Ranchi में कोई भूखा न सोए इसलिए रातभर जागकर लोगों को खाना खिलाती है ये स्टूडेंट, इंसानियत की है मिसाल
Ranchi: रांची में कोई भी इंसान भूखा नहीं सोए इसके लिए एक युवती काम कर रही है। यह जरूरतमंदों को निशुल्क खाना उपलब्ध करा रही है। इसके लिए वह शादी एवं पार्टी में बचे हुए खाना को इकट्ठा करती है और उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाती है। पिछले चार महीनों में यह संस्था हजारों लोगों को खाना उपलब्ध करवा चुकी है। सुखप्रीत कौर के साथ अब बलप्रीत कौर, कंचन तनेजा, विकास बुधिया, पंकज छाबड़ा, सुरभि, नीरज एवं अन्य कई लोग हैं।
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
मुख्य बातें
सुखप्रीत कौर शहर में बेसहारा लोगों को खिला रही हैं खाना
सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीएड कर रहीं हैं सुखप्रीत
सुखप्रीत के साथ कई युवा-युवती जुड़कर कर रहे काम
सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीएड कर रहीं हैं सुखप्रीत
सुखप्रीत के साथ कई युवा-युवती जुड़कर कर रहे काम
Ranchi News: स्वार्थ के इस जमाने में कुछ ऐसे भी युवा-युवती हैं, जो दूसरे का सहारा बन रहे हैं। रांची की सुखप्रीत कौर भी ऐसी हैं। यह शहर में बेसहारा लोगों को हर दिन खाना उपलब्ध करा रहीं हैं। इनकी कोशिश है कि शहर में कोई भी भूखा नहीं सोये। इसके लिए सुखप्रीत और इनकी टीम काफी समय से काम कर रही है। सु्खप्रीत सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीएड कर रही हैं।
सुखप्रीत की इस मुहिम में उनका साथ दिल्ली के अंकित कावत्रा दे रहे हैं। इन्होंने भूखे लोगों तक खाना उपलब्ध कराने के लिए फीडिंग इंडिया नाम से एक संस्था बनाई है। यह संस्था रांची में भी काम कर रही है। पिछले चार महीनों में यह संस्था हजारों लोगों को खाना उपलब्ध करवा चुकी है। सुखप्रीत कौर के साथ अब बलप्रीत कौर, कंचन तनेजा, विकास बुधिया, पंकज छाबड़ा, सुरभि, नीरज एवं अन्य कई लोग हैं।
कैटरर्स की लेते हैं मदद
रांची में फीडिंग इंडिया के सदस्य कैटरर्स और रेस्तरां के संपर्क में बने रहते हैं। ऐसे में इनके यहां बचने वाले खाने को इकट्ठा करके यह जरूरतमंद लोगों को मुहैया करा देते हैं। इसी तरह शादी समारोह या अन्य पार्टी खत्म होने के बाद रात 11 या 12 बजे संस्था के सदस्य को बचा हुआ खाना ले जाने के लिए कॉल आ जाता है। फोन आने के साथ संस्था के सदस्य गाड़ी लेकर खाना लाने के लिए निकल जाते हैं। जरूरतमंदों में खाना बांटने से पहले यह देखा जाता है कि खाना ठीक है या नहीं। खाना थोड़ा सा भी खराब होता है तो फेंक दिया जाता है, ताकि कोई उसे खाकर बीमार नहीं पड़े।
स्कूल-कॉलेज के आसपास के जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने से शुरू हुआ था अभियान
यह अभियान पहले स्कूल और कॉलेज के आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित था। इसकी शुरुआत यहीं से हुई थी। शिक्षण संस्थाओं के आसपास के बेसहारा लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जाता था। फिर इस अभियान से कई युवा एवं बुजुर्ग जुड़ते गए और यह पूरे शहर में काम करने लगा। अभियान के साथ कई होटल और रेस्तरां वाले भी जुड़ गए। संस्था के सदस्य निखिल मंगल कहते हैं कि भूखे को खाना खिलाने से अच्छा और क्या काम हो सकता है। यह नेक काम करके काफी खुशी होती है। असली मनुष्यता तो यही है। पंकज चांद का कहना है कि लोगों को खाना खिलाकर सुखद अनुभूति होती है। बेसहारा लोग खाना पाकर बेहद खुश होते हैं। उनकी यह खुशी काफी सुकून देती है।
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