मजदूर से मालकिन बनीं छत्तीसगढ़ की महिलाएं, रीपा ने बनाया आत्मनिर्भर
Raipur News: महासमुंद विकासखंड अंतर्गत ग्राम कांपा की खेतिहर और गरीब महिलाओं ने दुर्गा स्वयं सहायता समूह बनाया, जिसमें 10 महिला सदस्य हैं। महिलाएं बिहान से जुड़कर आत्मविश्वासी बनी और अब रीपा से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
छत्तीसगढ़ में महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
Raipur News: छत्तीसगढ़ में कभी दूसरे के खेतों और फैक्ट्री में मजदूरी करने वाली महिलाएं आज खुद मकान मालकिन बन गई हैं। अब वे खुद के लिए काम कर रही हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क के माध्यम से इन महिलाओं को आत्मनिर्भरता की नई राह मिली है। राज्य सरकार की इस नवाचारी पहल से उद्यमियों को बड़ा सहारा मिला है। गांवों के गौठानों में अब तक 300 रीपा का निर्माण हो चुका है, जहां लोगों को आजीविका की गतिविधियों के लिए पर्याप्त साधन और सुविधाएं मिल रही हैं। ग्रामीण उद्यमियों के लिए अपनी पसंद का उद्यम संचालित करना आसान हो गया है।
महासमुंद विकासखंड अंतर्गत ग्राम कांपा की खेतिहर और गरीब महिलाओं ने दुर्गा स्वयं सहायता समूह बनाया, जिसमें 10 महिला सदस्य हैं। महिलाएं बिहान से जुड़कर आत्मविश्वासी बनी और अब रीपा से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। तकनीकी और मेहनत के कार्य को आमतौर पर महिलाओं के लिए दुरूह माना जाता है, लेकिन फ्लाई ऐश ईंट बनाने के इस काम को महिलाओं ने बखूबी करके दिखाया है। विगत 3 महीनों में ही इन्होंने करीब 67 हजार ईंट तैयार किए हैं, इनमें से 40 हजार ईंट पंचायत को विक्रय भी किया गया है। महिलाओं को इससे 1 लाख रूपए से अधिक की आमदनी हुई है। समूह की सचिव श्रीमती कल्याणी दुबे ने बताया कि महिलाएं वर्मी कंपोस्ट भी बना रही हैं और अब तक 1 लाख 30 हजार रूपए का खाद विक्रय कर चुकी हैं। उनका समूह सवा लाख रूपए का आंतरिक लेन-देन भी कर रहा है। कल्याणी बताती हैं कि प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद अब महिलाएं आसानी से ईंट बना पा रही हैं, महिलाओं को जिला प्रशासन द्वारा रीपा में आवश्यक मशीन व संसाधन उपलब्ध कराये गए हैं।
समूह की अध्यक्ष अहिल्या साहू ने बताया कि प्रति ईंट लगभग ढाई रुपए की दर से बेचते हैं। वहीं समूह से जुड़ी देवकी सोनी, दीपलता और उर्वशी दुबे ने कहा कि हमने सोचा नहीं था कि हम खुद मशीन का संचालन कर पाएंगे लेकिन अब ऐसा हो रहा है। महिलाओं के चेहरे पर आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता की चमक देखी जा सकती है। महिलाएं कहती हैं कि कभी हमारे दिन दूसरों के यहां मजदूरी में गुजर जाते थे, लेकिन आज हम खुद के लिए काम कर रहे हैं और मालकिन जैसे महसूस करते हैं। यह रीपा से ही सम्भव हो सका।
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