Mahashivratri in Ranchi: रांची के आसपास हैं ज्योतिर्लिंग समेत यह प्रसिद्ध शिव मंदिर
Ranchi Police: शनिवार को महाशिवरात्रि है। इसको लेकर रांची समेत झारखंड के कई प्रसिद्ध शिव मंदिरों में तैयारी पूरी हो चुकी है। हर साल मंदिरों में देश भर से पूजा-अर्चना करने आते हैं। कई मंदिर पौराणिक हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ मंदिरों की जानकारी दे रहे हैं, जहां आप पूरे श्रद्धा भाव से पूजा कर सकते हैं। इन मंदिरों में पूजा करने से आपकी मुराद पूरी होगी।
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में देश भर से आते हैं श्रद्धालु
- देवघर में है ज्योतिर्लिंग वाला बाबा बैद्यनाथ मंदिर
- रावण ने यहां की थी शिवलिंग की स्थापना
- पश्चिमी सिंहभूम और ओडिशा की सीमा अंतर्गत मुगा बेड़ा गांव में है मुर्गा महादेव मंदिर
Ranchi Famous Shiv Temple: देश भर के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर है। यह ज्योतिर्लिंग है। रांची से साढ़े छह घंटे का सफर कर बाबा बैद्यनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं। यहां सामान्य दिनों में भी हजारों लोग पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा 21 मंदिर हैं। मंदिर को हृदय पीठ और चिता भूमि भी कहते हैं। दरअसल, माता सती का हृदय यहां पर गिरा था। इसी जगह उनका दाह-संस्कार भी किया गया था।
गिरिडीह में बाबा हरिहर धाम मंदिर है। यहां शिवलिंग 65 मीटर ऊंचा है। इसे बनाने में 30 साल लगा था। इसके अलावा रामगढ़-बोकारो मुख्य मार्ग पर कैथा गांव है, जिसमें किलेनुमा शिव मंदिर है। इसे बंगाल, राजपूत और मुगल की भिक्षित कला से बनाया गया है। मुख्य शिवलिंग 12 फीट ऊंचा है। यहां महाशिवरात्रि पर काफी भीड़ उमड़ती है।
रांची से 40 किमी दूर है अंगराबड़ी शिव मंदिररांची मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर अंगराबड़ी शिव मंदिर है। यह खूंटी में है। यह अमेश्वर धाम अंगराबड़ी नाम से चर्चित है। इस मंदिर का नाम शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने रखा था। पश्चिमी सिंहभूम और ओडिशा की सीमा पर मुर्गा महादेव मंदिर है। इस मंदिर से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। विशेष कर पति की दीघार्यु के लिए महिलाएं यहां आती हैं। ओडिशा के जोड़ा प्रखंड में रहने वाले एक दंपति ने मंदिर बनवाया था। पुत्र प्राप्ति के लिए दंपति ने मंदिर बनवाया था।
दुमका में है बासुकीनाथ मंदिररांची मुख्यालय से 282 किलोमीटर की दूर पर दुमका जिले में बासुकीनाथ मंदिर है। यह अतिप्राचीन शिव मंद र है। मंदिर के पास में एक तालाब है, जिसे शिवगंगा कहा जाता है। मंदिर 16वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था। समुद्र मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था। वासुकी नाग ने यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। इस वजह से यहां विराजमान भगवान शिव बासुकीनाथ के नाम से जाने जाते हैं।
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