Losar Festival: गढ़वाल में रंगो से नहीं आटे से खेली जाती है होली, जाने क्यों

उत्तराखंड में अलग-अलग तरह के त्योहार और परंपराएं देखने को मिलती हैं। उन्हीं में से एक है यहां का लोसर त्योहार, जो यहां की मान्यताओं और परंपराओं से रूबरू कराता है। यह त्योहार 15 दिनों तक मनाया जाता है। आइए आज हम आपको लोसर की खासियत के बारे में बताते हैं।

उत्तराखंड, लोसर पर्व

देवभूमि उत्तराखंड अपनी संस्कृति और धार्मिक स्थलों के लिए मशहूर है। यहां अलग-अलग तरह के त्योहार और परंपराएं देखने को मिलती हैं। उन्हीं में से एक है त्योहार है यहां का लोसर, जो यहां की मान्यताओं और परंपराओं से रूबरू कराता है। इस त्योहार को भारत-चीन सीमा से सटे गांवों में भोटिया जनजाति समाज के लोग मनाते हैं। इस त्योहार पर भोटिया और तिब्बती समुदाय की सांस्कृतिक का अद्भुत नजारा देखने को मिलती है।

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उत्तरकाशी में भी भोटिया समुदाय के लोगों द्वारा लोसर पर्व को मनाया जाता है, जिसमें वीरपुर और डुंडा समेत अन्य क्षेत्रों में भी लोसर मनाया जाता है। यहां के रिंगाली देवी मंदिर में लगभग 300 से ज्यादा परिवार एकत्र होते हैं, जहां पारंपरिक परिधान पहनकर महिलाएं नृत्य भी करती हैं।

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चौथे दिन खेली जाती है होली

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