बोकारो और धनबाद में शिक्षा और छात्रों पर इसके प्रभाव, एक वैश्विक छात्र का इस पर दृष्टिकोण

आर्यमन एक वैश्विक छात्र हैं और वर्तमान में महिंद्रा यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज इंडिया में 11वीं कक्षा में हैं। उनका मामला है कि शिक्षा आधुनिक समय और युग में देश और उसके नागरिकों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह व्यक्तियों को उनके समुदायों के विकास और समृद्धि में भाग लेने और योगदान करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करती है।

Jharkhand Student Aryaman

Jharkhand Student Aryaman

मैं 11वीं कक्षा का छात्र हूं और मैंने सीखा है कि शिक्षा आधुनिक समय और युग में देश और उसके नागरिकों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह व्यक्तियों को उनके समुदायों के विकास और समृद्धि में भाग लेने और योगदान करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करती है। शिक्षा का व्यक्तियों, समुदायों और समग्र रूप से समाज पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है। शिक्षा में दुनिया को अधिक न्यायसंगत बनाने की क्षमता है।

मेरे पिता भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं। मेरा जन्म रियाध में हुआ था, जहां मुझे मेरी मां से शिक्षा मिली थी। मेरे पिता की पोस्टिंग फिलिस्तीन में हो गई और मेरी मां और मैं कुछ महीनों के लिए बिहार के एक छोटे से शहर भागलपुर में शिफ्ट हो गए। मेरे पिता एक कैरियर डिप्लोमैट और मां एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते स्थान बदलना बहुत अनियोजित था। मेरे माता-पिता ने मुझे भागलपुर के दूसरे प्ले स्कूल में भर्ती करा दिया। मैंने पहली बार देखा था कि कैसे जगह बदलने पर आधारभूत संरचना और बच्चे भी बदल जाते हैं। यहां स्कूल जाने वाली सड़क पर अधिक भीड़ रहती थी, स्कूल के खेल के मैदान अलग थे और बच्चों और शिक्षकों के बोलने का तरीका अलग था। मैंने अपना पहला दोस्त यहीं बनाया था। अपने आस-पास की बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में मैं पहली बार महसूस कर पा रहा था, इसके अलावा हर बार एक स्कूल से दूसरे स्कूल, एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश और कभी-कभी एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में जाने पर होने वाले बदलावों को मैं बारीकी से देख और समझ पा रहा था।

मैं फ़िलिस्तीन राज्य की राजधानी रामल्ला, फिर दिल्ली, फिर भूटान, त्रिनिदाद और टोबैगो में शिफ्ट होता रहा और अंत में मैं आंध्र प्रदेश में अपने बोर्डिंग स्कूल ऋषि वैली में स्थायी निवास मिला। मैंने वहां कक्षा 8 से 10वीं तक पढ़ाई की और वर्तमान में मैं महिंद्रा यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज, पुणे में कक्षा 11 में हूं। लगभग 16 साल की उम्र में हर बात की समझ आने लगी और मुझे एहसास हुआ कि शिक्षा के विभिन्न स्थानों और तरीकों से मेरे जीवन में कितना अंतर आया है और कैसे विचारों में स्पष्टता आने से सोचने समझने की प्रक्रिया भी बेहतर होती है।

अपने गृह नगर झारखंड में अपने दादाजी से मिलने जाने के दौरान मैंने कुछ स्कूलों और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं को देखा और महसूस किया। इस यात्रा के दौरान विकास का प्रासंगिक अर्थ और धरातल पर उसकी सच्चाई से जुड़े कई विचार-विमर्श मेरे दिमाग में आए। बुनियादी ढांचे, प्रकृति और लोगों के अवलोकन से मुझे सीखने का मौका मिला जो शायद पाठ्य पुस्तकों से हासिल कर पाना संभव नहीं था। हमारी दुनिया के विपरीत, शहरी और ग्रामीण भारत में अंतर, भारत के राज्यों में अंतर और एक समानांतर दुनिया जो राजधानी शहरों से 200 किमी दूर मौजूद है, साफ़ दिखाई देता है। इसने मुझे लोगों और विकास के बारे में भावुक होने के लिए भी प्रेरित किया और मेरी हमेशा की इंजीनियर बनने की इच्छा को अर्थशास्त्र, विकास और गणित के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने में बदलने का काम किया। यह लेख एक सामाजिक वैज्ञानिक के रूप में मेरा पहला प्रयास है कि मैं भारत के झारखंड राज्य में शिक्षा, छात्रों और इसके विकास के क्षेत्र में कदम रखूं, जहां से मैं आता हूं।

झारखंड, जंगलों की भूमि है , जहां शक्तिशाली दामोदर नदी बहती है और प्रचुर मात्रा में कोयले और खनिजों के साथ इस भूमि को आशीर्वाद देती है। झारखंड में भारत के खनिज संसाधनों का 40% से अधिक हिस्सा है, लेकिन इसकी 40% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। 5 वर्ष से कम आयु के 20% बच्चे कुपोषित हैं, हालांकि 2023-24 में झारखंड की जीएसडीपी विकास दर 11.1% से अधिक रहने का अनुमान है। जातिवार आबादी की बात करें तो यहां 46% ओबीसी, 26% आदिवासी, 16% सामान्य और 12% दलित हैं । अपने शोध के लिए मैंने अपने अध्ययन और समझ के लिए बोकारो और धनबाद में जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) को चुना। जेएनवी का चुनाव इसलिए किया क्योंकि मैं इसके मजबूत लोकाचार में विश्वास करता हूं।

जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) प्रतिभाशाली ग्रामीण बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के अवसर के लिए उनके शहरी समकक्षों को मिलने वाले अवसरों और सुविधाओं के जैसे ही अवसर और सुविधाएं मुहैया कराने के सरकार के प्रयास के प्रतीक हैं। इन विद्यालयों को नवोदय विद्यालय समिति, नोएडा द्वारा चलाया जाता है,जो भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय (MoE) के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत एक स्वायत्त संगठन है। जेएनवी पूरी तरह से आवासीय और सह-शिक्षा वाले स्कूल हैं जो छठी से बारहवीं कक्षा तक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के साथ संबद्ध हैं। शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति, 1986 के कारण आज देश के प्रत्येक जिले में जेएनवी हैं। जेएनवी के लिए प्रवेश प्रक्रिया काफ़ी कठिन है और सीबीएसई द्वारा ब्लॉक और जिला स्तर पर अखिल भारतीय स्तर पर वार्षिक रूप से आयोजित की जाती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्रामीण बच्चों को कोई नुकसान न हो, इस परीक्षा को वस्तुनिष्ठ और क्लासन्यूट्रल के आधार पर डिज़ाइन किया गया है । नामित जिले के जेएनवी में कम से कम 75% सीटें ग्रामीण क्षेत्रों से चुने गए उम्मीदवारों द्वारा भरी जाती हैं और शेष सीटें जिले के शहरी क्षेत्रों से भरी जाती हैं। इन विद्यालयों में जातिगत आरक्षण नीति का पालन किया जाता है, दिव्यांग बच्चों के लिए आरक्षण का प्रावधान है और कुल सीटों में से कम से कम एक तिहाई सीटें लड़कियों द्वारा भरी जाती हैं।

मैंने बोकारो और धनबाद जिलों के जेएनवी स्कूल का दौरा छात्रों, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं उन्हें दी जा रही शिक्षा को समझने और यहां के छात्र अपने जीवन में क्या बदलाव ला पाते हैं और जेएनवी के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव की गहरी समझ हासिल करने के लिए किया। एक प्रश्नावली वाले सर्वेक्षण की मदद से पंद्रह छात्रों, तीन शिक्षकों और प्रत्येक स्कूल के प्रिंसिपल का साक्षात्कार लिया गया। आठवीं, नौवीं और ग्यारहवीं कक्षा के पांच ऐसे छात्रों जिन्होंने स्कूल में कम से कम दो साल बिताए हों, का साक्षात्कार लिया ताकि एक अलग नमूना सेट किया जा सके। सर्वेक्षण प्रश्नावली के डेटा से पता चला कि: 30% छात्र पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी थे, 18% के पास अभी भी अपने घरों में शौचालय, नहाने की सुविधा और टैप वाटर की सुविधा नहीं थी, 30% के पास घर में नहाने की सुविधा नहीं थी, 30% के पास टैप वाटर नहीं था और 50% से अधिक लोगों के पास शुद्ध पेयजल की सुविधा नहीं थी।

बातचीत, साक्षात्कार और स्कूल में 2 दिन बिताने के बाद छात्रों के बारे में मेरा अवलोकन इस प्रकार था:

  1. छात्र एक दूसरे का, शिक्षकों का और अपनों से बड़ों का सम्मान करते हैं। वे हिंदी और ठीक-ठाक अंग्रेजी और बांग्ला में बातचीत करने में निपुण थे। वे आसानी से प्रश्नों को समझ रहे थे और खुद से उनके उत्तर तैयार करते थे। मैं यह देखकर अभीभूत था कि इनमें से अधिकांश छात्र अपने घरों में आदिवासी/क्षेत्रीय भाषाएं बोलते थे। छात्रों में उत्साह साफ नजर आ रहा था।
  2. छात्र जेएनवी में आने को एक "सुनहरा अवसर" या "जीवन में एक बार मिलने वाला अनुभव" मानते हैं और वे स्कूल में कराई जाने वाली लगभग सभी गतिविधियों जैसे- कला, नृत्य, संगीत, योग, शारीरिक प्रशिक्षण और सार्वजनिक मंच पर बोलना आदि में भाग लेकर इसका सर्वोत्तम उपयोग करने का प्रयास करते हैं।
  3. छात्र जाति, रंग, धर्म या लिंग की परवाह किए बिना एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे और गतिविधियों में एक साथ भाग ले रहे थे। इसकी पुष्टि इस तथ्य से की जा सकती है कि जब वे साक्षात्कार के लिए आए, तो वे खेल के मैदान या भोजन कक्ष में थे, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो लेकिन उनकी मित्रता हर जगह साफ़ नजर आ रही थी। सामाजिक राजनीति से दूर रहने पर, बच्चे विशेष रूप से आपस में कोई भेदभाव नहीं करते हैं।
  4. कक्षाओं में छात्रों के लिए स्मार्ट बोर्ड और लैपटॉप और प्रोजेक्टर थे। उनके पास स्कूल में माइक्रोस्कोप और प्रयोगशाला उपकरण से लैस उच्च विद्यालय स्तर की प्रयोगशालाएं भी थीं। यहां एक शानदार पुस्तकालय था और वे हर दिन कम से कम डेढ़ घंटे एक साथ खेलते थे और इनके अध्ययन के घंटे निर्धारित थे। जेएनवी में छात्रों के पास सर्वोत्तम सुविधाएं हैं और वे अधिकतम उत्पादकता के लिए प्रेरित रहते हैं।
  5. छात्र और शिक्षक के बीच मज़बूत रिश्ता हैं और वे खुद को आपस में एक परिवार मानते हैं। उनका रिश्ता सिर्फ़ कक्षाओं तक ही सीमित नहीं है। शिक्षक, एक शिक्षक और मार्गदर्शक का कार्य करते हैं इसलिए छात्रों के लिए कक्षा के अंदर और बाहर अपने संदेह पूछने या स्पष्टीकरण मांगने के लिए शिक्षक से संपर्क करना आसान होता है।
  6. छात्रों ने जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, कचरे के सुरक्षित निपटान, पानी की कमी और ग्लोबल वार्मिंग जैसे वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। ये छात्र स्थानीय संदर्भ के साथ-साथ वैश्विक संदर्भ दोनों में नतीजों से अवगत थे। वे इन मुद्दों से निपटने के लिए अपना अधिकतम प्रयास करने की कोशिश करते हैं। स्कूल में डिस्पोजेबल प्लास्टिक की वस्तुओं का लगभग कोई उपयोग नहीं होता है और वे घर पर भी ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं।

मेरी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह थी कि छात्र जब घर जाते हैं तो अपने दोस्तों और परिवार को स्कूल में सीखी गई बातों को सिखाते हैं। वे शैक्षणिक और गैर - शैक्षणिक दोनों तरह के अपने अनुभव और सीख को दूसरों के साथ साझा करते हैं। उन्होंने यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की कि कोई एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग न हो, कोई रासायनिक रिसाव या अपवाह जल निकायों में न बहे, एक आत्मविश्वास से भरी लड़की ने पास की एक नदी में अपशिष्ट जल के रिसाव की ओर इशारा करते हुए एक उदाहरण दिया और उसने अधिकारियों को इसके बारे में सूचित किया, जिस पर कार्रवाई की गई और रिसाव बंद हो गया। एक और काम जो एक छात्र ने किया वह था परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों को पास के खुले सीवेज को ढकने के लिए मनाना। एक बहुत ही सहज तरीके से, जिसमें कुछ छात्रों ने अपने स्थानीय समुदाय के सदस्यों को जलवायु परिवर्तन के बारे में समझाया, उनसे बारिश के अलग-अलग पैटर्न और सर्दी और गर्मी की अवधि और कुल मिलाकर तापमान में बदलाव के बारे में बात की। यह ज्यादातर अशिक्षित और ग्रामीण समुदाय के लिए इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारी को संप्रेषित करने का एक बहुत ही विश्वसनीय और प्रभावी तरीका निकला। कई छात्र अब अपने पीने के पानी को घर पर ही छानते हैं या पीने से पहले उबालते हैं। वे अपने समुदाय के सदस्यों को इसके बारे में जागरूक भी करते हैं।

कई छात्रों ने कहा कि जब वे घर जाते हैं तो वे अपने छोटे भाई-बहनों और दोस्तों और कुछ अपने माता-पिता को भी पढ़ाते हैं। छात्रों ने यह भी कहा कि वे अपने परिवार को स्वस्थ और संपूर्ण आहार के महत्व और व्यक्तियों की भलाई पर इसके प्रभाव के बारे में शिक्षित करते हैं। उन्होंने कोविड 19 महामारी के दौरान सामाजिक दूरी के महत्व और टीका लेने के महत्व के बारे में बताने वाले समुदाय के साथ भी काम किया। जेएनवी के छात्र अपने सामुदायिक क्षेत्र के इच्छुक उम्मीदवारों का मार्गदर्शन भी करते हैं।

शिक्षकों ने फीडबैक दिया कि जेएनवी में आने के बाद से कई छात्र अधिक परिपक्व हो गए हैं और सामाजिक व्यवहार के शिष्टाचार और बारीकियों को सीखते हैं, समय के पाबंद और स्वतंत्र बनते हैं और बेहतर व्यक्ति बनते हैं। शिक्षकों ने कहा कि जेएनवी बच्चों के लिए एक अच्छा स्कूल है क्योंकि उन्हें बहुत अधिक एक्सपोजर मिलता है। जेएनवी छात्रों के लिए बहुत सारी शैक्षणिक सहायता प्रदान करते हैं और छात्रों के पास अपनी इच्छा की परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थान जैसे आकाश और दक्षिणा फाउंडेशन जैसे विभिन्न संगठनों द्वारा निःशुल्क प्रदान की जाने वाली कोचिंग में भी जाने का मौका मिलता है।

लेखक के बारे में:

आर्यमन एक वैश्विक छात्र हैं और वर्तमान में महिंद्रा यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज इंडिया में 11वीं कक्षा में हैं । उन्हें पढ़ना और विभिन्न शारीरिक खेल, रोबोटिक्स और कोडिंग पसंद है। इनकी नई चीज़ों के बारे में जानने की उत्सुक प्रवृत्ति है । ये राजनीति और समसामयिक मामलों के बारे में भी रुचि रखते हैं।

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