अनोखा शहर, जिसके गुलाल के बिना पूरी नहीं होती राधा रानी के वृंदावन की होली
उत्तर प्रदेश के शहरों में हाथरस अपनी अलग पहचान रखता है। यह शहर अपने हींग और गुलाल के उत्पादन के लिए जाना जाता है। हर साल यहां के गुलाल से करीब 30 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। यहां हींग की करीब 20 से ज्यादा फैक्ट्रियां है। आइए जानते हैं और किन चीजों के लिए फेमस है हाथरस-
हाथरस
उत्तर प्रदेश के शहरों की खास बात यह है कि यहां हर एक शहर की कोई न कोई खासियत है। इन्हीं में से एक है हाथरस। आगरा से अलीगढ़ वाले हाइवे पर 25 किलोमीटर चलने पर हाथरस पड़ता है। आपको बता दें कि पश्चिमी यूपी के जिले आगरा, मथुरा और अलीगढ़ के कुछ इलाकों को काटकर 3 मई 1997 को हाथरस जिले का गठन किया गया। यह अलीगढ़ मंडल के में आता है। यह शहर करीब 1,800 वर्ग किलोमीटर में फैला हाथरस 7 प्रशासनिक ब्लॉकों हाथरस, मुरसान, सासनी, सिकंदराराऊ, हसायन, सादाबाद और सहपऊ में बंटा हुआ है। इस शहर की एक खासियत यह भी है कि इसके नाम से चार रेलवे स्टेशन बनाए गए हैं। जिनके नाम हाथरस सिटी, हाथरस किला, हाथरस जंक्शन और हाथरस मेंडू हैं।
काका हाथरसी की जन्मस्थली
आपने काका हाथरसी का नाम तो सुना ही होगा। काका हाथरसी का नाम प्रभुलाल गर्ग था। इनकी जन्मस्थली हाथरस ही है। इनकी न रचनाएं आपका ध्यान समाज में व्याप्त दोष, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर ले जाती है। देश-दुनिया को सुख और शांति का संदेश देने वाले और समाज सुधारक करपात्री महाराज की हाथरस कर्मस्थली रही है। उन्होंने ही हाथरस में आगरा रोड स्थित संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कराई थी।
विवेकानंद का हाथरस से गहरा नाता
आपोक बता दें कि स्वामी विवेकानंद का भी हाथरस से गहरा नाता रहा है। अपनी भारतयात्रा के दौरान उन्होंने वृंदावन से लौटते समय हाथरस में एक वृक्ष के नीचे आराम कया था। हाथरस में उस समय के रेलवे स्टेशन मास्टर सदानंद को अपना पहला शिष्य बनाया था। स्टेशन मास्टर का मूल नाम शरतचंद्र गुप्ता था।
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हींग और गुलाल के लिए मशहूर
लेकिन, इसकी खास पहचान यहां के हींग और रंग गुलाल को लेकर है। हाथरस को हींग की मंडी कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां हींग की 60 फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों से लगभग 70 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है। हाथरस में हींग के कारोबार ने करीब 15 हजार लोगों को रोजगार दिया है। यहां से तैयार हींग कुवैत, सऊदी अरब, बहरीन जैसे देशों में भेजा जाता है। इसके साथ ही यहां बनने वाले रंग और गुलाल की देश के अलावा विदेशों में भी बड़ी डिमांड है। यूपी के ब्रज की फेमस होली भी हाथरस के गुलाल से ही खेली जाती है। यहां गुलाल बनाने की वाली 20 फैक्ट्रियां हैं। यहां गुलाल के कारोबार से 30 करोड़ रुपए सालाना बिजनेस होता है। रंग के इस कारोबार में 5 हजार लोग जुड़े हुए हैं।
हाथरस में इन चीजों का उत्पादन
इनके अलावा भी हाथरस में कई तरह के चीजों कान उत्पादन होता है। यहां रंगों, गुलाल, स्किन पाउडर, रेडीमेड कपड़े, रसायनों, कालीन बनाने, तरह-तरह की मूंगा-मोती, पीतल, आर्टवेयर और हार्डवेयर, खाद्य तेल, मेटल के डिजाइन के लोगों के बीच मशहूर है। इसके अलावा हाथरस कृषि के लिए भी जाना जाता है। हाथरस में करीब यहां 70% आबादी आज भी खेती से जूड़े हैं। लेकिन, यहां की हींग को लेकर इसकी खूब पहचान है। जिस वजह से लोग हाथरस को हींग नगरी के नाम से भी जानते हैं।
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कैसे पड़ा हाथरस का नाम
आपको जानकर हैरानी होगी कि हाथरस का दूसरा नाम महामाया नगर है। लेकिन, लोग इसे हाथरस ही कहते हैं। यहां 'चमचम' के लोग काफी पसंद करते हैं। खास बात है कि ये चमचम सिर्फ हाथरल में ही बनती है। अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि हाथरस जैसा अजीब नाम क्यों पड़ा तो आपको बता दें कि ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में भादों मास की नवमी और दशमी तिथि के मौके पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहां पर आए थे। और महादेव ने माता पार्वती को अपने हाथ से रसपान कराया था। इसलिए इस नगरी का नाम हाथरस पड़ा।
राजा दयाराम सिंह का किला
आपने हाथरस के किले के बारे में सुना होगा यहां गए भी होंगे। आपको बदा दें कि हाथरस किले को राजा दयाराम किला और श्री दाऊजी मंडी के नाम से भी जाना जाता है। इस किले को 18वीं शताब्दी में जाट राजा दयाराम सिंह ने बनवाया था।
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