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Patna Navaratri 2022: असुर चंड का वध कर कहलाई मां रणचंडी, विश्वामित्र ने रखा था तारा नाम, जानें मंदिर की कहानी

सासाराम में हजारों वर्ष प्राचीन मां ताराचंडी का मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। सनातन धर्म की 51 शक्तिपीठों में से इसे एक माना जाता है। यहां पर मां शक्ति की दाहिनी आंख गिरने का कथाओं में उल्लेख है। मंदिर में मौजूद शिलालेख से इसके 11वीं शताब्दी में भी मौजूद होने का प्रमाण है। मां को यहां सिर्फ हलवा- पूरी का भोग अर्पित करते हैं।

Sasaram Tara Chandi Devi TempleSasaram Tara Chandi Devi TempleSasaram Tara Chandi Devi Temple

सासाराम स्थित मां तारा चंडी का मंदिर

मुख्य बातें
  • मां ने दैत्य चंड का सहांर किया तो चंडी नाम पड़ा।
  • कैमूर पर्वतों की तलहटी में है स्थित गुफा में मां दुर्गा का स्थान है
  • मंदिर में मौजूद शिलालेख से इसके 11वीं शताब्दी में भी मौजूद होने का प्रमाण मिलता है।

Patna Navaratri 2022: बिहार के सासाराम में हजारों वर्ष प्राचीन मां ताराचंडी का मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर की अतीत में कई चमत्कारों से भरी कथाएं जुड़ी हैं। सनातन धर्म की 51 शक्तिपीठों में से इसे एक माना जाता है। यहां पर मां शक्ति की दाहिनी आंख गिरने का कथाओं में उल्लेख है। मंदिर में मौजूद शिलालेख से इसके 11वीं शताब्दी में भी मौजूद होने का प्रमाण है। मान्यता है कि, यहां आने वाले भक्तों की मां हर कामना पूरी करती है।

जिसके चलते इसे मनोकामना सिद्धि मां भी कहा जाता है। नवरात्रि के मौके पर इस शक्तिपीठ में बिहार के अलावा देश के कई हिस्सों से श्रद्धालु मां के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। सासाराम में स्थित कैमूर पर्वतों की तलहटी में स्थित गुफा में मां का स्थान है। मां को शाकाहारी मानते हुए पुजारी व भक्त यहां सिर्फ हलवा- पूरी का भोग अर्पित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक सदियों से यहां दीपदान की परंपरा चली आ रही है, जो आज भी जारी है। नवरात्रि की पूजा के दौरान जंगल का ये इलाका हजारों दीपों की रोशनी से चमक उठता है। शुद्ध घी के दीपों की लौ पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है।

असुर चंड का वध कर कहलाई चंडी

मंदिर के पुजारियों के मुताबिक, यहां पर मां कन्या के स्वरूप में प्रकट हुई थी। मां ने दैत्य चंड का सहांर किया तो चंडी नाम पड़ा। महर्षि विश्वमित्र ने मां का नाम तारा रखा था। इसके बाद ही देवी ताराचंडी कहलाई। पौराणिक कथाओं के मुताबिक सहस्त्रबाहु नामक राक्षस का वध करने के बाद इस स्थान पर भगवान परशुराम ने मां ताराचंडी की उपासना की थी। नवरात्रि में मां के उपासक भंडारे लगाते हैं। दंत कथाओं के मुताबिक मां की नवरात्रि में उपासना करने से मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं। इसलिए इन दिनों में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

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