Republic Day Special: नोएडा में स्थित है ब्रिटिश-मराठों के युद्ध की निशानी, ऐसे पहुंचे इस ऐतिहासिक स्थल पर
Noida Best Place: नोएडा का गोल्फ कोर्स निर्णायक युद्ध के स्मारक स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां पर 1803 में हुए ब्रिटिश-मराठों के बीच भीषण युद्ध को इतिहास का निर्णायक युद्ध कहा जाता है। गोल्फ कोर्स में इससे जुड़ा स्मारक स्थल बना हुआ है। यह युद्ध 200 साल से भी पहले हुआ था। गोल्फ कोर्स में तरह- तरह की सुविधाएं दी जाती हैं।
नोएडा में गोल्फ कोर्स में इस जगह पर स्थित है ऐतिहासिक ब्रिटिश मराठों के बीच की युद्ध की निशानी
- गोल्फ कोर्स में स्थित है ब्रिटिश-मराठों के बीच हुए युद्ध का स्मारक स्थल
- गोल्फ कोर्स में कॉफी शॉप, कई रेस्तरां भी हैं मौजूद
- नोएडा के सेक्टर- 43 में स्थित है गोल्फ कोर्स
बता दें कि, नोएडा का गोल्फ कोर्स शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता रहा है। नोएडा का गोल्फ कोर्स अवश्य ही देखने लायक है। गोल्फ कोर्स नोएडा सेक्टर-43 में मौजूद है। यहां का नजदीकी मेट्रो स्टेशन गोल्फ कोर्स ही है। बता दें कि, सितंबर 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी की ब्रिटिश सेना ने दिल्ली के भाग्य का फैसला करने के लिए मराठों से भीषण युद्ध लड़ा था।
यह है युद्ध की कहानीमिली जानकारी के अनुसार, युद्ध के समय दिल्ली मुगल सम्राट शाह आलम की राजधानी हुआ करती थी। मुगल सम्राट के राज प्रतिनिधि का दावित्व मराठा राजा दौलत राव सिंधिया के हाथों में था। बता दें कि, यह युद्ध जनरल जेरार्ड लेक के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों और मराठा की सेना के बीच हुआ था। इस युद्ध के बाद एक और युद्ध 12 दिन बाद महाराष्ट्र के जालना क्षेत्र में हुआ, जिसने सल्तनत के भाग्य का फैसला किया। इन युद्धों को इतिहासकारों ने ब्रिटिश-मराठा युद्ध के रूप में करार दिया है। इन युद्धों से उत्तरी भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व उभरकर सामने आया।
क्या लिखा है स्तंभ लेख मेंजानकारी के लिए बता दें कि, 1916 में निर्मित गोल्फ कोर्स के स्तंभ के अभिलेख में लिखा है कि, इस स्थान के पास सितंबर 1803 को दिल्ली की सल्तनत के लिए भीषण युद्ध हुआ था। जिसमें मराठों की सेना ने ब्रिटिश सेना का जमकर मुकाबला किया था। इस युद्ध में जनरल जेरार्ड लेक की ब्रिटिश सेना को जीत मिली थी। भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेस्ली को लिखे एक पत्र में विजयी ब्रिटिश जनरल लेक ने कहा है कि, युद्ध के लिए मराठों ने यमुना नदी को पार कर लिया था। उन्होंने ब्रिटिश सेना पर इतना जोरदार हमला बोला कि, सेना के अधिकारियों और सैनिकों को काफी नुकसान हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, मराठा सेनाएं आंतरिक मतभेद के चलते इस युद्ध को जीत नहीं पाई थीं।
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