झेला जाम का झाम, समझ नहीं आया सड़क किनारे खड़े पुलिसकर्मियों का काम, करोड़ों का हो गया काम तमाम
किसानों के दिल्ली मार्च के कारण आज उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से दिल्ली की ओर आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोगों की परेशानियों का आंखों देखा हाल जानिए और सोचिए कि जाम लगाकर हम किसका भला कर रहे हैं, क्योंकि देश को तो नुकसान ही हो रहा है।
किसानों के दिल्ली मार्च के चलते नोएडा की सड़कों पर भारी जाम
- आज उत्तर प्रदेश के किसानों के दिल्ली मार्च के चलते लगा लंबा जाम
- घंटों सड़कों पर जाम के बीच फंसे रहे दफ्तर जाने वाले लोग
- स्कूल की बसें भी फंसी जाम में, मासूम बच्चे खिड़कियों से झांकते रहे
Noida: आज उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली के लिए मार्च कर रहे हैं। किसानों के दिल्ली मार्च की खबर सुनते ही नोएडा-ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में रहने वाले लोगों की रूह सिहर उठती है। हो भी क्यों नहीं, किसानों के इस मार्च को देखते हुए पुलिस ने यहां निशेधाज्ञा यानी धारा 144 लगा दी है। सड़कों पर भारी ट्रैफिक जाम देखने को मिल रहा है। NCR के इन शहरों से दिल्ली को आने वाली सभी सड़कों पर भारी ट्रैफिक जाम की वजह से लोगों को घंटों सड़कों पर बिताने पड़ रहे हैं। ऐसे ही एक जाम का हिस्सा हम भी बने। ग्रेटर नोएडा वेस्ट से नोएडा सेक्टर 16A फिल्म सिटी तक पहुंचने के दौरान हमने जो कुछ देखा वह यहां बयां कर रहे हैं। यह सिर्फ हमारा अनुभव नहीं है, आज नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद की तरफ से दिल्ली की ओर आने वाले सभी लोगों को इस तरह का कुछ न कुछ अनुभव जरूर हुआ होगा।
घर से बाहर निकलकर जैसे ही दफ्तर को निकलने के लिए मेन रोड पर पहुंचे, जाम देखकर अंदर ही अंदर बड़बड़ाते हुए हम भी उसका हिस्सा बन गए। जिन सड़कों पर रोज गाड़ी 30-40 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थी, वहां केंचुए की तरह रेंगने लगी। कुछ दूर पहुंचने पर ऐसा ब्रेक लगा कि 10 मिनट एक ही जगह पर खड़े रहे। अब हम जाम के झाम में पूरी तरह से फंस चुके थे। गाड़ी के अंदर बैठकर सरकार और किसानों को कोसने के अलावा कुछ और काम बचा था तो खिड़की से बाहर झांकना। जैसे ही बाहर झांका...
स्कूटर में पेट्रोल खत्म, घसीटकर कितनी दूर जाओगेखिड़की से बाहर झांका तो एक व्यक्ति अपने स्कूटर को घसीटता हुआ दिखा। संभव है कि उसकी स्कूटी में पेट्रोल खत्म हो गया हो या कोई अन्य खराबी हो, क्योंकि टायर की हवा नहीं निकली थी ये हमें दिख रहा था। पेट्रोल पंप हमारी दाईं तरफ दूसरी रोड पर था, जबकि यह व्यक्ति हमारे बाएं था। बीच में डिवाडर है और आगे गोल चक्कर से ही यह व्यक्ति दूसरी सड़क पर जा सकता था। लेकिन जाम में जब गाड़ियां बंपर से बंपर चिपकाकर चल रही हों, इनके लिए गोलचक्कर से दूसरी तरफ जाना भी मुश्किल काम जान पड़ रहा था। ऐसे में मन में एक ही प्रश्न उठा कि कितनी दूर तक घसीटकर जाओगे?
एक कार की हवा ही निकल गईजैसे-तैसे गाड़ी चंद मीटर आगे बढ़ी तो सड़क की सबसे दाईं (डिवाइडर के पास वाली) लेन खाली नजर आई, जबकि बाकी सभी लेन में जाम था। हमने उत्सुकतावश उस तरफ झांका तो एक गाड़ी की डिक्की का दरवाजा खुला था। और झांका तो एक व्यक्ति कार के पिछले टायर में हवा भर रहा था। लेकिन कहना पड़ेगा कि यह व्यक्ति बहुत ही लकी था या कहें उसकी दूरदृष्टि अच्छी है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी गाड़ी में टायर इंफ्लेटर (हवा भरने वाली मशीन) थी। वरना इतने जाम के बीच सड़क के बीच में टायर फ्लैट होने की वजह से उस व्यक्ति का पूरा दिन वहां पर बीत सकता था। अब सोचें अगर उस व्यक्ति के पास टायर इंफ्लेटर नहीं होता तो उसका क्या हाल हुआ होता, जबकि किसी सामान्य दिन में वह गाड़ी को धक्का लगाकर किनारे ला सकता था। फिर वह किसी मैकेनिक को बुलाकर पंक्चर निकलवा सकता था, लेकिन इतने जाम में तो मैकेनिक भी आने से इनकार कर देता। अगर वह आने को तैयार भी हो जाता तो मनमाने पैसे वसूलता।
स्कूल बस की खिड़कियों से झांकते बच्चेकार के टायर में हवा भरते व्यक्ति को पीछे छोड़कर जैसे ही गाड़ी कुछ मीटर आगे बढ़ी हमें एक स्कूल बस दिखी। हालांकि, उस समय स्कूल बसें तो कई दिखीं, लेकिन ज्यादातर की खिड़कियां बंद थीं। लेकिन एक बस की खिड़कियां खुली हुई थीं और बच्चे उन खिड़कियों से बाहर की ओर झांक रहे थे। सुबह-सुबह घर से स्कूल जाने को निकले इन बच्चों को क्या पता था कि आज वह स्कूल में नहीं बल्कि सड़क पर कुछ और ही सबक सीखेंगे। जिस तरह से हमारी गाड़ी सड़क पर रेंग रही थी, वैसे ही इन छोटे-छोटे बच्चों की स्कूल बस भी रेंग रही थी। मासूम बच्चे बड़े ही कौतूहल से बाहर की ओर झांक रहे थे। मानो पूछ रहे हों आज हम अभी तक सड़क पर क्या कर रहे हैं? रोज तो इस समय स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं।
आंदोलनकारियों के लिए लग्जरी बस और सब बेबसस्कूटर वाली की सड़क पार करके पेट्रोल भरवाने जाने की कोशिश, जाम के बीच फ्लैट टायर में फिर हवा भरने की कार वाले की जद्दोजहद और स्कूली बच्चों की आंखों के प्रश्नों में उलझकर जब हम कुछ और आगे बढ़े तो गोलचक्कर के एक किनारे कुछ लग्जरी बसें खड़ी थीं। ये गोलचक्कर कोई और नहीं, बल्कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट का मशहूर चार मूर्ति गोलचक्कर है। लग्जरी बसें एक किनारे शान से खड़ी हैं और ऐसा लग रहा है जैसे वह अपने मेहमानों के इंतजार में हैं कि इनका महबूब आएगा और आज प्रपोज डे के दिन उन्हें गुलाब का फूल देकर अपने प्रेम का इजहार करेगा। पिछले एक घंटे में एक किलोमीटर लंबे जाम से जूझते हुए आई जनता इन खूबसूरत लग्जरी बसों की तरफ जैसे लरसाई हुई नजरों से देख रही थी।
सड़क किनारे झुंड में खड़े पुलिसकर्मीइतना ज्यादा ट्रैफिक है तो पुलिस की पहली जिम्मेदारी वहां ट्रैफिक को मैनेज करने की होनी चाहिए। लेकिन यहां तो पुलिसकर्मी सड़क किनारे खड़े थे। लग्जरी बसों के पास खड़े दर्जनभर पुलिसकर्मी बातचीत में व्यस्त नजर आए, लेकिन किसी ने भी वहां लगे ट्रैफिक जाम को खुलवाने की कोशिश भी नहीं की। शायद आज उनकी जिम्मेदारी ट्रैफिक जाम खुलवाना नहीं, बल्कि दिल्ली मार्च के लिए आने वाले किसानों को पकड़कर उस लग्जरी बस में बिठाना और फिर कहीं दूर छोड़कर आना रही होगी। लेकिन ट्रैफिक जाम में फंसे हर व्यक्ति को आपस में बातचीत के दौरान मुस्कुराते पुलिसकर्मियों के चेहरे देखकर गुस्सा जरूर आया होगा।
करोड़ों का काम तमामट्रैफिक जाम में फंसी किसी भी कार, ट्रक, बस, ऑटो या बाइक को बंद नहीं कर सकते, जैसे ज्यादातर लोग ट्रैफिक लाइट पर कर देते हैं। इससे प्रदूषण में तो बढ़ोतरी हुई ही, साथ ही 100 रुपये लीटर के करीब पहुंचा पेट्रोल जलने से भी लोग खिन्न नजर आए. इससे देश को भी करोड़ों का नुकसान हुआ। अगर बात इसी सिर्फ एक किमी की करें तो इसमें करीब 600 कारें फंसी थीं, 300 से ज्यादा बाइक, 10 से ज्यादा ट्रक, 20 से ज्यादा स्कूल या दफ्तर की बसें और अनगिनत ऑटो इस एक किमी लंबी 4 लेन सड़क में फंसे थे। अब अगर इसकी गणना रुपयों में करें तो यह आंकड़ा कुछ इस तरह का होगा -
600 कार - औसत 15 KM/L की एवरेज - एक किमी में खर्च होता है 90 लीटर पेट्रोल, जिसकी कुल लागत करीब 8730 रुपये आती है। लेकिन इस दौरान गाड़ी 1 घंटे में सिर्फ 1 किमी ही चली और उस दौरान अगर मान लें कि आधा लीटर पेट्रोल ही खर्च हुआ हो तब भी जाम के कारण इन 600 कारों ने ही करीब 30 हजार रुपये का पेट्रोल इस एक घंटे के एक किमी लंबे जाम में खर्च किया।
इसी तरह 300 से ज्यादा बाइक भी इस जाम में फंसी रहीं, जिनकी औसत एवरेज 50 किमी प्रति लीटर होती है। ऐसे में जाम में फंसने के दौरान अगर उनका आधा लीटर पेट्रोल भी ज्यादा लगा तो जाम में उन्होंने भी करीब 15 हजार रुपये का पेट्रोल यहां जलाया। 10 से ज्यादा ट्रक और 20 से ज्यादा बसें और असंख्य ऑटो रिक्शे भी घंटों तक इस जाम में फंसे रहे। पेट्रोल, डीजल खरीदने के लिए देश लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च करता है। क्योंकि यह ईंधन देश में पैदा नहीं होता तो विदेशी मुद्रा का नुकसान देश को उठाना पड़ता है। ऐसे में इस तरह के जाम का सीधा नुकसान देश की अर्थव्यवस्था को भी होता है। इस दौरान अगर कोई एम्बुलेंस इस जाम में फंस जाए तो इमरजेंसी में मरीज की जान बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। सुबह-सुबह तरोताजा होकर, नई ऊर्जा से साथ दफ्तर और स्कूलों को निकले लोगों और बच्चों ने अपनी ऊर्जा इस जाम में गंवा दी सो अलग। यानी उन्होंने अपनी आज की उत्पादकता का एक बड़ा हिस्सा इस जाम की वजह से गंवा दिया।
ये सिर्फ एक जगह से जाम की कहानी है। किसानों के दिल्ली मार्च की वजह से आज दिल्ली की सीमाओं को सील किया गया है, इसलिए हर तरफ जाम का झाम है। बात सिर्फ इस दिल्ली मार्च की नहीं है। ऐसा कोई भी जाम देश को भारी पड़ता है। इससे देश को आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही सड़कों पर लोग अपने काम के घंटों को बरबाद करते हैं, जिसमें वह देश को आगे ले जाने के लिए कुछ काम कर सकते थे।
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