कहानी सूरत के उस टाटा की, जिसका बचपन अनाथालय में गुजरा और बेटा बना देश का 'रतन'
टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार 9 अक्टूबर को निधन हो गया। रतन टाटा के निधन से देश में शोक की लहर है। इस बीच जानते हैं उस टाटा की कहानी जिसके पिता रतन, पुत्र उनसे भी बड़ा रतन, खुद अनाथालय में बचपन बिताना पड़ा और आगे चलकर टाटा ग्रुप में बड़ी जिम्मेदारी भी संभाली।
रतन टाटा के पिता नवल टाटा की कहानी
रतन टाटा को भारत का रत्न कहा जाए तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। रतन टाटा ने बुधवार 9 अक्टूबर 2024 को अंतिम सांस ली और अनंत की यात्रा पर निकल गए। रतन टाटा ने देश को जो विरासत सौंपी है, उसके लिए यह देश हमेशा रतन टाटा का ऋणी रहेगा। 'रतन टाटा' रूपी रत्न जिस पिता के घर में जन्मा आज सिटी की हस्ती में उस नवल टाटा के बारे में जानते हैं। नवल टाटा ऐसे शख्स थे, जिनके पिता भी रतन थे और उनका पुत्र भी रतन ही हुआ। जी हां नवल टाटा के पिता का नाम रतनजी टाटा था और उनके बेटे का नाम रतन टाटा। सूरत में जन्मे नवल टाटा आज के हमारे City Influencer हैं और उन्हीं के बारे में इस आर्टिकल में जानेंगे।
मिडिल क्लास परिवार में जन्मे नवलनवल टाटा का जन्म 30 अगस्त 1904 को तत्कालीन बॉम्बे प्रेसिडेंसी के सूरत शहर में एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम होरमुसजी टाटा (Hormusji Tata) था। ऊपर हमने उनके पिता का नाम रतनजी टाटा बताया था, इसलिए बिल्कुल भी कंफ्यूज होने की जरूरत नहीं है। इस बारे में आगे विस्तार से बात करेंगे। होरमुसजी टाटा, देश के मशहूर टाटा परिवार के दूर के रश्तेदार थे। होरमुसजी अहमदाबाद की एडवांस्ड मिल्स में स्पिनिंग मास्टर थे, जिनका 1908 में निधन हो गया। इसके बाद नवल और उनका परिवार कुछ समय के लिए आज के गुजरात के नवसारी में रहा। बता दें कि नवल टाटा की मां की मां यानी उनकी नानी, टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा की पत्नी हीराबाई की बहन थी।
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नवल को अनाथालय जाना पड़ानवल की मां एंब्रॉयडरी करके अपना गुजारा चलाती थीं। बाद में कुछ पारिवारिक मित्रों ने परिवार की मदद करने के लिए बालक नवल को जे.एन. पेटिट पारसी अनाथालय में डाल दिया। कुछ समय तक नवल इसी अनाथालय में रहे।
किसी ने जादू की छड़ी घुमाई और एक देवता रूपी परी आई। मैं भगवान का आभारी हूं कि उसने मुझे गरीबी की पीड़ा को अनुभव करने का अवसर दिया। जिसने किसी भी अन्य चीज से ज्यादा मेरे चरित्र को गढ़ने में भूमिका निभाई।
- नवल टाटा
नवल की किस्मत पलटी और टाटा बन गएअनाथालय में धीरे-धीरे बड़े हो रहे नवल अब 13 साल के हो चुके थे। इसी दौरान टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे सर रतनजी टाटा की पत्नी नवाजबाई की नजर नवल पर पड़ी और उन्होंने नवल को गोद ले दिया। नवाजबाई और रतनजी टाटा गोद लेकर नवल को अपने साथ ले आए और इस तरह वह अब नवल टाटा बन गए। इस तरह से रतनजी टाटा उनके पिता कहलाए। रतनजी टाटा के दो अन्य बेटे जमशेद जी टाटा और दोराबजी टाटा भी थे। जमशेद जी टाटा बाद में टाटा सन्स के चेयरमैन बने और जमशेदनगर उन्होंने ही बसाया। नवल टाटा ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया और फिर अकाउंटिंग में शॉर्ट कोर्स के लिए लंदन गए। लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने भूतकाल को कभी नहीं भुलाया। उन्हें बचपन की गरीबी के दिन और अनाथालय में बिताए दिन हमेशा याद रहे।
JRD टाटा और नवल टाटा, दो भाई कितने अलग?JRD टाटा और नवल टाटा दोनों भाई थे, दोनों का टाटा ग्रुप को आगे बढ़ाने के लिए पैशन भी एक जैसा था। दोनों के करियर एक साथ आगे बढे। हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर दोनों में फर्क था। जहां एक ओर JRD टाटा थोड़ा रिजर्व टाइप के व्यक्ति थे और शांत रहते थे। वहीं नवल टाटा को लोगों से मिलना पसंद था और वह हर तरह के लोगों के साथ मिलना-जुलना पसंद करते थे। उन्हें अपना बचपन हमेशा याद रहा और गरीबों के प्रति उनके दिल में हमेशा खास जगह थी।
नवल टाटा की पर्सनल लाइफनवल टाटा ने बड़े होकर सूनी कोमिसरियात से शादी की और उनके दो बच्चे हुए। उनके दोनों बेटों के नाम रतन और जिम्मी थे। यही रतन बाद में टाटा सन्स के चेयरमैन बने और टाटा समूह को वैश्विक स्तर पर फैलाया। 1940 के दशक में नवल टाटा अपनी पत्नी से अलग हो गए। बाद में साल 1955 में उन्होंने सिमोन डुनोयर से शादी की, जो स्विटजरलैंड की बिजनेसवुमन थीं। सिमोन के साथ नवल टाटा का एक बेटा हुआ, जिनका नाम नोएल टाटा है।
टाटा ग्रुप में कब आए नवलइंग्लैंड से आने के बाद 1930 में नवल ने टाटा ग्रुप ज्वाइन किया। इसके तीन साल बाद ही उन्हें टाटा के एविएशन विभाग के सेक्रेटरी बना दिया गया। 1939 में उन्हें टाटा ग्रुप की टेक्सटाइल कंपनियों का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया और फिर वह 1941 में टाटा सन्स के निदेशक भी बने। 1961 में उन्हें टाटा इलेक्ट्रिक कंपनी का चेयरमैन नियुक्त किया गया, जिसे आज टाटा पावर के नाम से जाना जाता है। 1962 में वह टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन बने। बिजनेस के अलावा वह टाटा चैरिटीज से भी करीब से जुड़े रहे। वह 1965 से अपने निधन तक सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रहे। वह 1951 में भारतीय कैंसर सोसाइटी की शुरुआत से 1989 तक इसके चेयरमैन रहे।
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हॉकी फेडरेशन के प्रेसिडेंट भी रहे नवल टाटानवल टाटा की खेलों के प्रति भी रुचि थी। वह 1946 से 1961 तक इंडियन हॉकी फेडरेशन के प्रेसिडेंट भी रहे। इसी दौरान भारतीय हॉकी टीम ने 1948, 1952 और 1956 में ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीता। 1960 के ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल मिला। नवल टाटा ऑल इंडिया काउंसिल फॉर स्पोर्ट्स के पहले प्रेसिडेंट रहे और एक दशक से ज्यादा समय तक इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन के वाइस-चेयरमैन भी रहे।
पॉलिटिक्स में नवल टाटानवल टाटा एक डायनामिक लीडर थे और उन्होंने पॉलिटिक्स में भी हाथ आजमाया। साल 1971 में उन्होंने एक निर्दलीय के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा। उन्होंने बॉम्बे साउथ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन बांग्लादेश को अलग करने के बाद इंदिरा कांग्रेस के एनएन कैलाश यहां से चुनाव जीत गए। नवल टाटा तीसरे नंबर पर रहे।
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