गंगा के मायके में : रुद्रप्रयाग, जहां देवऋषि नारद ने भगवान रुद्र से संगीत की विद्या सीखी

गंगा अपने सफर में कई शहरों और पीढ़ियों को तारते हुए लगातार आगे बढ़ रही है। हम भी गंगा के मायके की यात्रा में चौथे पड़ाव पर पहुंच गए हैं। यह चौथा पड़ाव रुद्रप्रयाग है, जहां पर अलकनंदा नदी और मंदाकिनी का संगम होता है। रुद्रप्रयाग देवऋषि नारद की तपस्या के लिए मशहूर है, जो उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की थी।

यहां अलकनंदा में समा जाती है मंदाकिनी नदी

गंगा के मायके के सफर में आज हम गंगा की यात्रा करते हुए रुद्रप्रयाग आ पहुंचे हैं। विष्णुप्रयाग (Vishnuprayag) से हमने गंगा की यात्रा शुरू की थी और इसमें आगे बढ़ते हुए हम नंदप्रयाग (Nandprayag) और कर्णप्रयाग (Karnprayag) की सैर कर चुके हैं। अब आज हमारी इस यात्रा का ठिकाना रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) में है। रुद्रप्रयाग में गंगा की प्रमुख धारा अलकनंदा (Alaknanda) और मंदाकिनी (Mandakini) का संगम होता है। रुद्रप्रयाग एक पहाड़ी शहर और निगम है। इसी शहर के नाम पर पूरे जिले का नाम भी रुद्रप्रयाग है। उत्तराखंड के पहाड़ों पर बसा रुद्रप्रयाग एक बहुत ही खूबसूरत शहर है। यहां पर कई भव्य मंदिर और गुफाओं के अलावा मन मोह लेने वाले नजारे देखने को मिलते हैं। अगर बात करें रुद्रप्रयाग जिले की तो यह धार्मिक यात्रा के लिए बहुत ही मशहूर है। रुद्रप्रयाग हिंदू मान्यताओं के अनुसार बहुत ही पवित्र स्थान है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार नदियों के संगम पर स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर स्नान करने के लिए भी श्रद्धालु आते हैं।

कहां है रुद्रप्रयागरुद्रप्रयाग सतोपंथ ग्लेशियर (Satopanth Glacier) से निकलने वाली अकलनंदा और केदारनाथ की घाटियों (Chaurabari Glacier) से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के संगम पर बसा शहर है। वासुकी ताल से निकलने वाली वासुकी गंगा नंदी रुद्रप्रयाग के पास ही मंदाकिनी नदी में मिलती है। यहां आकर मंदाकिनी नदी का सफर समाप्त होता है और वह अलकनंदा में समा जाती है। यहां से अलकनंदा तेजी से आगे बढ़ जाती है, तेजी से बढ़ती अलकनंदा को देखकर ऐसा लगता है जैसे उसे गंगा बन जाने की जल्दी हो। रुद्रप्रयाग समुद्रतल से 2936 फीट की ऊंचाई पर बसा है। चमोली, पौड़ी और टिहरी जिले से केदारनाथ और बदरीनाथ जाने के लिए सड़क रुद्रप्रयाग से होकर ही जाती है। रुद्रप्रयाग उत्तराखंड के एक अन्य प्रमुख शहर श्रीनगर से करीब 33 किमी दूर है। ऋषिकेश ये अगर आप रुद्रप्रयाग जाना चाहते हैं तो आपको करीब 141 किमी की दूरी तय करनी होगी। हरिद्वार से यह दूरी लगभग 165 किमी है।

रुद्रप्रयाग की अपनी कहानीभगवान शिव को रुद्र देव भी कहा जाता है और रुद्रप्रयाग को उसका यह नाम भगवान शिव से ही मिला है। माना जाता है कि देवऋषि नारद ने संगीत में पारंगत होने के लिए यहां पर वर्षों तक भगवान शिव (Lord Shiv) की अराधना की थी। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और रुद्र अवतार में उन्हें वरदान दिया। उत्तराखंड के चारधाम जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए रुद्रप्रयाग एक तरह का गेटवे है। यहीं से केदरानाथ (Kedarnath) और बदरीनाथ (Badrinath) के लिए रास्ता जाता है। रुद्रप्रयाग में रहने के लिए कई होमस्टे और छोटे-मोटे होटल उपलब्ध हैं। इसके अलावा गढ़वाल मंडल विकास निगम का रिजॉर्ट भी यहां पर है।

रुद्रप्रयाग में क्या देखेंअगर आप रुद्रप्रयाग में हैं तो आप यहां रुद्रनाथ मंदिर में भगवान के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा कोटेश्वर मंदिर, मद्महेश्वर और त्रिजुगीनारायण मंदिर जाकर भी आप भगवान के दर्शन कर सकते हैं। यहां मंदाकिनी और अलकनंदा नदी के संगम पर चांमुंडा देवी का मंदिर भी है। मार्च से नवंबर तक रुद्रप्रयाग आने का सबसे अच्छा समय है। सर्दियों में यहां बर्फबारी के कारण मुश्किल होती है। रुद्रप्रयाग से कर्णप्रयाग सिर्फ 33 किमी दूर है, जहां पर अलकनंदा नदी और पिंडर नदी का संगम है।

रुद्रप्रयाग के आसपासअगर आप रुद्रप्रयाग में हैं तो यहां से करीब 10 किमी दूर अगस्तमुनि आपको जरूर जाना चाहिए। यह एक छोटा सा लेकिन बहुत ही खूबसूरत और शांत कस्बा है, जो मंदाकिनी नदी के किनारे बसा है। ऋषि अगस्त्य के नाम पर इस कस्बे का नाम पड़ा है। यहां पर घने जंगल और पहाड़ हैं। रुद्रप्रयाग टाउन से करीब 30 किमी दूर कार्तिकस्वामी मंदिर भी है। रुद्रप्रयाग से गढ़वाल के मशहूर धारी देवी मंदिर की दूरी मात्र 20 किमी के करीब है। अगर आप ऋषिकेश की तरफ से रुद्रप्रयाग जा रहे हैं तो पहले धारीदेवी के दर्शन करते हुए आगे बढ़ें। रुद्रप्रयाग से मशहूर ट्रैक चोपता की दूरी करीब 34 किमी और देवरियाताल करीब 55 किमी दूर है। यहां से गुप्तकाशी करीब 45, जखोली करीब 36 किमी दूर हैं। रुद्रप्रयाग शहर से केदारनाथ धाम की दूरी करीब 50 किमी है, तुंगनाथ मंदिर की दूरी करीब 68 किलोमीटर और बदरीनाथ यहां से लगभग 150 किमी दूर है।

इस क्षेत्र में पांडव डांस काफी मशहूर है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपनों की हत्या के पास से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने भगवान शिव की अराधना करने के लिए यहां की यात्रा की थी। आज भी यहां के स्थानीय लोग उस यात्रा की याद में पांडव लीला करते हैं।

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