भले पासपोर्ट न हो, चीन से वीजा भी नहीं चाहिए, यहां से होंगे कैलाश पर्वत के दर्शन, ये तारीख है इम्पोर्टेंट
भगवान शिव के परम धाम कैलाश के दर्शन करने के लिए आपको चीन से वीजा की गुहार लगाने की आवश्यकता नहीं है। कैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए उत्तराखंड सरकार व्यवस्था कर रही है और 15 सितंबर से आप देश में ही रहकर कैलाश पर्वत के दर्शन कर पाएंगे।
लिपुलेख दर्रे से होंगे कैलाश दर्शन Photo Credit : AI
चारधाम (Chardham Yatra) की यात्रा जारी है। इस दौरान शिवभक्त केदारनाथ (Kedarnath) जाकर भोले बाबा का आशीर्वाद ले रहे हैं। यही नहीं अमरनाथ की यात्रा भी चल रही है। श्रद्धालु बम-बम भोले के जयकारों के साथ अमरनाथ (Amarnath) की कठिन यात्रा करके बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए जा रहे हैं। महादेव के भक्तों के लिए एक और खुशखबरी ये है कि 15 सितंबर से वह भोले बाबा के निवास कैलाश (Kailash) के दर्शन भी कर पाएंगे। कैलाश पर्वत तिब्बत में है और तिब्बत पर चीन का कब्जा है। इसलिए यहां जाने के लिए पासपोर्ट के साथ ही चीन का वीजा भी जरूरी होता है।
ना... ना... चिंता की कोई बात नहीं, आपको न तो पासपोर्ट की आवश्यकता है और न ही चीन के वीजा की। आप तो भारत में रहकर ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते हैं। दर्शन आप उसी कैलाश पर्वत के करेंगे, जो तिब्बत में मौजूद है। इसमें आपके साथ किसी तरह की कोई तिगड़म नहीं होगी। चलिए जानते हैं आखिर कैसे भारत में रहकर कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
18300 फीट की ऊंचाई से कैलाश के दर्शनकैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए आपको उत्तराखंड के पहाड़ों में 18 हजार, 300 फीट की ऊंचाई तक यात्रा करनी पड़ेगी। जी हां, हम लिपुलेख दर्रे की ही बात कर रहे हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में मौजूद लिपुलेख दर्रे तक पहुंचकर आप कैलाश पर्वत के दर्शन कर भोले का आशीर्वाद ले सकते हैं। साल 2019 में कोविड-19 पैंडेमिक के चलते लिपुलेख दर्रे को बंद कर दिया गया था। पहले श्रद्धालु इसी दर्रे से होकर कैलाश-मानसरोवर की पवित्र यात्रा करते थे। हालांकि, दर्रे को चीन की तरफ से अब भी नहीं खोला जा रहा है। श्रद्धालु अब भी इस रूट से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा नहीं कर पाएंगे, बल्कि कैलाश पर्वत के दर्शन जरूर शिवभक्त कर सकते हैं।
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सतपाल महाराज ने किए दर्शनलिपुलेख दर्रे तक तीर्थयात्रियों के पहुंचने और वहां से कैलाश पर्वत के दर्शनों की व्यवस्था से उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। उत्तराखंड सरकार में मंत्री सतपाल महाराज और उनकी पत्नी अमृता रावत ने 22 जून को यहां का दौरा किया था और कैलाश पर्वत के दर्शन किए थे। इस दौरान उन्होंने इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व पर भी रोशनी डाली थी।
केंद्र सरकार से अनुमति मिलने के बाद उत्तराखंड पर्यटन विभाग तीर्थयात्रियों के सुरक्षित और आसान तरीके से लिपुलेख दर्रे तक पहुंचने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेड्योर (SOP) तैयार कर रहा है। DM रीना जोशी ने पुष्टि की है कि यहां तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए काम तेजी से चल रहा है।
कैसे पहुंचेंगे लिपुलेख (Lipulekh Pass trek Itinerary)लिपुलेख दर्रे का ट्रैक पिथौरागढ़ जिले में पंगु गांव से शुरू होता है। पंगु तक सड़क है, जहां आप देश या उत्तराखंड के शहरों से बस, टैक्सी या बाइक से आसानी से पहुंच सकते हैं। अब आपके साथ कोई विदेश शख्स भी सफर कर रहा है तो आप उन्हें बुधी तक ही लेकर जा सकते हैं। अगर आप इन लाइन के साथ ट्रैक करना चाहते हैं तो आपको इस ट्रैक के लिए पिथौरागढ़ जिला प्रशासन से परमिशन लेनी होगी।
- लिपुलेख पास तक जाने के लिए आपका सफर अल्मोड़ा से शुरू होता है। अल्मोड़ा से 207 किमी की दूरी तय करके आप नेपाल बॉर्डर पर मौजूद धारचूला शहर तक पहुंच सकते हैं। सुबह अल्मोड़ा से निकलेंगे तो करीब 10 घंटे के सफर के बाद आप धारचुला पहुंच जाएंगे और यहीं पर आपको रात्रि विश्राम करना होगा।
- अगले दिन धारचूला से पंगु गांव का सफर शुरू करें। सुबह जल्दी निकलें और सड़क मार्ग से 50 किमी की इस दूरी को जल्द से जल्द पूरा कर लें। पंगु पहुंचकर आपको अगले दिन ट्रैक के लिए तैयारी करने साथ ही आराम करना चाहिए।
- तीसरे दिन आपको पंगु से गाला तक का 25 किमी का ट्रैक करना होगा। सुबह जल्दी उठकर पंगु से निकलें और गाला पहुंचकर आराम करें। यहां यात्रियों के रुकने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं।
- चौथे दिन गाला से बुधी तक का 20 किमी का ट्रैक आपको करना होगा। गाला में सुबह नाश्ता करके निकलें और शाम तक आप 20 किमी का ट्रैक करके बुधी पहुंच जाएंगे। रात यहीं गुजारें। ध्यान रहे, विदेश यात्री यहीं तक जा सकते हैं।
- पांचवे दिन बुधी से गुंजी तक 17 किमी का ट्रैक करना होगा और फिर रात में यहां रुकें। छठे दिन गुंजी से नावीढ़ांग तक का 20 किमी का ट्रैक आपका इंतजार कर रहा होगा। नावीढ़ांग से से आप ओम पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
- सातवें दिन आप नावीढ़ांग से लिपुलेख तक का 7 किमी लंबा ट्रैक करेंगे और अंतत लिपुलेख के ऐतिहासिक दर्रे तक पहुंच जाएंगे। यहीं से आप तिब्बत में मौजूद कैलाश पर्वत के दर्शन कर पाएंगे। यहां पहुंचकर आप 7 दिन के इस ट्रैक की पाई-पाई वसूल लेंगे।
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