देश में ऐसा भी एक शहर है, जो अपने रेशम के लिए अलग ही पहचान रखता है। अगर आप नहीं जानते हैं तो बता दें कि बिहार के भागलपुर को रेशम नगर के रूप में पहचाना जाता है। भागलपुर को यह पहचान जिस सुनहरे तसर, मूंगा व अंडी धागे के दम पर मिली थी, वह पहचान अब कमजोर पड़ गई है। अपने इन धागों के लिए भागलपुर को दुनियाभर में पहचाना जाता था, लेकिन अब भागलपुर और उसके रेशम की साख पर बुरा असर पड़ा है।
आज भी भागलपुरी रेशम मिल जाता है, लेकिन भागलपुर की यह पहचान अब धूमिल हो गई है। आज यहां न तो तसर कीट पालन हो रहा है और न ही धागे तैयार हो रहे हैं। कच्चे माल के लिए भागलपुर का रेशम वस्त्र उद्योग बिहार से बाहर अन्य प्रदेशों या चीन व कोरिया पर निर्भर हो गया है। बुनकरों को दूसरे प्रदेशों या विदेश से मंगवाया गया रेशमी धागा महंगा पड़ रहा है, जिससे उनकी कमर टूट गई है।
हालात ऐसे हैं कि भागलपुर जीरोमाइल पर केंद्रीय सिल्क बोर्ड का जो बुनियादी बीज प्रगुणन एवं प्रशिक्षण केंद्र है, उस पर पिछले एक साल से ताला लगा हुआ है। इससे पहले यहां कोकून से तितली व अंडे तैयार करके किसानों को उपलब्ध कराए जाते थे। केंद्र का उद्घाटन 30 अगस्त 2006 को केंद्रीय रेशम बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सह-सदस्य सचिव डॉ. एच. भास्कर ने किया था। लेकिन मात्र 17 साल में ही यह केंद्र रेशम नगर से छिन गया।
एक समय था जब यहां से तैयार तसर कीट पालन के लिए अंडे झारखंड भेजे जाते थे। करीब एक साल पहले यहां से दफ्तर को झारखंड के मधुपुर शिफ्ट कर दिया गया। इसके बाद कीट पालन करने वाले किसानों से लेकर धागा कत्ताई करने वाले तक बेरोजगार हो गए हैं। अब किसानों को तसर कोकून तैयार करने के लिए मधुपुर जाना पड़ता है। कत्तीन यानी कोकुन से धागा निकालने वाली महिलाओं के पास कोकून ही नहीं हैं, जिससे वह धागा निकाल सकें। इसका गंभीर असर 80 हजार कत्तीनों, बुनकरों और किसानों पर पड़ा है।
साल 1980 से एक-एक करके यहां पहले अंडी व उसके बाद मूंगा कोकून उत्पादन व ट्रेनिंग सेंटर पर ताला लग चुका है। इन दोनों ही केंद्रों का संचालन उद्योग विभाग के जरिए किया जा रहा था। यहां पर कोकून तैयार करने की ट्रेनिंग दी जाती थी। रेशम तैयार करने वालों को यहां से आसानी से कोकून भी उपलब्ध कराए जाते थे। ज्ञात हो कि मूंगा कोकून तैयार करने के लिए शहतूत और अंडी कोकून के लिए अंडी के पेड़ की जरूरत होती है।
बिहार में तसर कीट पालन की काफी संभावनाएं हैं। पौधे उगाने के लिए जंगलों में जमीन भी है। सड़क किनारे भी काफी पेड़ लगाए जा सकते हैं। अगर इन जगहों पर अर्जुन के पौंधे लगा दिए जाएं तो किसानों को रेशन के कीड़े पालने में बड़ी सहूलियत होगी। अर्जुल के पौधे लगाने से कोकून का उत्पादन बढ़ेगा और धागे की कमी भी दूर हो जाएगी। बता दें कि इस समय देश में सबसे ज्यादा 49 फीसद उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है। जबकि मध्य प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में 10-10 फीसद उत्पादन होता है।