Best Place to Visit Near Ranchi: रांची के इस 1100 साल पुराने मंदिर में बक्से में बंद हैं माता की प्रतिमा, पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर करते हैं पूजा
Best Temple to Visit Near Ranchi: रांची में नए साल का जश्न बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। रांची एवं आसपास के जिलों में कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर हैं, जहां लोग पूजा-अर्चना करने के बाद नए साल की शुरुआत करते हैं। इन मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण, देवी और महादेव विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिरों में पूजा करने से श्रद्धालु की सभी मुराद पूरी जाती है।
चतरा जिले में मां भद्रकाली का मंदिर।
मुख्य बातें
- रांची से आठ किमी दूर मदन मोहन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की करते हैं पूजा
- रांची से 92 किमी दूर लातेहार में है 400 साल पुराना मां उग्रतारा नगर भगवती मंदिर
- रांची से 150 किमी भद्रकाली मंदिर में एक साथ तीन धर्मों के धर्मावलंबी करते हैं आराधना
Ranchi Devi Temple: रांची जिले में एवं आसपास कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। इन मंदिरों में पहली जनवरी को हजारों श्रद्धालु पूजा करने पहुंचेंगे। हर साल यहां सुबह 4 बजे से देर रात तक अलग-अलग शहरों एवं जिलों से श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। इसकी वजह है कि मंदिरों का इतिहास एवं मान्यता काफी पुरानी है। हम आपको पांच मंदिरों की जानकारी दे रहे हैं, जहां आप नए साल के पहले दिन पूजा-अर्चना कर सकते हैं। इससे आपके जीवन सुख-समृद्धि आएगी।
सबसे पहला है मदन मोहन मंदिर। यह रांची शहर से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर बोड़ेया बस्ती में है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का निर्माण लक्ष्मी नारायण तिवारी ने 1665 में करवाया था। कहा जाता है कि किसी शुभ कार्य को करने से पहले यहां पूजा करनी चाहिए। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पूजा वृंदावन की परंपरा के अनुसार की जाती है। नवविवाहित जोड़ी सबसे पहले मदन मोहन मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं। इन्हें मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश दिया जाता है। इस मंदिर का इतिहास 356 साल पुराना है।
400 साल पुराना है मां उग्रतारा नगर भगवती मंदिररांची से 92 किलोमीटर दूर लातेहार जिले में प्रसिद्ध मंदिर है। चंदवा-चतरा मार्ग पर चंदवा प्रखंड में मां उग्रतारा नगर भगवती मंदिर का 400 साल पुराना इतिहास है। स्थानीय लोगों का दावा है कि यह देश का पहला मंदिर है, जहां दुर्गापूजा 16 दिनों तक होती है। मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी जरूर होती है। 16वीं शताब्दी से पहले मंदिर को टोरी राजा ने बनवाया था। मंदिर से 10 किलोमीटर दूर टोरी जंक्शन है। यहां से सभी दिशाओं के लिए ट्रेन मिल जाती है। ऐस में श्रद्धालुओं को यहां आने और यहां से लौटने में कोई परेशानी नहीं होती।
तीन धर्मों का संगम है भद्रकाली मंदिररांची मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर चतरा जिले के इटखोरी में एक मंदिर ऐसा है, जो तीन धर्मों का संगम स्थल है। इटखोरी में मां भद्रकाली मंदिर परिसर में बौद्ध और जैन धर्म का धार्मिक स्थल है। यहां तीनों धर्मों के लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। भद्रकाली मंदिर सिद्धपीठ है। जबकि भगवान बुद्ध का यह तपोभूमि है। यह उनका उपासना स्थल है। जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ स्वामी की यह जन्म भूमि है। वर्षों पहले तपस्वी मेघा मुनि ने अपने तप से इस परिसर को सिद्ध किया था और सिद्धपीठ के रूप में स्थापित किया था।
बुंडू सूर्य मंदिर की महिला ही अलगरांची-टाटा मुख्य मार्ग पर एदलहातू गांव है। इस गांव में बुंडू सूर्य मंदिर है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि भगवान राम ने वनवास जाते समय यहां रुककर भगवान सूर्य की पूजा की थी। संस्कृति विहार ने जमींदार प्रधान सिंह मुंडा से 11 एकड़ जमीन दान में ली थी। इसके बाद 24 अक्टूबर 1991 में सूर्य मंदिर बनाया गया था।
1100 साल पुराना है महामाया मंदिररांची मुख्यालय से 92 किलोमीटर दूर गुमला जिले में प्रसिद्ध महामाया मंदिर है। यह गुमला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर घाघरा प्रखंड के हापामुनी गांव में बना है। विक्रम संवत 965 में मंदिर बना था। मंदिर में महामाया की मूर्ति है पर महामाया मां को बक्सा में बंद करके रखा गया है। इसके पीछे की मान्यता है कि महामाया मां को खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता है। चैत्र कृष्णपक्ष परेवा पर डोल जतरा महोत्सव के समय बक्से को डोल चबूतरा पर रखकर मंदिर के मुख्य पुजारी बक्से को खोलकर महामाया मां की पूजा करते हैं। इस दौरान पुजारी की आंखों पर पट्टी बंधी होती है। वैसे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए महामाया मां की दूसरी प्रतिमा स्थापित हुई है। यह मंदिर के बाहर स्थापित की गई है। मंदिर एवं उसकी मूर्ति से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां हैं।
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