चैत्र नवरात्रा 2023: प्रयागराज में है अद्भुत शक्तिपीठ, यहां गिरा था देवी मां की भुजा का पंजा, जानिए इस पौराणिक मंदिर की खासियत
Chaitra Navratri 2023: सनातन धर्म की 51 प्रमुख शक्तिपीठों में से 14वां शक्तिपीठ है मां आलोपशंकरी का मंदिर। संगम के तट पर मौजूद इस पौराणिक महत्व वाले मंदिर में नवरात्रों के दौरान यहां मां के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। खास बात ये है कि, यहां पर देवी मां की कोई प्रतीमा नहीं है। बस प्रतीकात्मक एक पालना है, जिसकी भक्त पूजा करते हैं।
प्रयागराज में है 14वीं शक्तिपीठ मां आलोपशंकरी मंदिर (फाइल फोटो)
मुख्य बातें
- संगम के तीरे गिरा था देवी मां के हाथ का पंजा
- हाथ गायब हो गया तो नाम पड़ा आलोपशंकरी
- देश के 51 में से यहां 14वां शक्तिपीठ है
Chaitra Navratri 2023: सनातन संस्कृति की पौराणिक धर्म नगरी प्रयागराज वैसे तो आदिकाल से चली आ रही अपनी सनातनी परंपराओं के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। संगम के तीरे आस्था की बयार साल भर बहती रहती है। हिंदू धर्म की 3 सबसे पवित्र व पौराणिक नदियों का संगम भी यहीं होता है, जिससे इस प्राचीन नगरी का महत्व और प्रगाढ हो जाता है। संबंधित खबरें
कुछ दिनों बाद माता की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्रे आने वाले हैं। ऐसे में संगम नगरी में एक और खास महत्व वाला प्राचीन और पौराणिक स्थान है, जहां पर भक्त देवी मां की आराधना करते हैं। सनातन धर्म का 51 प्रमुख शक्तिपीठों में से 14वां शक्तिपीठ है मां आलोपशंकरी का मंदिर। संगम के तट पर मौजूद इस पौराणिक महत्व वाले मंदिर में नवरात्रों के दौरान यहां मां के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। खास बात ये है कि, यहां पर देवी मां की कोई प्रतीमा नहीं है। बस प्रतीकात्मक एक पालना है, जिसकी भक्त पूजा करते हैं। संबंधित खबरें
इसलिए कहा जाता है आलोपशंकरीसंगम नगरी के आलोपी बाग में स्थित शक्तिपीठ मां आलोपशंकरी देवी का मंदिर गहरी आस्था का केंद्र है। यह देश में मौजूद 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, संगम के तीरे पर माता रानी के दाएं हाथ का पंजा गिरा था। माता का हाथ गिरने के बाद अदृश्य हो गया था। यही वजह है कि, इस स्थान का नाम आलोपशंकरी प्रचलित हुआ। बता दें कि, मंदिर के प्रमुख स्थान पर एक चबूतरा बना है व इसके बीच में एक कुंड है व उस पर एक पालना रखा हुआ है। इस पालने को चुनरी से कवर किया गया है। मंदिर के महंत के मुताबिक, कुंड के जल में देवी मां का वास है, और पालना उनका प्रतीक है।
भक्तों को मिलता है यहां से प्रसाद मंदिर में महंत के मुताबिक, यहां मौजूद कुंड में प्रसाद के तौर पर नारियल पानी चढ़ाया जाता है। श्रद्धालुओं को नारियल पानी ही प्रसाद के रूप में दिया जाता है। हालांकि मंदिर में देवी मां का स्वरूप निराकार होने के चलते नवरात्रि में यहां श्रृंगार नहीं किया जाता है। परंतु इस दौरान मां की आराधना पूरे विधि-विधान से की जाती है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने को लेकर मंदिर में चुनरी या धागा बांधते हैं व पूजा के बाद परिक्रमा करते हैं।
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