Independence Day 2024: इस राज्य में स्वतंत्रता दिवस पर भारत की आजादी के 28 साल बाद फहराया गया तिरंगा

India Independence Day 2024: भारत को अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। लेकिन आज देश में शामिल कुछ हिस्से ऐसे भी हैं, जिन्हें 1947 में आजादी नहीं मिली। बल्कि इसके सालों बाद वहां भारत का तिरंगा लहराया और पहली बार स्वतंत्रता दिवस मना। चलिए जानते हैं सिक्किम की कहानी -

Sikkim Story.

सिक्किम 1975 में भारत में शामिल हुआ

India Independence Day 2024: भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। तब से हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और राष्ट्रध्वज यानी तिरंगा फहराया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज देश में ही कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां आजादी के कई वर्षों बाद तिरंगा फहराया गया। सिक्किम भी ऐसा ही एक राज्य है। जी हां, सिक्किम आजाद भारत का 22वां राज्य है। लेकिन यहां भारत की आजादी के वर्षों बाद तक 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता था और तिरंगा नहीं फहराया जाता था। चलिए जानते हैं ऐसा क्यों -

क्यों नहीं मनाया जाता था स्वतंत्रता दिवसवैसे तो इस प्रश्न का उत्तर आपमें से ज्यादातर लोग जानते हैं। फिर भी जिन्हें नहीं पता, उन्हें बता दें कि जब भारत आजाद हुआ उस समय सिक्किम भारत का हिस्सा था ही नहीं। सिक्किम को साल 1975 में भारत में शामिल किया गया, यही कारण है कि भारत की आजादी के 27 साल बाद तक यहां 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता था। 16 मई 1975 को सिक्किम कानूनी रूप से भारत में शामिल हुआ और इसी साल से 15 अगस्त को सिक्किम में भी भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा।

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1947 में सिक्किम की स्थितिसाल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उन्होंने देश के दो टुकड़े (भारत और पाकिस्तान) कर दिए। उस समय रियासतों को अपनी पसंद के अनुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की छूट दी गई। सिक्किम भी एक रियासत (Princely States) था यानी यहां राजा का राज था। और 1947 में अंग्रेजों के यहां से जाने पर उसने अपनी स्वायत्तता बरकरार रखी। हालांकि, सिक्किम ने स्वतंत्र रहते हुए भी भारत के साथ विशेष संरक्षित संबंध रखे। सिक्किम के विदेश, रक्षा और संचार के मामलों की जिम्मेदारी भारत के पास थी। यह व्यवस्था साल 1970 तक चली।

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1970 के दशक में क्या हुआ1970 के दशक की शुरुआत में सिक्किम में भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों और भारत में एक राज्य के रूप में (State of the Indian Union) शामिल होने के लिए आंदोलन शुरू हुआ। ऐसी राजनीतिक पार्टियों ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया, जो चाहती थीं कि सिक्किम का भारत में विलय हो जाए। अप्रैल 1973 में सिक्किम में एक जनमत संग्रह हुआ। इस जनमत संग्रह में यह निर्धारित किया जाना था कि सिक्किम के लोग भारत में शामिल होने चाहते हैं या स्वायत्त देश में रूप में बने रहना चाहते हैं। इस जनमत संग्रह में सिक्किम के ज्यादातर लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में मत दिया। इसके बाद सिक्किम विधानसभा ने भारत में विलय के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित किया। आखिर 16 मई 1975 को भारतीय संसद ने 36वें संविधान संशोधन बिल को पास किया, जिसमें सिक्किम को भारत के 22वें राज्य के रूप में मान्यता मिली। इस संशोधन के जरिए सिक्किम में राजशाही को खत्म कर दिया गया और सिक्किम को भारत में एक लोकतांत्रिक राज्य के रूप में स्थापित किया गया।

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1975 में मना स्वतंत्रता दिवसइस तरह से जब 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य घोषित हो गया तो यह भारत का अभिन्न अंग बन गया। सिक्किम में राजशाही खत्म हुई और देश के किसी भी अन्य हिस्से की तरह सिक्किम में भी भारत के राष्ट्रीय पर्व मनाए जाने लगे। 15 अगस्त 1975 को पहली बार सिक्किम में भारत के एक राज्य के रूप में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया और राष्ट्रध्वज फहराया गया।

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सिक्किम राजशाही का इतिहाससिक्किम के भारत में विलय से पहले यहां पर नामग्याल चोग्याल वंश (Namgyal Chogyal Dynasty) का राज था। यह एक बौद्ध बहुल और बौद्ध राजाओं द्वारा संचालित राज्य था। सिक्किम में नामग्याल चोग्याल राजवंश ने साल 1642 में अपना राज्य स्थापित किया था। सिक्किम में 1942 से 1975 तक इसी राजवंश का राज रहा। इस दौरान नेपाल की तरफ से सिक्किम पर बार-बार हमले किए गए। दार्जिलिंग भी पहले सिक्किम का ही हिस्सा था, जिस पर साल 1835 में भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था और सिक्किम को अपने संरक्षण में ले लिया।

दार्जिलिंग को अपने कब्जे में लेने के बाद अंग्रेजों ने नेपाली कामगारों की मदद से पहली बार चाय का बागान लगाया। उस समय देश की राजधानी दिल्ली नहीं, बल्कि कलकत्ता (आज कोलकाता) थी। ऐसे में अंग्रेजों ने दार्जिलिंग को एक वैकल्पिक प्रशासनिक स्थल के रूप में विकसित किया। जाहिर तौर पर ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि दार्जिलिंग में अंग्रेजों के लिए कलकत्ता के मुकाबले सुखद जलवायु थी।

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1861 की संधिअंग्रेज ने भी सिक्किम पर पूरी तरह से राज नहीं किया। वह सिक्किम को चीन और नेपाल के खिलाफ एक बफर स्टेट के रूप में देखते थे। सिक्किम अंग्रेजों के अधीन जरूर था, लेकिन इसे काफी हद तक स्वायत्तता मिली हुई थी। दरअसल 1861 में अंग्रेजों ने सिक्किम के राजा के साथ एक संधि की, जिसे तुमलोंग की संधि (Treaty of Tumlong) कहा जाता है। इसके तहत अंग्रेजों का सिक्किम पर नियंत्रण तो था, लेकिन यह आधिकारिक तौर पर उनके शासन के अधीन नहीं था। यहां का चोग्याल राजवंश सत्ता में बना रहा।

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Digpal Singh author

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