Chhath Puja: छठ पर ठेकुआ का स्वाद बढ़ा रहा लालगंज का 'सांचा', दिल्ली-कोलकाता भी होता है सप्लाई
Chhath Puja 2024: छठ महापर्व की शुरुआत आज से हो गई है। लोकआस्था के इस पर्व में प्रसाद के तौर पर ठेकुआ बनता है। ठेकुआ के सांचे के लिए वैशाली का लालगंज काफी फेमस है। यहां लकड़ी से खास सांचा बनाया जाता है, जिसकी मदद से ठेकुआ की डिजाइन और रूप और खास हो जाता है। छठ के दौरान इस सांचे की डिमांड बहुत बढ़ जाती है।
ठेकुआ का सांचा
Chhath Puja 2024: छठ पर्व के आते ही बिहार में ठेकुआ की मिठास का उत्साह छा जाता है। इस पारंपरिक मिठाई की खासियत इसकी आकर्षक बनावट और अनोखा स्वाद है। लेकिन, इसका आकर्षण यूं ही नहीं बनता है। वैशाली के लालगंज में तैयार एक विशेष सांचा की मदद से ही यह निखरकर सामने आता है। लालगंज में तैयार होने वाला ठेकुआ का सांचा न केवल इसे एक खास रूप और डिज़ाइन देता है, बल्कि इसे आकर्षक भी बनाता है। इन सांचे से तैयार ठेकुआ ही इस लोकपर्व को और भी खास बना देता है। आटे और गुड़ से बने ठेकुआ के बिना महापर्व छठ की कल्पना भी नहीं की जाती। छठ का नाम आते ही प्रसाद के रूप में ठेकुआ की तस्वीर सामने आ जाती है। बहुत कम लोगों को मालूम होता है कि जिस सांचे से ठेकुआ बनाया जा रहा है, उस लकड़ी के सांचा को विशेष तौर पर बनाया जाता है।
लकड़ी के कारोबारा से जुड़े कई परिवार
वैशाली के लालगंज में एक नहीं, बल्कि अनेक परिवार लकड़ी के कारोबार से जुड़े हुए हैं। यहां लकड़ी के कई घरेलू सामान बनाए जाते हैं, लेकिन छठ पर्व का विशेष इंतजार इन कारोबारियों को रहता है। छठ पर्व के दो माह पूर्व से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। लकड़ी से बने सांचा पर ही छठव्रती गेहूं के आटा का ठेकुआ बनाती हैं। लकड़ी के बने सांचे पर तरह-तरह के डिजाइन होते हैं, जिस पर गेंहू के आटा को रखकर ठेकुआ को और आकर्षक बनाया जाता है।
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आम और शीशम की लकड़ी से बनता है सांचा
एक अनुमान के मुताबिक, लालगंज में करीब 600 लोग लकड़ी कारोबार से जुड़े हैं। लालगंज के कारीगर अमरेश बताते हैं कि इस सांचे का खास महत्व है। इसे बनाने में विशेष तौर पर आम और शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। आम की लकड़ी आमतौर पर पूजा पाठ में इस्तेमाल की जाती है। यहां के बने सांचे बिहार के करीब सभी शहरों में जाते हैं। इसके अलावा कोलकाता और दिल्ली भी भेजा जाता है।
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एक से छह नंबर साइज का बनता है सांचा
उन्होंने बताया कि हम लोग यहां बड़े व्यापारी को सामान बनाकर दे देते हैं और वह फिर अन्य बड़े शहरों तक भेजता है। एक अन्य कारीगर संजय कुमार बताते हैं कि छठ में सांचे की मांग बढ़ जाती है। यह सांचा हर घर तक पहुंचता है, क्योंकि ऐसा कोई घर नहीं है, जहां कभी छठ नहीं हुआ है। इसकी कीमत नंबर के आधार पर तय होती है। एक नंबर से छह नंबर तक सांचा बनाया जाता है। सभी नंबरों के अलग-अलग साइज है। यहां सांचा छह से लेकर 30 रुपये तक उपलब्ध होता है।
(इनपुट - IANS)
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