Maha Shivratri 2023 : प्रयागराज के इस मंदिर में महादेव करते हैं भक्तों की मनोकामना पूरी, यहां की प्राकृतिक छटा है निराली

Maha Shivratri 2023 : यमुना के तट पर रोग से ग्रसित होने के चलते मंदिर की स्थापना के लिए स्वयं भगवान शिव ने चंद्रमा को निर्देश दिया था। भोलेनाथ की आज्ञा पाकर चंद्रमा ने सोमेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की थी। इसकी पौराणिक मान्यता ये भी है कि, मंदिर क्षेत्र के आस पास अमृत की वर्षा होती है। इसके अलावा मंदिर पर विराजित त्रिशूल की दिशा भी चन्द्रमा के साथ बदलती रहती है।

प्रयागराज के सोमेश्वर मंदिर में महादेव की आज्ञा से स्वयं चंद्रमा वास करते हैं

मुख्य बातें
  • भोलेनाथ की आज्ञा से चंद्रमा ने सोमेश्वर नाथ की स्थापना की थी
  • मंदिर पर विराजित त्रिशूल की दिशा भी चन्द्रमा के साथ बदलती है
  • यहां पर शिव की आराधना करने के बाद भक्तों को कोई कष्ट नहीं घेरता


Maha Shivratri 2023 : संगम नगरी प्रयागराज के यमुना तट पर स्थित है पौराणिक महादेव का सोमेश्वर नाथ मंदिर। जिसकी महिमा पौराणिक कालों से बताई जाती है। कहा जाता है कि, गांव अरैल में यमुना के तट पर रोग से ग्रसित होने के चलते मंदिर की स्थापना के लिए स्वयं भगवान शिव ने चंद्रमा को निर्देश दिया था।

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इसके बाद भोलेनाथ की आज्ञा पाकर चंद्रमा ने सोमेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की थी। इसकी पौराणिक मान्यता ये भी है कि, मंदिर क्षेत्र के आस पास अमृत की वर्षा होती है। इसके अलावा मंदिर पर विराजित त्रिशूल की दिशा भी चन्द्रमा के साथ बदलती रहती है। इस बार प्रयागराज आएं तो इस मंदिर में जरूर जाएं। बताया जाता है कि, यहां पर बाबा भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। इस इलाके की आसपास की छटा बड़ी निराली है। प्रकृति ने यहां जमकर अनुपम सौंदर्य बिखेरा है।

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महादेव के कहने पर चंद्रमा ने की थी मंदिर की स्थापनासोमेश्वर नाथ मंदिर के प्रमुख महंत राजेंद्र गिरि के मुताबिक पौराणिक इतिहास के अनुसार सोमेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रमा ने की थी। इसके बाद चंद्रमा ने महादेव की तपस्या की थी, जिसके बाद उन्हें अपने क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। महंत के मुताबिक पौराणिक कथाओं में वर्णन के अनुसार एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्रोधित होकर श्राप दे दिया। जिससे वे कुरूप होकर क्षय रोग से ग्रसित हो गए। इसके बाद श्राप मुक्त होने के लिए चंद्रमा ने महादेव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। जिसे अब सोमेश्वर नाथ मंदिर के तौर पर जाना जाता है ।

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