Uttarakhand: जानिए इन वाद्ययंत्रों के बिना क्यों अधूरे हैं उत्तराखंड के त्योहार!
उत्तराखंड में लगभग सभी अवसर पर वाद्ययंत्रों को बजाया जाता है। पहेल यहां शादी-विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्यों से लेकर सुचना देने तक में इन वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल किया जाता था। वहीं इनकी अलग-अलग ताल मिलने वाले अच्छे-बुरे समाचार के बारे में पहले ही आगाह कर देते थे।
उत्तराखंड, दमाऊ
आप उत्तराखंड के कई खूबसूरत जगहों पर गए होंगे। यहां के स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद भी लिया होगा। लेकिन क्या आपने यहां के वाद्ययंत्रों के बारे में जाना है। ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों में ढोल दमाऊ सबसे प्रसिद्ध हैं। इन वाद्ययंत्रों को शुभ अवसरों में बजाया जाता है। खासकर शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर इसे विशेष रूप से इस्तेमाल में लाया जाता है। पहले इन वाद्ययंत्रों को आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों में जोश भरने के लिए बजाया जाता था। साथ ही लोकगीत में भी इसका उपयोग किया जाता है था।
वहीं किसी भी तरह अवसरों पर संगीत के स्वरों को इन वाद्ययंत्रों की धुनों से ही सजाया जाता है। वहीं मांगलिक कार्यो या किसी भी शुभ अवसरों इसका उपयोग किया जाता था। इसके साथ ही ढोल, दमाऊ, हुड़का, तुरही, रणसिंघा जैसे वाद्ययंत्रों का भी काफी महत्व था। लेकिन अब इनमें काफी वाद्ययंत्र विलुप्त हो गए हैं। लेकिन यहां के लोगों के दिलों पर आज भी इन वाद्ययंत्रों की धुनों के तार जुड़े हैं। इसलिए जब भी इन्हें मौका मिलता है ये लोग अपनी भूली बिसरी यादों को ताजा कर लेते हैं।
इन कामों के लिए होता था इस्तेमाल
पहले के समय में लोगों को सुचना देने के लिए भी डोर थाली, दमाऊ, नगाड़ा आदि का प्रयोग किया जाता था। इसकी खास बात यह है कि इन वाद्ययंत्रों की खुशी और गम की ताल बहुत ही अलग हुआ करती थी, जिससे यहां के लोग समझ जाते थे कि इन्हें मिलने वाली सूचना अच्छी है या दुखत है।
यहा ंमिलेंगे कई तरह के वाद्ययंत्र
अगर आप इन वाद्ययंत्रों को देखना चाहते हैं तो आप देहरादून की लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर में जा सकते हैं। यहां इन वाद्ययंत्रों को रखा गया है। यहां ढोल, दमाऊ, तुरही, रणसिंघा, भंकोर, मशकबीन, मोछंग, नगाड़ा और हुड़का आदि कई तरह के वाद्ययंत्रों आपको मिलेंगे।
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