Year Ender 2023: आखिर नीतीश सरकार ने क्यों कराई जातीय जनगणना, 2024 लोकसभा चुनाव में कितना होगा फायदा-नुकसान
Year Ender 2023: गांधी जयंती 2023 का दिन बिहार के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। राज्य सरकार ने आधिकारिक तौर पर जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर की राजनीतिक बहस छिड़ गई। आइये जानते हैं सरकार ने क्यों लिया यह फैसला।
बिहार में जातीय जनगणना
Year Ender 2023: बिहार की राजनीति के लिए साल 2023 काफी उथल पुथल वाला रहा। खासकर, नीतीश सरकार का 2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर एक किताब के जरिये राज्य की जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करना काफी चर्चित रहा। हालांकि, इससे पहले राजस्थान और कर्नाटक भी जाति के आधार पर जनगणना करा चुके हैं। साल 2011 में हुई जनगणना के बाद जातीय आधार पर ही रिपोर्ट तैयार की गई थी, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया। बिहार सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में पिछड़े वर्ग की कुल आबादी में हिस्सेदारी 63 फीसदी है। इसमें पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग शामिल हैं। वहीं, सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी है। बता दें कि बिहार की कुल आबादी 13.07 करोड़ से अधिक है। नीतीश सरकार के इस फैसले से विपक्ष काफी बिफरा रहा। उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदा उठाने के लिए रिपोर्ट जारी करने का आरोप लगाया। तो जानते हैं कि आखिर बिहार ने जातिगत जनगणना क्यों कराई और इसके फायदे-नुकसान क्या हैं?
धार्मिक आधार पर जनसंख्या प्रतिशत
बिहार सरकार के इस बड़े फैसले से राजनीतिक बहस शुरू रही। बीजेपी समेत अन्य विपक्षा दल इस कदम को नीतीश सरकार के लिए अवसर बताया। बिहार सरकार ने पुस्तक के जरिये जो आंकड़े जारी किए हैं उनके मुताबिक, धर्म के आधार पर राज्य में हिंदुओं की आबादी 82 फीसदी, मुस्लिम 17.7 फीसदी, ईसाई 0.05 फीसदी और 0.08 फीसदी बौद्ध हैं।
जातीय आधार पर जनसंख्या प्रतिशत
वहीं जाति के आधार पर राज्य की कुल आबादी में राजपूत 3.45 फीसदी, ब्राह्मण 3.65, भूमिहार 2.86, यादव 14 और नौनिया 1.9 फीसदी हैं। बिहार में पिछड़ा वर्ग 27.13 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी है। इसके अतिरिक्त राज्य में कुर्मी आबादी 2.87 प्रतिशत, कुशवाहा 4.27 प्रतिशत, धानुक 2.13 फीसदी, भूमिहार 2.89 प्रतिशत, कुम्हार 1.04 प्रतिशत, मुसहर 3.08 प्रतिशत, सुनार 0.68 प्रतिशत, बढ़ई 1.45 प्रतिशत, कायस्थ 0.60 प्रतिशत और नाई 1.59 प्रतिशत हैं। वहीं, ट्रांसजेंडर की संख्या 825 है।
ऐसे कराया गया सर्वे
बिहार सरकार के मुख्य सचिव ने कहा कि जातिगत जनगणना के लिए विभागीय कर्मचारी डोर टू डोर जाकर सर्वे का आंकड़ा जुटाया है. इसमें राज्य के शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भी मदद ली गई। जनगणना के तहत पहले चरण में मकानों पर नंबर डाले गए और दूसरे चरण में लोगों से उनकी जाति पूछकर आंकड़ा तैयार किया गया। रिपोर्ट जारी होने से पहले लंबे समय से बिहार समेत देश के कई राज्यों में जातिगत जनगणना की मांग उठ रही थी। साल 2011 में हुई जनगणना के बाद जातीय आधार पर रिपोर्ट बनाई गई थी, लेकिन उसे जारी नहीं किया गया था। लेकिन, बिहार में 7 जनवरी 2023 से जातिगत जनगणना की प्रक्रिया शुरू हुई।
बीजेपी ने 2020 में किया था समर्थन
बिहार सरकार का कहना था कि जातीय जनगणना होने से राज्य में रहने वाले दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सही संख्या पता चल सकेगा। उसी के आधार पर जाति आधारित विशेष योजनाएं बनाने में आसानी होगी। अगर, सही जातीय जनसंख्या का पता होगा तो राज्य में उनके मुताबिक, प्रभावी योजनाएं बनाई जाएंगी। बिहार विधानसभा में 18 फरवरी 2019 और विधान परिषद में 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना कराने से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव को बीजेपी, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दिया था।
नीतीश सरकार को विपक्षियों ने कहा स्वार्थी
हालांकि, केंद्र सरकार बिहार में जातिगत जनगणना कराने के खिलाफ था। केंद्र ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था। केंद्र ने हलफनामे में कहा था कि जातिगत जनगणना नहीं होनी चाहिए। इससे जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम साबित होगा। लेकिन, 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई। विपक्षी पार्टियों की दलील है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने से बिहार के सीएम नीतीश कुमार को सबसे बड़ा फायदा हो सकता है। ये बात कहीं तक सही भी है। ये मुद्दा साल 2023 में तो छाया ही रहा, लेकिन इस पर आगे भी बहस जारी रह सकती है। अब इसका जदयू को कितना फायदा मिलेगा, यह तो लोकसभा चुनाव 2024 में ही पता चल सकेगा।
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