Usha Temple: भरतपुर में मौजूद है श्री कृष्ण के पौत्र की प्रेम निशानियां, जानिए अनोखा इतिहास
भरतपुर का नाम आते ही आपके मन में किले और इमारतों की यादे ताजा हो जाती हैं। यहां कई किले और ऐतिहासिक इमारतें हैं। यहां कई स्वर्ण मंदिर भी हैं। ऐसा ही एक मंदिर भरतपुर के बयाना में है, जो कि उषा और अनिरुद्ध के प्रेम का प्रतीक है। तो आइए जानते हैं मंदिर का इतिहास।

भरतपुर, उषा मंदिर
प्रेम के प्रतिक उषा मंदिर को बाणासुर की पुत्री उषा की सहेली चित्रलेखा ने बनवाया था। चित्रलेखा ने इस मंदिर का निर्माण अपनी मित्र उषा में किया था, जोकि भरतपुर के बयाना में भीतरवाड़ी में है। भरतपुर का यह मंदिर काफी भव्य और अनोखा है। इस मंदिर को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। उषा बयाना के परम शिवभक्त बाणासुर की पुत्री थी। महाभारत काल में बयाना श्रोणितपुर के नाम से मशहूर था।
कहा जाता है कि सम्राट बाणासुर की पुत्री उषा परम सुंदरी थी। उषा को श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से सपनों में प्रेम हो गया था। अनिरूद्ध द्वारका के राजकुमार थे, जिनकी सुन्दरता की तुलना कामदेव से की जाती थी। उसा ने अनिरुद्ध की सुंदरता के बारे में सुन तो रखा तो लेकिन उन्हें कभी देखा नहीं था।
उषा की मित्र चित्रलेखा ने बनाया मंदिर
चित्रलेखा राक्षसराज बाणासुर के मंत्री उष्मन्द की पुत्री थी औप उषा की सहेली भी। उषा हमेशा सपने देखे हुए सुंदर व्यक्ति की सोच में डूबी रहती थी। जब चित्रलेखा ने उससे पूछा कि वह किस सोच में डूबी हुई है तो इसपर उषा ने चित्रलेखा को अपने मन की सारी बात बता दी। जिसके बाद चित्रलेखा ने बलराम, श्रीकृष्ण और प्रद्युम्न सहित अनिरुद्ध का चित्र बनाकर, पहचाने को कहा। अनिरुद्ध का चित्र देखते ही उषा उसे पहचान गई।
उषा और अनिरुद्ध की प्रेम कहानी
अपनी सहेली की बात सुनने के बाद चित्रलेखा अपनी योग शक्ति से द्वारका गई और सोते हुए अनिरुद्ध को उठाकर ले आई। इस बात का पता जब बाणासुर को चला तो उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया, जिसपर कृष्ण और बाणासुर के बीच युद्ध हुआ। अंत में उषा और अनिरुद्ध का विवाह हुआ और दोनों श्री कृष्ण के साथ द्वारका लौट आए। भारतपुर का यह मंदिर दोनों के प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
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