कैसे पड़ा सुल्तानपुर का नाम, किसने बसाया था ये शहर; जानें क्या था पुराना नाम
सुल्तानपुर का इतिहास काफी रोचक है। भगवान राम के पुत्र कुश की यह नगरी कई मायनों में खास है। यहां के सीता कुंड का भी विशेष महत्व है। मुंगलकाल में इसका नाम बदल दिया गया। यह शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे रहा है। आइए जानते हैं आज सुल्तानपुर से जुड़ी खास बातें-
भागवान राम के पुत्र कुश की नगरी सुल्तानपुर
Sultanpur: उत्तर प्रदेश का जिला सुल्तानपुर का अपना महत्व है। इसका इतिहास काफी पुराना और रोचक है। कहा जाता है कि वैदिक काल में महर्षि वाल्मीकि और दुर्वासा ऋषि जैसे मुनी यहं तप किया करते थे। सुलतानपुर का अतीत काफी गौरवशाली रहा है । ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी सुल्तानपुर की अपनी अलग पहचान है। सई और तमसा नदियों के बीच बसा यह शहर कई कारणों से मशहूर है। यूपी का यह शहर कुल 2672.89 स्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां कि कुल आबादी 24,31,490 है। यहां कुल 1727 गांव हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस शहर का नाम कैसे पड़ा और इसे किसने बसाया था और मुगलकाल में इसे किस नाम से जाना जाता था ? अगर, नहीं तो आइए आज सुल्तानपुर से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं।
कैसे पड़ा नाम ?
पहले इस शहर को कुशभवनपुर के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि इस शहर को भगवान श्री राम के पुत्र कुश से बनाया था। यही वजह है कि इसका नाम पहले कुशभवनपुर था। लेकिन, मुगलकाल में इसका बदलकर सुल्तानपुर रखा गया। ऐसा भी कहा जाता है कि खिलजी वंश के शासकों ने यहां के राजा नंद कुंवर भर को हराकर यहां के वैश्य राजपूतों को सुल्तान की उपाधि दी थी। कहते हैं कि इसी उपाधि की वजह से िस नगर को सुल्तानपुर कहा जाने लगा।
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सुल्तानपुर का सीता कुंड
मान्यता है कि यहां गोमती नदी के तट पर एक कुंड स्थित है, जिसे सीता कुंड कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान स्नान किया था। हर साल चैत्र और कार्तिक मास में यहां पर स्नान और मेले का आयोजन होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पुराने समय में खिलजी वंश के शासकों ने यहां के राजा नंद कुंवर भर को हराकर यहां के वैश्य राजपूतों को सुल्तान की उपाधि दी थी। कहते हैं कि इसी उपाधि की वजह से िस नगर को सुल्तानपुर कहा जाने लगा।
सुल्तानपुर का इतिहास
कहा जाता है कि साल 1248 में दिल्ली के बादशाह पृथ्वीराज चौहान के भाई चाहिरदेव के वंशज बरियार शाह यहां आए थे।। जिसेक बाद उन्होंन जमुवावा गांव में अपनी गढ़ी बनवाया था। लेकिन, बाद में उनके वंशजों ने गोमती नदी के के क्षेत्र को क्षत्रिय परिवारों से छीन लिया। इसके साथ ही सन 1364 ईसवी में मलिक सरवर ख्वाजा द्वारा जौनपुर शर्की सल्तनत की आधारशिला रखी गई थी। साल 1539-40 में जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित किया तो उस समय वत्सगोत्रीय बरियार शाह के वंशजों में नरवलगढ़ यानी अब हसनपुर के राजा त्रिलोकचंद थे।
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इन मायनों में खास सुल्तानपुर
सुल्तानपुर शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इसका अलग महत्व है। यह मलिक मोहम्मद जायसी, गुरुदत्त सिंह जैसे पुरातन कवियों की भी यही कर्मस्थली रही है। आपको बता दें कि राष्ट्रीय आंदोलन के महान कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी का भी यह गृह जनपद है। प्रगतिवादी कविता और शायरी के सशक्त कवि त्रिलोचन और मजरूह सुल्तानपुरी का वास्ता इसी माटी रहा है। फेमस कथाकार संजीव, शिवमूर्ति, अखिलेश, अजमल सुल्तानपुरी इसी धरती से आते हैं।
सुल्तानपुर की जगहें
आपके सुल्तानपुर में कई ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल है। यहां विक्टोरिया मंजिल, चिमनलाल पार्क, परिजात वृक्ष, बिजेथुआ महावीर मंदिर, कोइरीपुर, लोहरामऊ का मां भवानी मंदिर जैसे कई सुंदर जगहें हैं। यहां के सीता कुंड का खास महत्व है। माना जाता है कि वनवास के दौरान सीता यहां से गुजरी थी। यहां स्थित अघोर बाबा पीठ भी की भी अगल विशेषता है। कहा जाता है कि अघोर परंपरा के प्रथम नाथ ब्रह्मा के अवतार बाबा सत्य नाथ की यहीं पर साधना करते थे।
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