20 गांवों के 30 हजार लोग बने 'भगीरथ', 10 महीने में जिंदा कर दी नदी, इंस्पायरिंग है ये स्टोरी

अगर हम चाह लें तो कोई काम मुश्किल नहीं है। इस बात को सच कर दिखाया उत्तर प्रदेश में तीन ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले 20 गांवों के करीब 30 हजार ग्रामीणों ने। उन्होंने सिर्फ 10 महीने में ऐसा कारनाम कर दिखाया कि हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है।

प्रतापगढ़ के लोगों ने नदी को दिया रास्ता (फोटो - AI)

'एकता में बल है', 'संगठन में शक्ति है', 'जहां चाह, वहां राह' जैसी कई कहावतें आपने सुनी होंगी। लेकिन हम आपको इन कहावतों के सच होने की असली कहानी बता रहे हैं। बॉलीवुड में एक गाना था, जिसके बोल कुछ इस तरह थे - 'साथी हाथ बटाना, एक अकेला थक जाएगा... मिलकर बोझ उठाना.' बस यही काम किया उत्तर प्रदेश में तीन ब्लॉक के 20 गांवों के लोगों ने। 20 गांवों के इन 30 हजार लोगों ने जो ठाना था वो कर दिखाया और वह भी सिर्फ 10 महीने में। चलिए जानते हैं -

20 हजार भगीरथ

बात उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ जिले की है। यहां तीन ब्लॉक के 20 गांवों के 30 हजार लोग इकट्ठा हुए और 'भगीरथ'बन गए। इन लोगों ने अपने भगीरथी प्रयास से एक मौसमी नदी के पुराने रास्ते को फिर से जिंदा कर दिया। इसके लिए ग्रामीणों ने 10 महीने तक कड़ी मेहनत की। गंगा नदी की सहायक नदी सई को पानी देने वाली मौसमी नदी सकरनी के किनारों पर पिछले दशक में किसानों ने बड़े स्तर पर अतिक्रमण कर लिया था। इसका असर ये हुआ कि इस छोटी नदी ने अपना रास्ता ही बदल दिया और कई जगह पर इसकी गहराई लगभग खत्म हो गई।

क्रांतिकारी पहल

इस मौसमी नदी के पुराने रास्ते को फिर से जिंदा करने का क्रांतिकारी प्रयास यहां के स्थानीय ग्रीन एक्टिविस्ट अजय क्रांतिकारी के नेतृत्व में हुआ। अजय क्रांतिक्रारी यहां पर्यावरण सेना नाम से एक NGO चलाते हैं। अजय ने नदी के पुराने मार्ग को फिर से जिंदा करने की मुहिम शुरू की। सबसे पहले उन्होंने डीएम के नेतृत्व वाली जिला पर्यावरण कमेटी के सामने इस मुद्दे को रखा।

20 गांवों के लोगों ने नदी को उसका पुराना रास्ता लौटाया (फोटो - AI)

तस्वीर साभार : Times Now Digital

मनरेगा के तहत हुआ काम

अक्टूबर 2023 में अजय क्रांतिकारी और उनके NGO के प्रयासों के बाद जिला प्रशासन ने सकरनी नदी को छोटी नदियों के पुनरुद्धार की सूची में शामिल कर लिया। इसके बाद नदी के पुराने मार्ग की तलाश करने के लिए पुराने राजस्व अभिलेखों (Old revenue records) की जांच की गई, जिसके बारे में यहां के लोगों को जानकारी ही नहीं थी। इसके बाद करीब 10 महीने तक 30 हजार लोगों ने मनरेगा के तहत का करके नदी के 27.7 किमी लंबे मार्ग पुराने मार्ग को साफ किया और नदी को उस रास्ते पर वापस लाए। नदी को उसका खोया रास्ता दिखाने पर ग्रामीणों को 10 महीने तक अपने-अपने ब्लॉक में रोजगार भी मिल गया।

1.35 करोड़ रुपये हुए खर्च

जिला प्रशासन ने सकरनी नदी को उसके पुराने रास्ते पर लाने के लिए 1.35 करोड़ रुपये खर्च किए। प्रतापगढ़ जिला विकास अधिकारी श्री कृष्णा ने बताया, 'ग्रामीणों की मदद से छोटी नदी सकरनी के पुनरुद्धार का कार्य पूरा किया गया। अब नदी अपने प्राकृतिक रास्ते से होकर बह रही है। गहन जांच और सर्वे के बाद हमने नदी के प्राकृतिक मार्ग में हुए सभी तरह के अतिक्रमण को हटाकर उसे रास्ता दिया। यह मौसमी नदी अब लक्षमणपुर और आसपास के ब्लॉक के लोगों को उनकी आजीविका दे रही है।'
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