सुपौल में हर साल बदल जाता है इस गांव का पता, अपने ही घर को ढूंढते रहते हैं लोग, जानिए वजह
बिहार के सुपौल में एक ऐसा गांव है, जहां के लोगों को अपने ही घर का पता पूछना पड़ता है। हर साल यहां के रहने वालों का पता बदल जाता है। यह गांव एक जगह नहीं बसता है। बल्कि, एक जगह से दूसरी जगह खिसकता रहता है। आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है-
हर साल बदल जाता है इस गांव का पता
कहते हैं कि लोग भूले- भटके भी अपने घर पहुंच ही जाते हैं। लेकिन क्या हो जब अपने ही घर का पता हर साल ढुंढना हो। सुनगर हैरानी हो रही होगी कि ऐसा भी कहीं होता है क्या ? तो आपको बता दें कि हां, एक ऐसा गांव भी है, जहां लोगों के घर का पता हर साल बदल जाता है। तो चलिए जानते हैं कैसे ? कोसी की गोद में एक ऐसा ही गांव बसा है, जहां रहने वालों के घर एक जगह से दूसरी जगह खिसकते रहते हैं। यह अजीब जरूर है, मगर यह सच है। हम बात कर रहे हैं सुपौल के एक गांव के बारे में, जहां कोसी के तटीय इलाकों में बसा यह गांव आज जहां है अगले साल वहां नहीं रहता है। अगर आप इस गांव में जाते हैं और कुछ दिन बाद कहीं जाकर वापिस लौटते हैं तो आपको इस गांव को खोजना मुश्किल हो जाता है। आइए जानते है कि आखिर इसकी क्या वजह है।
क्यों खिसक जाता है बिहार का यह गांव
बिहार के सुपौल से लगभग 60 किलोमीटर दूर मरौना प्रखंड में ऐसा ही गांव है, जिसका नाम है खुखनाहा। यह गांव कोसी के गोद पर बसा है। इस गांव की आबादी 500 से 700 के करीब है। यहां रहनेवालों की अपनी जमीन और अपनी खेती भी है। मगर हर साल गांव का पता पूरी तरह बदल जाता है। आज कोसी के एक छोर पर है तो अगले साल पता नहीं कौन से कोने पर लोग होंगे यह यहां के रहने वालों को भी नहीं पता है। दरअसल, इस गांव की यह परेशानी कोसी के कटाव के कारण पैदा होती है।
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कोसी के कटाव के कारण बदल जाता है पता
आपको बता दें कि कोसी के तटवर्ती क्षेत्र में सुपौल, सहरसा, मधुबनी के 3 सौ से ज्यादा घर मौजूद हैं। यहां रहने वालों की जिंदगी कोसी के धार और उसकी दिशा पर निर्भर करती है। हर साल कोसी में आने वाले बाढ़ के कारण मुरौना प्रखंड का खुखनाहा गांव पूरी तरह खत्म हो जाता है। बाढ़ में कटाव के कारण गांव के लोग एक जगह से दूसरे जगह पर अपना आशियाना बनाते रहते हैं। पिछले कुछ सालों की बात करें तो खुखनाहा के साथ कई और गांव का पता भी कई बार बदल चुका है।
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बाढ़ के कारण नहीं बन पाते पक्के घर
बाढ़ से यहां के लोग इतने बजबूर होते हैं कि लोगो को अपने गांव तक पहुंचने के लिए पता पूछना पड़ता है। रोजगार या पढ़ाई के लिए बाहर गए लोगों को भी गांव आने पर अपन पता ढूंढना पड़ता है। यहां के लोगो के लिए यह जीवन का हिस्सा बन गया है। लोग अपने घरों को फूस और बांस के तैयार करते हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनका कोई पक्का पता नहीं। हर साल इनका बसा-बासाया घर उजड़ता है और हर साल वह फिर से इसे तैयार करते हैं।
जहां से गुजरती है कोसी, बदल देती है जिंदगी
बिहार के इन गांवों में कोसी का कहर कुछ इस कदर पड़ता है यह जिस ओर से गुजरती है, लोगों की जिंदकी के और उनका पता बदल देती है। लोगों इसकी मिट्टी लाकर अपने घरों के आगे टिला बना कर अपने घर की पहचान करते हैं। गांव की बहुए इस कहर से बचने के लिए अपने मायके चली जाती हैं। हालांकि, लोगों को इतना कुछ झेलने की आदत पड़ गई है। लेकिन, इससे इनकी जिंदकी पर इसक गहरा असर होता है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर रोजमर्रा की जिंदकी और रोजगार सब पर इसका असर पड़ता है।
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