हाईवे से गायब होने वाले हैं टोल प्लाजा, टैक्स देने के झंझट को टाटा बाय-बाय
New Toll Tax System : राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने हाईवे से फिजिकल टोल बूथों को पूरी तरह खत्म का प्लान तैयार कर रहा है। सरकार ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (Global Navigation Satellite System) (जीएनएसएस) पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संगह लागू कर टैक्स वसूलेगी।
हाइवे से हटेंगे टोल प्लाजा
हाइलाइट्स
- हाईवे-एक्सप्रेसवे पर टोल बूथ का झंझट होगा खत्म
- सरकार फिजिकल बूथों से निर्भरता को खत्म करने का बना रही प्लान
- ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम से वसूला जाएगा टोल टैक्स
- इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के लिए दुनिया के तमाम देशों से मांगे गए प्रस्ताव
- फास्टैग व्यवस्था के भीतर ही GNSS आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन प्रणाली का प्लान
New Toll Tax System : भारत में हाईवे और एक्सप्रेसवे पर सफर के एवज में टैक्स चुकाने का प्रावधान है। इसके लिए निश्चित दूरी पर टोल बूथ तैयार किए गए हैं। इन बूथों पर शुल्क वसूलने के लिए कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन अब सरकार फिजिकल बूथों से निर्भरता को खत्म करने का प्लान बना चुकी है। सरकार के प्लान के मुताबिक, ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल (Electronic Toll) संगह लागू किया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर उपग्रह आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के लिए दुनिया के तमाम देशों से प्रस्ताव मांगे हैं। तो आइये जानते जीएनएसएस लागू होने के बाद किस विधि से टोल वसूला जाएगा और इसके लिए कौन सी तकनीकी कारगर साबित होने वाली है?
इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (Electronic Toll Collection
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Union Road Transport Minister Nitin Gadkari) ने बताया कि इस नए सिस्टम के लागू होने से देश के कुल टोल कलेक्शन में 10,000 करोड़ रुपये तक की वृद्धि हो सकती है। फिलहाल, आंकड़ों के आधार पर सालाना टोल संग्रह 35 फीसदी बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 64,809.86 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। लेकिन, अब पुराने ढर्रे को खत्म कर नए आधुनिक तकनीकी का उपयोग होने की गुंजाइश दिख रही है। इस कदम का उद्देश्य नेशनल हाईवे पर फिजिकल टोल बूथों को खत्म करना है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) मौजूदा फास्टैग व्यवस्था (Fastag System) के भीतर ही जीएनएसएस (GNSS) आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) प्रणाली को लागू करने के प्लान पर कार्य कर रहा है। जानकारी के मुताबिक, शुरुआती दौर में हाइब्रिड मॉडल का उपयोग किया जाएगा, जहां आरएफआईडी-आधारित ईटीसी और जीएनएसएस-आधारित ईटीसी दोनों एक साथ काम करेंगे।
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हाईब्रिड मॉडल पर बनेंगे हाईवे-एक्सप्रेसवे
फिलहाल, देश में बड़ी संख्या में हाईटेक हाईवे और एक्सप्रेसवे संचालित हैं या निर्माणाधीन हैं और कुछ आने वाले सालों में जनता को समर्पित किए जाएंगे। लेकिन, अब इस तकनीकी को ट्रायल करने के लिए हाईवे निर्माण होने के लिए हाईब्रिड मॉडल (एचएएम) को लचीला और बाजार संचालित बनाया जा सकता है। फिलहाल, एचएएम मॉडल (HAM Model) के तहत सरकार डेवलपर कंपनी को काम शुरू करने के लिए परियोजना की लागत 40 फीसदी हिस्सा मुहैया करती है, जबकि शेष निवेश निर्माण कंपनी को करना होता है। उधर, गडकरी ने खुद कहा मेरा मानना है कि बुनियादी ढांचे का विकास ठेकेदारों की ओर से ही किया जाना चाहिए।
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केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने कहा कि अगर, एचएएम मॉडल के तहत ठेकेदार प्रोजेक्ट की लागत का 60 फीसदी से अधिक निवेश को तैयार है तो भी सरकार को 40 प्रतिशत हिस्सा क्यों निवेश करना चाहिए। उन्होंने, कहा कि राजमार्ग का निर्माण पूरा होना जरूरी है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि राज्य परिवहन बसों को राजमार्गों पर टोल का भुगतान करने छूट जानी चाहिए।
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कर्मचारियों से मुक्त होंगे टोल बूथजीएनएसएस के आने से टोल बूथ पूरी तरह कर्मचारी मुक्त होंगे। पुराने सिस्टम में टोल प्लाजा पर ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत पड़ती थी। फिर, उस बोझ को कम करने के लिए फास्टैग (FASTag) सिस्टम लाया गया, लेकिन, फिर भी टोल प्लाजा पर वाहनों की लंबी कतारें कम होने का नाम नहीं लेती हैं। लिहाजा, अब जीएनएसएस सिस्टम लाने पर बात चल रही है। इससे कारों में सैटालाइट और ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर तय दूरी का आंकलन किया जाए और उस दूरी में पड़ने वाले टोल के आधार टोल टैक्स वसूला जाएगा।
ऐसे काम करेगा GNSSफास्टैग से अलग, सैटेलाइट-आधारित जीपीएस टोल कलेक्शन सिस्टम, ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर काम करता है, जो वाहनों की सटीक ट्रैकिंग करन में सक्षम होगा। ये सिस्टम दूरी के आधार पर सटीक टोल कैलकुलेशन ( Toll Calculation) के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) भारत के जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) जैसी तकनीकी का इस्तेमाल करेगा।
- इस सिस्टम के तहत वाहनों में एक ट्रैकिंग डिवाइस लगाया जाएगा, जिसे ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) कहते हैं।
- भविष्य में कार निर्माता पहले से ही ऐसे उपकरण कारों इन-बिल्ट कर सकते हैं। कार की कीमतों में इसकी कीमत भी ऐड होगी।
- सीसीटीवी कैमरों वाले गैंट्री सुचारू रूप से संचालित करते हुए अनुपालन की मॉनिटरिंग करेंगे। शुरुआत में इस सिस्टम को प्रमुख हाईवे और एक्सप्रेसवे पर लागू किया जा सकता है।
- इस नए सिस्टम के लागू होने से भविष्य में टोल प्लाजा की जरूरत खत्म हो जाएगी और लोगों को लंबी-लंबी कतारों के झंझट से छुटकारा मिलेगा।
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