अगले साल उत्तराखंड के पहाड़ों में दौड़ेगी Train, होंगे चारधाम के दर्शन; जानिए काम का Update
उत्तराखंड में इन दिनों चारधाम यात्रा चल रही है। इस बार चारधाम यात्रा भारी भीड़ और अव्यवस्था को लेकर ज्यादा चर्चा में है। लेकिन अगले साल ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक ट्रेन चलने लगेगी, जिससे चारधाम यात्रा आसान होने के साथ ही इस साल की तरह रेलमपेल भी नहीं होगी।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग
उत्तराखंड में जब से इस साल चारधाम यात्रा शुरू हुई है, तभी से चारों धामों में भारी भीड़ और अव्यवस्था देखने को मिल रही है। प्रशासन लगातार काम कर रहा है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच गए हैं कि चारधाम यात्रा मार्ग पर 45 किमी लंबा जाम देखने को मिला। अच्छी बात यह है कि अगले साल आप चारधाम यात्रा पर रेल से आ पाएंगे। जी हां, आपने सही पढ़ा... ऋषिकेश-कर्णप्रयार रेल लाइन (Rishikesh-Karnprayag Rail Line) का काम तेजी से हो रहा है और भारतीय रेलवे के अनुसार साल 2025 में इस रूट पर रेल चलने लगेगी।
भारतीय रेलवे ने दावा किया है उत्तराखंड में नई ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन (Rishikesh-Karnprayag Rail Line) का काम 70 फीसद तक पूरा हो गया है। दावा किया गया है कि अगले साल यानी 2025 में इस रूट पर ट्रेन चलने लगेगी। इस रेल रूट के चालू होने से ऋषिकेश से कर्णप्रयाग का सफर सड़क के मुकाबले आधे समय में पूरा हो जाएगा। इस मार्ग पर ट्रेन चलने से सालाना 20 करोड़ रुपये के ईंधन (पेट्रोल, डीजल) की बचत होगी।
सड़क परिवहन पर निर्भरता कम होने से पहाड़ों में पर्यावरण बचाने में भी मदद मिलेगी और उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता बनी रहेगी। इस रूट पर रेल चलने से अब अगले साल से आपको गाड़ी लेकर चारधाम यात्रा करने की जरूत नहीं पड़ेगी। ऋषिकेश देश के रेल नेटवर्क से पहले ही जुड़ा हुआ है, यहां से कर्णप्रयाग के जुड़ जाने से चारधाम यात्रा आसान हो जाएगी। फिर चारधाम यात्रा मार्ग उस तरह का जाम और अव्यवस्था देखने को नहीं मिलेगी, जैसी इस साल देखने को मिल रही है। कर्णप्रयाग तक रेल से सफर करके यहां से उत्तराखंड रोडवेज की बस या टैक्सी से आगे का सफर आसानी से किया जा सकेगा। कर्णप्रयाग से चारों धामों की दूरी हम यहां नीचे लिस्ट में दे रहे हैं -
- बदरीनाथ - 119 किलोमीटर
- केदारनाथ - 103 किलोमीटर (सोनप्रयाग)
- यमुनोत्री - 285 किलोमीटर (जानकी चट्टी)
- गंगोत्री - 299 किलोमीटर
एक सदी पुरानी मांग और डिजाइन
साल 1947 में जब देश आजाद हुआ उस समय, आज के उत्तराखंड के हिस्से में जो इलाके हैं... वहां के मैदानी इलाकों तक ट्रेन पहुंच चुकी थी। लेकिन इसके बाद ट्रेन पहाड़ नहीं चढ़ पाई। ट्रेन को उत्तराखंड के पहाड़ चढ़ने में करीब 8 दशक लग गए। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल की मांग आज की नहीं, बल्कि 100 साल पुरानी है। आज से करीब 99 साल पहले इस रेल लाइन के लिए डिजाइन तैयार कर लिया गया था। इसी तरह से कुमाऊं क्षेत्र में भी टनकपुर से बागेश्वर रेल लाइन की मांग भी दशकों से हो रही है, लेकिन यहां भी रेल पहाड़ नहीं चढ़ पाई।ये भी पढ़ें - गंगा के मायके में : ना गौमुख ना गंगोत्री, यहां से शुरू होता है गंगा का सफर, देवों का भी प्रयाग है देवप्रयाग
आखिरकार ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग पर काम शुरू हुआ और अब तक इसका 70 फीसद से ज्यादा काम पूरा भी हो गया है। रेलवे के अनुसार पर्यटन के सीजन में ट्रेन ऋषिकेश और कर्णप्रयाग के बीच 4 फेरे लगाएगी, जबकि अन्य सीजन में दो फेरे लगाए जाएंगे। यह रेल मार्ग कुल 125 किमी का है, जिसे पूरा करने में ट्रेन को डेढ़ से दो घंटे का समय लगेगा। जबकि इस समय सड़क मार्ग से अगर आप ऋषिकेश से कर्णप्रयाग जाते हैं तो आपको 4.5-5 घंटे का समय लग जाता है।
पहाड़ में रोजगार भी लाएगी रेल
ऋषिकेश से पहाड़ चढ़कर जब रेल कर्णप्रयाग तक जाएगी तो यह पहाड़ में रोजगार भी लाएगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, रेल लाइन की मरम्मत व रखरखाव के लिए ही करीब 450 लोगों को पर्मानेंट रोजगार मिलेगा। इस समय जब रेल लाइन बनाने का काम तेजी से चल रहा है तो अब भी करीब 6400 कामगार पूरी मशक्कत से लगे हुए हैं। योग नगरी ऋषिकेश और अलकनंदा व पिंडर नदियों के संगम की नगरी कर्णप्रयाग के बीच टूरिज्म, बाजार और ट्रांसपोर्टेशन से भी करीब 2000 लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।ये भी पढ़ें - इन दो हिल स्टेशनों पर गर्मियों की छुट्टियां मनाने जा रहे हैं तो E-Pass ले लें, वरना एंट्री नहीं मिलेगी
ईंधन की बचत करेगी रेल
ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल चलने से बड़ी मात्रा में ईंधन की भी बचत होगी। livehindustan में छपी एक रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक इस रूट पर रोज करीब 654 पैसेंजर कारें चलती हैं, जो औसतन 5 किमी का माइलेज देती हैं। इस तरह से यह 16125 लीटर ईंधन की खपत करती हैं और ईंधन परऋषिकेश-कर्णप्रयाग के बीच प्रतिदिन 645 पैसेंजर कार यूनिट (पीसीयू) चलते हैं। यह वाहन औसतन पांच किलोमीटर माइलेज देते हैं और 16125 लीटर ईंधन की खपत करते हैं। इस तरह 29 करोड़, 42 लाख, 81 हजार से ज्यादा का ईंधन जलता है। करीब 2 किमी की माइलेज के साथ हर साल 7752 कॉमर्शियल गाड़ियां भी इस रूट पर चलती हैं और 4 लाख, 84 हजार, 540 लीटर ईंधन जलाती हैं। इस तरह कुल 24 करोड़, 22 लाख, 70 हजार का ईंधन जलता है।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन बन जाने से मौजूदा सड़क परिवहन का करीब 60 फीसद यात्री और माल ढुलाई रेलवे से होने लगेगी। इस तरह से लगभग 20 करोड़ रुपये के ईंधन की बचत होगी। इसके अलावा यात्री और माल कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंचेगा।
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Digpal Singh author
खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें
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