Haldwani Name: कैसे पड़ा हल्द्वानी नाम , जानिए मुगलों का क्या है यहां से संबंध
हल्द्वानी उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र का बड़ा शहर है और इसे कुमाऊं का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यह शहर करीब 200 साल पुराना है और एक अंग्रेज ने इसका नाम हल्द्वानी रखा था। लेकिन इस पूरे क्षेत्र का संबंध मुगल शासकों से भी जुड़ता है। चलिए जानते हैं हल्द्वानी की रोचक कहानी -
हल्द्वानी की कहानी
सबसे पहले नाम की कहानी
हल्द्वानी को उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी (Financial capital of Uttarakhand) भी कहा जाता है। यह राज्य का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर और सबसे बड़ा वाणिज्यिक बाजार (Commercial Market) है। साथ ही हल्द्वानी कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर भी है। हल्द्वानी को उसका यह नाम यहां बड़ी संख्या में पाए जाने वाले हल्दू के पेड़ से मिला है।आज का हल्द्वानी
आज हल्द्वानी लगातार बड़ा और बड़ा शहर होते जा रहा है। आज हल्द्वानी उपनगरीय क्षेत्रों तक फैल गया है, जिसमें कुसुमखेड़ा (Kusumkhera), ऊंचा पुल (Uncha Pul), बिठोरिया (Bithoria), दमुआढूंगा (Damuadhunga), भोटिया पड़ाव (Bhotia Parao), कटगरिया (Kathgaria), फतीहपुर (Fateehpur), दहारिया (Daharia), गौजाजाली (Gaujajali), लामाचौड़ा (Lamachour), गौलापार (Trans Gaula) जैसी जगहें शामिल हैं। यहां बहने वाली गौला नदी के दूसरी तरफ भी शहरी गतिविधियां बढ़ गई हैं, जिसे गौला पार कहा जाता है। यहां तक कि आज हल्द्वानी और काठगोदाम में अंतर कर पाना भी मुश्किल हो गया है। यहां सुशीला तिवारी मेमोरियल अस्पताल जैसे मेडिकल कॉलेज हैं। इस शहर में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। बड़े-बड़े शोरूम के साथ ही यहां पर पहाड़ी संस्कृति की झलक भी अच्छे से देखने को मिलती है। शहरों से जाने वाले या रिटायर होने वाले ऐसे लोगों के लिए जो पहाड़ नहीं जाना चाहते, हल्द्वानी पहली पसंद बन गया है।200 साल पुराना है हल्द्वानी
कहानी 1816 से शुरू होती है, जब अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराकर उन्हें नेपाल की सीमा में बांध दिया था। उस समय गार्डनर को कुमाऊं कमिश्नर बनाया गया। बाद में जॉर्ज विलियम ट्रेन कुमाऊं कमिश्नर बने तो साल 1834 में उन्होंने हल्दू-वनी का नाम बदलकर हल्द्वानी कर दिया। ब्रिटिश रिकॉर्ड्स के अनुसार हल्द्वानी नाम की यह जगह 1934 में बनी थी। तराई में आने वाले हल्द्वानी को पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक बाजार के तौर पर विकसित किया गया था, जहां वह सर्दियों में आ सकते थे। सन 1856 में सर हेनरी रामसे कुमाऊं कमिश्नर बने। 1882 में रामसे ने काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क बनाकर नैनीताल को तराई से जोड़ दिया। 1883-84 में बरेली से काठगोदाम के बीच रेलवे ट्रैक बिछाया गया। 24 अप्रैल 1884 को लखनऊ से हल्द्वानी तक पहली ट्रेन आई, जिसे बाद में काठगोदाम पर बढ़ाया गया।मुगलों से कैसे जुड़ा इतिहास
14वीं सदी के मुगल इतिहास के अनुसार यहां के स्थानीय शासक चंद राजवंश (Chand Dynasty) के ज्ञान चंद दिल्ली सल्तनत के पास गए और सुल्तान से तराई क्षेत्र का अधिकार हासिल किया। बाद में मुगलों में पहाड़ों को भी अपने कब्जे में लेने की कोशिश की, लेकिन पहाड़ी इलाकों में उन्हें सफलता नहीं लगी।ऐसे बढ़ा हल्द्वानी का रुतबा
1899 में हल्द्वानी में तहसील ऑफिस खोला गया। उस समय हल्द्वानी नैनीताल जिले के चार डिवीजन में से एक भाबर तहसील का हेडक्वार्टर था। इसके तहत उस समय 4 शहरी क्षेत्र और 500 से ज्यादा गांव आते थे। बात करें 1901 की तो उस समय हल्द्वानी की कुल जनसंख्या करीब साढ़े 6 हजार थी और यह नैनीताल जिले के भाबर क्षेत्र का हेडक्वार्टर था। उस समय हल्द्वानी, कुमाऊं डिवीजन और नैनीताल जिले का विंटर हेडक्वार्टर यानी सर्दियों का मुख्यालय भी बन जाता था। बता दें कि 1891 में नैनीताल जिला बनने से पहले यह क्षेत्र कुमाऊं जिले का हिस्सा था, जिसे बाद में अल्मोड़ा जिला कहा गया। हल्द्वानी को 1907 में शहरी क्षेत्र का दर्जा मिला। सितंबर 1942 में हल्द्वानी-काठगोदाम नगर पालिका परिषद बनाया गया। मौजूद दौरा में यह हरिद्वार के बाद उत्तराखंड का सबसे बड़ा पालिका परिषद है।खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें
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