लालू का विरोधी, कलेक्टर का हत्यारा...कौन है बाहुबली आनंद मोहन? जो आ रहा जेल से बाहर
Anand Mohan Kaun hai: आनंद मोहन सिंह को गोपालगंज जिले के डीएम जी. कृष्णनैया की हत्या में दोषी ठहराया गया था। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। अब बिहार सरकार आनंद मोहन सिंह को रिहा करने जा रही है।
आनंद मोहन सिंह (फाइल फोटो)
पटना कोर्ट (Patna High Court) ने आनंद मोहन को दोषी ठहराया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई। आजाद भारत के वह ऐसे पहले नेता थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बाद में ऊपरी अदालत ने इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। तब से लेकर अब तक आनंद मोहन जेल की सलाखों के पीछे हैं, लेकिन अब वह जेल से बाहर आ रहे हैं। दरअसल, बिहार सरकार (Bihar Government) ने उनकी रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। उनके साथ 27 अन्य कैदियों को छोड़ने के प्रस्ताव पर सहमति बनी है। आइए जानते हैं बिहार के इस बाहुबली नेता आनंद मोहन के बारे में... उनका नाम अचानक चर्चा में क्यों आया? बिहार की राजनीति में आनंद मोहन का उदय कैसे हुआ? लालू प्रसाद यादव का मुख्य विरोधी चेहरा कैसे बने और अब उनकी रिहाई क्यों हो रही है?
सबसे पहले चर्चा में क्यों आनंद मोहनउत्तर प्रदेश के बाद बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति बाहुबलियों और माफिया राज के इर्द-गिर्द घूमती है। बिहार के बाहुबली नेताओं की बात हो और आनंद मोहन का नाम न लिया जाए तो ऐसा हो नहीं सकता। लंबे समय से जेल में बंद आनंद मोहन की रिहाई हो रही है। इसके पीछे बिहार सरकार का वह फैसला है, जिसके तहत 10 अप्रैल को नियमों में बड़ा बदलाव किया गया है। जानकारी के मुताबिक, बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था। फिलहाल आनंद मोहन बिहार की सहरसा जेल में हैं।
17 की उम्र में शुरू हुआ सियासी सफरआनंद मोहन सिंह का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थी। बताते हैं कि आनंद मोहन का सियासी सफर 17 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने 1974 में जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा और इमरजेंसी के दौरान उन्हें दो साल तक जेल में रहना पड़ा। 1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की। इसे आनंद मोहन की प्राइवेट आर्मी कहा जाता था। इसके बाद उनका नाम अपराधियों की सूची में शुमार होता गया।
1990 में हुई राजनीति में एंट्रीआनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1990 में हुई। उन्हें जनता दल ने माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, और उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थान की और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया। 1994 में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता। 1995 आते-आते आनंद मोहन का नाम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा और वह लालू यादव का मुख्य विरोधी चेहरा माने जाने लगे। 1995 में आनंद मोहन की पार्टी ने बिहार में बेहतर प्रदर्शन भी किया, हालांकि, खुद आनंद मोहन को हार का मुंह देखना पड़ा। 1996 में आनंद मोहन ने शिवहर लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और समता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की। आनंद मोहन का रसूख इतना था कि इस समय जेल में रहते हुए भी उन्होंने जीत हासिल की थी। 1999 में आनंद मोहन ने एक बार फिर सीट से जीत हासिल की।
अब वह हत्या, जिसके चलते हुए उम्रकैदबताते हैं, 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी के नेता ओर गैंगस्टर छोटन शुक्ला को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। उसकी शवयात्रा में हजारों लोग इकट्ठा हुआ। इस भीड़ का नेतृत्व खुद आनंद मोहन कर रहे थे। भीड़ को संभालने की जिम्मेदारी तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या की थी। इसी दौरान दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और डीएम को सरेआम गोली मार दी गई। भीड़ को भड़काने का आरोप आनंद मोहन पर लगा, जिसके चलते उन्हें बाद में फांसी की सजा भी सुनाई गई। कहा जाता है कि आनंद मोहन ने ही डीएम जी. कृष्णैय्या को उनकी गाड़ी से निकाला और भीड़ के हवाले कर दिया।
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