'चेफरी': बदरी के संघर्ष और बिजय की सफलता की कहानी है यह उपन्यास

एक पिता बदरी कैसे कलकत्ता में संघर्ष करता है और एक दिन उसका बेटा कलक्टर बन जाता है। उसके अपना घरारी न बेचने का फैसला, बेटे की सफलता और समय के साथ बदलता लोगों का स्वभाव सब कुछ इस उपन्यास में आपको मिलेगा।

चेफरी उपन्यास

इसी साल मैथली भाषा में 'चेफरी' नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ है। यह उपन्यांस अपने नाम की ही तरह रहस्यों से भरा है। उपन्यास के लेखर दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी हैं, जिनका नाम केशव भारद्वाज है। वह कई वर्षों तक प्रतिनियुक्ति पर विदेशों में भी रहे हैं। विदेश में रहने के अपने अनुभव को उन्होंने चेफरी में बड़ी ही बारीकी से उकेरा भी है।

चेफरी की कहानी बदरी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका मानना है कि चार पीढी के बाद मनुष्य का भाग्य - चक्र बदलता है। इसी लिए वह अपना घरारी बेचने के लिए तैयार नहीं है। उसे यह लगता था कि कल को उसके बेटे के पास पैसा हो जाता है तो वह गांव में घर किस भूमि पर बनायेगा? सब दिन क्या वह इसी तरह से गरीब ही रहेगा?

यह उपन्यास मिश्रौली नामक गांव से आरम्भ हुआ, कलकत्ता, दिल्ली, बिशनपुर और विदेशों की यात्रा करता हुआ गांव में आकर अपनी यात्रा को विराम देता है। गांव का गरीब बदरी कैसे कलकत्ता जाकर रिक्शा चलाता है और बाद में उसी का बेटा बिजय कलेक्टर बनकर वहां पहुंचता है। रंग-रंग के पात्र, सभी का समयानुकूल बदलता स्वभाव उपन्यास में देखने को मिलता है। बाबू बड़ा न भैय्या, सबसे बड़ा रुपैय्या को यह उपन्यास चरितार्थ करने में पूरी तरह से सफल हुआ है।

End Of Feed