रक्षाबंधन के दिन यहां लगता है भव्य मेला, एक-दूसरे का खून बहाकर मनाते हैं त्योहार

उत्तराखंड के देविधुरा में होने वाली बग्वाल कोई प्रथा या खेल ही नहीं, बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही मां वाराही देवी के प्रति लोगों की आस्था और निष्ठा का प्रतीक है। जहां, इस युद्ध के दौरान लोग भले ही एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, मगर सभी खेमों के लोग मिल-जुलकर हर साल संघी से लेकर बग्वाल खत्म होने तक कठोर नियमों का पालन भी करते हैं। खोलाखाणी देवाचौड़ में खेले जाने वाले इस पाषाण युद्ध को देखने के लिए देश ही नहीं, विदेश के लोग भी पहुंचते हैं-

देवीधुरा बग्वाल

Devidhura Bagwal: देवभूमि उत्तराखंड अपने सुंदर जगहों के साथ ही अलग-अलग त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। यहां राष्ट्रीय त्योहारों के साथ ही कई स्थानीय और क्षेत्रीय त्योहार भी मनाए जाते हैं। इन त्योहारों में फुलदेई, मरोज पर्व, इगास, रणोशा त्योहार, मण उत्सव, चैतोल त्योहार, जुगात त्योहार, लोसर त्योहार, बिखौती मेला, घुघुति त्योहार (उत्तरायण), हरेला, दुबड़ी त्योहार और खतड़वा त्योहार हैं। आप अगर उत्तराखंड से हैं या वहां के त्योहारों में रुचि रखते हैं तो आपने इन त्योहारों के बारे जरूर सुना होगा। लेकिन, क्या आप यहां रक्षाबंधन के दिन होने वाले बग्वाल के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो आइए आज हम आपको बताते हैं उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र के देवीधुरा में होने वाली बग्वाल के बारे में...

बग्वाल क्या होती है?

बग्वाल एक तरह की खेल प्रतियोगिता है, जिसमें चार खेमों में बंटे लोग आसमान की ओर पत्थर उछालते हैं। आसमान की ओर उछाले गए यह पत्थर दूसरे खेमे के लोगों पर जाकर गिरते हैं। इस खेल में हजारों लोग शामिल होते हैं। बग्वाल में 4 खामों चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और बालिग के अलावा भी सात थोकों के लोग हिस्सा लेते हैं। इस बग्वाल को देखने के लिए देश ही नहीं, विदेश के लोग भी पहुंचते हैं। हर साल श्रावणी पूर्णिमा पर यह बग्वाल खेली जाती है।

देवीधुरा बग्वाल

कहां है वाराही देवी का मंदिर ?

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