फूल सेनीलकुरिंजी के फूल का इतिहास काफी पुराना है और तमिल संगम लिटरेचर में पहली सेंचुरी की कविताओं में भी इसका जिक्र मिलता है। तमिलनाडु में रहने वाले मुथुवन और पलयन जनजातियों के जीवन में इस फूल का खिलना एक अहम चरण था। यह जनजातियां इसी फूल के खिलने के 12 साल के चरण से उम्र की गणना करते थे। नीलकुरिंजी फूल का खिलना उनके जीवन का एक बायोलॉजिकल कैलेंडर था।
फूल का सांस्कृतिक पक्षयह फूल पश्चिमी घाट के क्षेत्र में रहने वाले मूल निवासियों के लिए सांस्कृति महत्व रखता है। इस फूल को अक्सर स्थानीय रीति-रिवाजों, त्योहारों और कथाओं से जोड़ा जाता है। नीलकुरिंजी के फूल को लुप्त होने से बचाने से पश्चिमी घाट में रहने वाले मूल निवासियों के रीति-रिवाजों और उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाने में भी मदद मिलेगी।
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