पटना शहर कब और क्यों बसाया गया, जानें पाटलिपुत्र से पटना तक की पूरी कहानी
पटना का पूर्व में नाम पाटलिपुत्र था, यह तो आप जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शहर को किसने बनाया और उसे यह नाम किसने दिया। इस शहर का चंद्रगुप्त मौर्य, शेरशाह सूरी, अकबर और औरंगजेब से क्या संबंध है। साथ ही जानिए भगवान गौतम बुद्ध ने इस शहर के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी।
पटना शहर का इतिहास
एक पेंट बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन के बोल थे, 'हर रंग कुछ कहता है...' इसी तरह हर शहर भी कुछ कहता है। हर शहर की भी अपनी कहानी होती है। जरूरत है तो बस उस शहर को सुनने वालों की, उसकी कहानी पर गौर करने वालों की। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास किसी की कहानी सुनने का समय ही कहा हैं? ऐसे में कहानी शहर की होगी तो संभव है कि वह बड़ी भी होगी। हालांकि, शहरों के बनने, उनको बसाए जाने और उनके नामकरण की कहानी होती रोचक है। अगर आप एक बार सुनने या पढ़ने बैठ जाएं तो यह अपने रोमांच में आपको बांध लेती है। इतिहास के पन्नों में बल खाती, ये कहानी आपको वर्तमान में रहते हुए भूत में झांकने का बहुत ही शानदार अवसर देती है। तो फिर देर किस बात की। चलिए आज जानते हैं पाटलिपुत्र की कहानी, जी हां... आज के पटना की कहानी... जिसका इतिहास रोमांच से भरा है और इससे कई ऐतिहासिक कहानियां जुड़ी हुई हैं।
कितना पुराना है इतिहास
आधुनिक पटना भले ही बिहार प्रदेश की राजधानी है, लेकिन यह कई सदियों तक देश की सत्ता का केंद्र रहा है। पटना का इतिहास और यहां की परंपरा सदियों पुरानी है। पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र था यह तो आप जानते ही हैं। इसे पाटली पट्टन भी कहा जाता था और इसका 600 ईसा पूर्व का इतिहास मिलता है। कहा जाता है कि करीब 3000 साल पहले आज के आधुनिक पटना की जगह पर एक छोटा सा गांव था। यहां पाटली के पौधे बहुतायत में थे। पाटली के पौधे (Crape Myrtle) एक तरह का औषधीय पौधा होता है। इसी पौधे के नाम पर इस नगर का नाम पाटलिग्राम और बाद में पाटलिपुत्र पड़ा। शहर का एक नाम पाटली पट्टन भी था और वह यहां पत्तन यानी बंदरगाह की वजह से था। गंगा नदी के किनारे बसे इस नगर में गंगा के बड़े और चौड़े घाटों के कारण यहां पर जहाजों से माल ढुलाई का काम होता था। कुछ जानकारों का मानना है कि पटना शब्द पत्तन से ही निकला है, जो अपभ्रंश होकर मिला है।
पटना के अन्य नाम
पटना को पूर्व में पाटलिपुत्र के अलावा पाटली पट्टन या पाटली पत्तन, पाटलिग्राम, कुसुमपुर और अजीमाबाद नामों से भी जाना जाता रहा है। एक मान्यता के अनुसार पट्टन नाम के एक गांव से ही आज के आधुनिक पटना का जन्म हुआ है। कहा जाता है कि आजादशत्रु ने पाटलिपुत्र नामक शहर बनाया था। कहते हैं कि एक प्राचीन गांव पाटली और पट्टन को एक साथ जोड़कर ही पाटली पट्टन या पाटलिपुत्र बना था। 1704 में इस नगर को अजीमाबाद नाम भी दिया गया, लेकिन बाद के वर्षों में पटना नाम प्रमुख तौर पर निकलकर सामने आया।
नाम की एक और कहानी
लोककथाओं के अनुसार राजा पत्रक आज के पटना के जनक थे। उन्होने अपनी रानी पाटलि के लिए इस नगर की नींव रखी थी। बाद में यह नगर पाटलिग्राम और फिर पाटलिपुत्र कहलाया। पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने 492-460 ईसा पूर्व ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की थी। लिच्छवी वंश से संघर्ष के चलते अजातशत्रु के लिए पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से ज्यादा सुरक्षित जगह थी। क्योंकि यह क्षेत्र गंगा, सोन और पुनपुन नदियों से घिरा था और यह नदियां उसकी रक्षा के लिए अहम थीं। इसी दौरान इस नगर को पाटलिपुत्र नाम मिला।
गौतमबुद्ध की वह भविष्यवाणी
बौद्ध साहित्य के अनुसार भगवान गौतम बुद्ध अपने जीवन के अंतिम वर्ष में पटना से गुजरे थे। बताया जाता है कि उस समय गौतम बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी कि इस नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा, लेकिन बाढ़, आग या आपसी संघर्ष के चलते यह बर्बाद होगा। ईसा पूर्व 600 से पटना का इतिहास है और आज भी यह शहर फल-फूल रहा है। शहर की आबादी लगातार बढ़ रही है और यह आधुनिक विकास के रथ पर सवार है। इतने वर्षों में इस शहर ने पाटलिपुत्र से पटना और एक छोटे से कस्बे से आधुनिक शहर तक का सफर तय किया है।
पटना का स्वर्णिम युग
पटना वैसे तो कई वंशों की राजधानी और प्रमुख नगर रहा। लेकिन चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मौर्य साम्राज्य के उत्थान के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया। बंगाल की खाड़ी से लेकर आधुनिक अफगानिस्तान तक मौर्य साम्राज्य फैला हुआ था। चंद्रगुप्त के पोते सम्राट अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य अपने चरम पर था। कई विदेशी यात्री यहां आए और उन्होंने अपने वृतांतों में यहां का जिक्र किया। मौर्य वंश के पतन के बाद पाटलिपुत्र ने अपना तेज खो दिया। 12वां सदी में बख्तियार खिलजी ने जब यहां कब्जा किया तो उसने यहां के कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया। नीचे टेबल में जानिए पटना पर कब किस राजा या वंश का राज रहा।
वंश या राजा | शाशन काल |
हर्यक वंश | 684 से 424 ईसा पूर्व |
बिंबिसार | 544 से 492 ईसा पूर्व |
अजातशत्रु | 492 से 460 ईसा पूर्व |
उदयिन | 460 से 444 ईसा पूर्व |
मौर्य वंश | 300 से 200 ईसा पूर्व |
शुंग वंश | 73 ईसा पूर्व |
गुप्त वंश | 4 शताब्दी |
अफगान शासक | साल 1541 में कब्जा किया |
मुगल शासक | देश में मुगल काल के दौरान उनके अधीन रहा पाटलिपुत्र |
अंग्रेज | 1765 से आजादी तक |
आईन-ए-अकबरी में जिक्र
शेरशाह सूरी के शासनकाल में पाटलिपुत्र को पटन कहा जाने लगा। हालांकि, तब तक पाटलिपुत्र अपना वो पुराना मौर्य काल का तेज खो चुका था। शेरशाह ने फिर से नगर का स्वर्णिम युग वापस लाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। उसने गंगा किनारे एक किला बनाना चाहा, लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिली। आईन-ए-अकबरी के लेखक (अबुल फजल) ने पाटलिपुत्र की चर्चा कागज, पत्थर और शीशे के संपन्न औद्योगिक केंद्र के रूप में की है। बाद के दौर में मुगल बादशाह औरंगजेब के पोते मोहम्मद अजीम के कहने पर 1704 में शहर का नाम अजीमाबाद भी किया गया। बता दें कि उस समय अजीम पटना का सूबेदार था।
पाटलिपुत्र बना पटन और फिर पटना
समय के साथ मुगल साम्राज्य का भी पतन हो गया। इसके बाद यह क्षेत्र बंगाल के नवाबों के कब्जे में आ गया। 17वीं शताब्दी तक पटना अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन चुका था। साल 1620 में अंग्रेजों ने यहां रेशम और कैलिको की फैक्टरी खोली। बता दें कि भारत से इंग्लैंड जाने वाले सूती कपड़े को वहां कैलिको कहा जाता था। आगे चलकर यह क्षेत्र साल्ट पीटर यानी पोटेशियम नाइट्रेट का प्रमुख व्यापार केंद्र बन गया और इसी के चलते अंग्रेजों का फ्रेंच और डच के साथ कॉम्पटीशन भी बढ़ गया। साल 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद पटना पूरी तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में आ गया। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया तो उन्होंने इसे पटना कहना शुरू किया। पटना आगे भी व्यापार का केंद्र बना रहा। 1912 में बंगाल विभाजन के बाद पटना को बिहार और ओडिशा की राजधानी बनाया गया। 1935 में बिहार से अलग करके ओडिशा को राज्य बनाया गया, लेकिन पटना बिहार की राजधानी बना रहा। आज भी पटना बिहार की राजधानी है।
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