Haldwani Name: कैसे पड़ा हल्द्वानी नाम , जानिए मुगलों का क्या है यहां से संबंध

हल्द्वानी उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र का बड़ा शहर है और इसे कुमाऊं का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यह शहर करीब 200 साल पुराना है और एक अंग्रेज ने इसका नाम हल्द्वानी रखा था। लेकिन इस पूरे क्षेत्र का संबंध मुगल शासकों से भी जुड़ता है। चलिए जानते हैं हल्द्वानी की रोचक कहानी -

Haldwani-story.

हल्द्वानी की कहानी

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की खूबसूरती निहारने तो आप कई बार गए होंगे। नैनीताल (Nainital), रानीखेत (Ranikhet), अल्मोड़ा (Almora), कौशानी (Kausani), मुक्तेश्वर (Mukteshwar) और रामगढ़ (Ramgarh) के साथ ही कैचीधाम (Kaichi Dham Mandir) जाने का अवसर भी आपको मिला होगा। अपने इस सफर के दौरान आप पहाड़ शुरू होने से पहले जिस एक शहर से होकर गए होंगे, उसका नाम है हल्द्वानी। जी हां, हल्द्वानी को पहाड़ों और विशेषतौर पर कुमाऊं क्षेत्र का द्वार (Gateway of Kumaun) भी कहा जाता है। हल्द्वानी भारतीय रेलवे के नेटवर्क से जुड़ा है। हल्द्वानी से काठगोदाम रेलवे स्टेशन (Kathgodam Railway Station) सिर्फ 8 किमी दूर है, जो इस लाइन का आखिरी रेलवे स्टेशन भी है। आज जानते हैं हल्द्वानी का नाम कैसे पड़ा? एक शहर के रूप में हल्द्वानी कब विकसित हुआ? मुगल काल से हल्द्वानी का रिश्ता क्या है?

सबसे पहले नाम की कहानीहल्द्वानी को उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी (Financial capital of Uttarakhand) भी कहा जाता है। यह राज्य का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर और सबसे बड़ा वाणिज्यिक बाजार (Commercial Market) है। साथ ही हल्द्वानी कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर भी है। हल्द्वानी को उसका यह नाम यहां बड़ी संख्या में पाए जाने वाले हल्दू के पेड़ से मिला है।

ये भी पढ़ें - एक शहर को दो देशों में बांट देती है ये नदी, जानिए नदी और शहर का नाम

हल्द्वानी कुमाऊं क्षेत्र के भाबर यानी तराई में है और यहां पर हल्दू के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। दरअसर कदम्ब के पेड़ को ही कुमाऊंनी भाषा में हल्दू कहा जाता है। पहले इस जगह को हल्दू-वनी यानी हल्दू का वन या जंगल कहा जाता था। लेकिन बाद में एक अंग्रेज कुमाऊं कमिश्नर ने इसका नाम बदलकर हल्द्वानी रख दिया। इस क्षेत्र में छोटे जंगल को वनी कहा जाता है। इसी तरह से यहां पास में ही कोटाबाग के पास एक जगह सीतावनी भी है।

आज का हल्द्वानीआज हल्द्वानी लगातार बड़ा और बड़ा शहर होते जा रहा है। आज हल्द्वानी उपनगरीय क्षेत्रों तक फैल गया है, जिसमें कुसुमखेड़ा (Kusumkhera), ऊंचा पुल (Uncha Pul), बिठोरिया (Bithoria), दमुआढूंगा (Damuadhunga), भोटिया पड़ाव (Bhotia Parao), कटगरिया (Kathgaria), फतीहपुर (Fateehpur), दहारिया (Daharia), गौजाजाली (Gaujajali), लामाचौड़ा (Lamachour), गौलापार (Trans Gaula) जैसी जगहें शामिल हैं। यहां बहने वाली गौला नदी के दूसरी तरफ भी शहरी गतिविधियां बढ़ गई हैं, जिसे गौला पार कहा जाता है। यहां तक कि आज हल्द्वानी और काठगोदाम में अंतर कर पाना भी मुश्किल हो गया है। यहां सुशीला तिवारी मेमोरियल अस्पताल जैसे मेडिकल कॉलेज हैं। इस शहर में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। बड़े-बड़े शोरूम के साथ ही यहां पर पहाड़ी संस्कृति की झलक भी अच्छे से देखने को मिलती है। शहरों से जाने वाले या रिटायर होने वाले ऐसे लोगों के लिए जो पहाड़ नहीं जाना चाहते, हल्द्वानी पहली पसंद बन गया है।

ये भी पढ़ें - सावन में यहां करें उत्तर भारत के सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन

200 साल पुराना है हल्द्वानीकहानी 1816 से शुरू होती है, जब अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराकर उन्हें नेपाल की सीमा में बांध दिया था। उस समय गार्डनर को कुमाऊं कमिश्नर बनाया गया। बाद में जॉर्ज विलियम ट्रेन कुमाऊं कमिश्नर बने तो साल 1834 में उन्होंने हल्दू-वनी का नाम बदलकर हल्द्वानी कर दिया। ब्रिटिश रिकॉर्ड्स के अनुसार हल्द्वानी नाम की यह जगह 1934 में बनी थी। तराई में आने वाले हल्द्वानी को पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक बाजार के तौर पर विकसित किया गया था, जहां वह सर्दियों में आ सकते थे। सन 1856 में सर हेनरी रामसे कुमाऊं कमिश्नर बने। 1882 में रामसे ने काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क बनाकर नैनीताल को तराई से जोड़ दिया। 1883-84 में बरेली से काठगोदाम के बीच रेलवे ट्रैक बिछाया गया। 24 अप्रैल 1884 को लखनऊ से हल्द्वानी तक पहली ट्रेन आई, जिसे बाद में काठगोदाम पर बढ़ाया गया।

ये भी पढ़ें - गंगा के मायके में : ना गौमुख ना गंगोत्री, यहां से शुरू होता है गंगा का सफर, देवों का भी प्रयाग है देवप्रयाग

मुगलों से कैसे जुड़ा इतिहास14वीं सदी के मुगल इतिहास के अनुसार यहां के स्थानीय शासक चंद राजवंश (Chand Dynasty) के ज्ञान चंद दिल्ली सल्तनत के पास गए और सुल्तान से तराई क्षेत्र का अधिकार हासिल किया। बाद में मुगलों में पहाड़ों को भी अपने कब्जे में लेने की कोशिश की, लेकिन पहाड़ी इलाकों में उन्हें सफलता नहीं लगी।

ये भी पढ़ें - अनोखा है अल्मोड़ा का यह देवी मंदिर, माचू-पीच्चू और स्टोनहेज से है खास संबंध!

ऐसे बढ़ा हल्द्वानी का रुतबा1899 में हल्द्वानी में तहसील ऑफिस खोला गया। उस समय हल्द्वानी नैनीताल जिले के चार डिवीजन में से एक भाबर तहसील का हेडक्वार्टर था। इसके तहत उस समय 4 शहरी क्षेत्र और 500 से ज्यादा गांव आते थे। बात करें 1901 की तो उस समय हल्द्वानी की कुल जनसंख्या करीब साढ़े 6 हजार थी और यह नैनीताल जिले के भाबर क्षेत्र का हेडक्वार्टर था। उस समय हल्द्वानी, कुमाऊं डिवीजन और नैनीताल जिले का विंटर हेडक्वार्टर यानी सर्दियों का मुख्यालय भी बन जाता था। बता दें कि 1891 में नैनीताल जिला बनने से पहले यह क्षेत्र कुमाऊं जिले का हिस्सा था, जिसे बाद में अल्मोड़ा जिला कहा गया। हल्द्वानी को 1907 में शहरी क्षेत्र का दर्जा मिला। सितंबर 1942 में हल्द्वानी-काठगोदाम नगर पालिका परिषद बनाया गया। मौजूद दौरा में यह हरिद्वार के बाद उत्तराखंड का सबसे बड़ा पालिका परिषद है।

ये भी पढ़ें - भारत के इस शहर में बनेगा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रोपवे, 60 किमी हवा में झूलेंगे आप

गोरा पड़ाव की कहानी

हल्द्वानी में गोरा पड़ाव नाम की भी एक जगह है। अंग्रेजों के समय यह हल्द्वानी शहर से करीब 4 किमी दक्षिण दिशा में था। यहीं पर 19वीं सदी में अंग्रेजों का कैंप था। यहां के स्थानीय लोगों के अंग्रेजों के रहने की जगह का नाम गोरा पड़ाव रख दिया जो एक तरह से अंग्रेजों का मजाक उड़ाने के लिए दिया गया था।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | शहर (cities News) और बजट 2024 (Union Budget 2024) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited