राजस्थान के पाली से महाराणा प्रताप का कनेक्शन, जानिए कैसे पड़ा नाम और क्या है इसका इतिहास
पाली में सबसे बड़ा वस्त्र उद्योग है, ग्रेनाइट की माइंस हैं और इतना ही नहीं यहां का चूड़ी का व्यापार देशभर में जाना जाता है। पाली से जोधपुर की दूरी 70km है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि राजस्थान के इस शहर का नाम पाली ही क्यों पड़ा और महाराणा प्रताप का इस जगह से क्या कनेक्शन है-
कैसे पड़ा राजस्थान के पाली का नाम
Pali: पाली में लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र, राजस्थान की 25 संसदीय सीटों में से एक, जोधपुर और दूसरा पाली दोनों जिलों का प्रतिनिधित्व करता है। राजस्थान की पाली सीट पर मतदान आज 26 अप्रैल (चरण 2) को होना है। साल 2019 में लोकसभा चुनावों में, राजस्थान की 25 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और उसके पूर्व सहयोगी आरएलपी दोनों के लिए जीत का अंतर 3.40 लाख वोट थे। आपको बता दें कि पाली में सबसे बड़ा वस्त्र उद्योग है, ग्रेनाइट की माइंस हैं और इतना ही नहीं यहां का चूड़ी व्यापार देशभर में जाना जाता है। पाली से जोधपुर की दूरी 70km है। वहीं पाली से जालोर जिले की दूरी करीब 100km है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि राजस्थान के इस शहर का नाम पाली ही क्यों पड़ा। आइए आज इस बारे में जानते हैं।
व्यापार के लिए महत्वपूर्ण
राजस्थान के पाली में सबसे बड़ा वस्त्र उद्योग है, ग्रेनाइट की माइंस हैं और इतना ही नहीं यहां के चूड़ी का व्यापार देशभर में जाना जाता है। इसके अलावा पाली के सोजत की मेहंदी केवल देश ही नहीं दुनिया में फेमस है।
पाली का इतिहास
आपको जानकर हैरानी होगी कि शूरवीर महाराणा प्रताप की मां जयवंती बहन पाली से ही थीं। वहीं महाराणा प्रताप का जन्म भी पाली में हुआ था। महाराणा प्रताप का ननिहाल पाली में ही था। पाली का इतिहास बताता है कि यह शहर तीन बार उजाड़ा गया है, लेकिन खास बात यह रही कि बार फिर से बस भी गया।
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इसका इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा है। पांच पांडव पुत्र भी अपने अज्ञातवास के समय पाली के बाली पहाड़ियों में रहे थे। पाली का वस्त्र उद्योग कपड़ों की रंगाई और छपाई के लिए विश्व भर में प्रख्यात है। पहले के समय में यहां दूसरे देशों से सामान लाकर यहां बेचा जाता था।
कैसे पड़ा पाली का नाम ?
इतना कुछ तो जान लिया पाली के बारे में, अब जानते हैं कि पाली का नाम कैसे पड़ा। पाली में पालीवाल ब्राह्मणों रहा करते थे। इस शहर को पहले पालिका और गुजर प्रदेश के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि पाली की पहचान पहले पल्लिका और पल्ली के नाम से भी थी। यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों के वजह से ही इसका नाम पाली पड़ा। यहां के रणकपुर और सोमनाथ जैसे भव्य मंदिरों को देखकर यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाली एक समृद्ध शहर हुआ करता था।
ऐसे मिली पालीवाल ब्राह्मणों को मदद
सीहाजी जब पुष्कर की यात्रा पर गए थे तो लौटते समय उन्होंने आमजन को बचाया था और उनकी मदद भी की थी। उस समय पाली के पालीवाल ब्राह्मणों ने भी सीहाजी से सहायता मांगी। सहायता के लिए सीहाजी अपने काफिले के साथ पाली आ गए थे। सीहाजी पालीवाल ब्राह्मणों और लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हुए सीहाजी ने यहां अपना शासन स्थापित किया और लुटेरों का खात्मा कर यहां के लोगों को राहत दिलाई थी।
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